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________________ | प्रवाह जब प्रवाहित होता है तब तीब्र गाढ़ बन्धन विकसित करने के लिए इन्द्रिय संयम आवश्यक ही ला होता है। जब इन्द्रियों का प्रवाह अन्तर्मुखी होता नहीं अनिवार्य है। है वह संयम कहलाता है। __ एक रूपक है । राजप्रासाद में एक दासी प्रतिभारतीय साहित्य में कूर्म का उदाहरण बहुत दिन राजा और महारानी की शय्या तैयार करती हो प्रसिद्ध रहा है चाहे जैन परम्परा रही हो, चाहे थी। एक दिन उस मुलायम शय्या को देखकर उनके वैदिक परम्परा और चाहे बौद्ध परम्परा । सभी ने के अन्तर्मानस में यह विचार उद्बुद्ध हुआ-शय्या हा कूर्म के रूपक द्वारा यह बताया है कि कूर्म जब तो बहुत ही मुलायम है दो क्षण सोकर देखू कितना SN खतरा उपस्थित होता है, तब वह अपनी इन्द्रियों आनन्द आता है और ज्योंही उसने सोने का उप21 को गोपन कर लेता है । जब इन्द्रियों को गोपन कर क्रम किया त्योंही उसे गहरी निद्रा आ गई। उसे लेता है तब कोई भी शक्ति उसे समाप्त नहीं कर पता ही नहीं चला, कितना समय बीत गया है। सकती । इन्द्रिय संयमी साधक को भी कोई भी जब सम्राट सोने के लिए महल में पहुँचे अपनी | बाह्य पदार्थ अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता। शय्या पर दासी को सोया हुआ देखकर उनका क्रोध CB जैन साहित्य के इतिहास में आचार्य स्थूलभद्र का सातवें आसमान में पहुँच गया और जो हाथ में बेंत STI उदाहरण आता है। स्थूलभद्र कोशा वेश्या के वहाँ की छड़ी थी, उससे जोर से उसकी पीठ पर मारी।। पर १२ वर्ष तक रहे। पिता की शवयात्रा देखकर दासी हड़बड़ाकर उठ बैठी। सम्राट को देखकर वह उनके मन में वैराग्य भावना उबुद्ध हुई और वे एक क्षण स्तम्भित रह गईं। सम्राट ने कहा- तेरी (C) साधना के महापथ पर वीर सेनानी की तरह बढ हिम्मत कैसे हई ? मेरी शय्या पर त तु कैसे सो गई? गये । तथा गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य कर वे चार और उन्होंने दूसरी बेंत उसकी पीठ पर दे मारी। GB माह तक कोशा के वहाँ पर रहे । उस रंगमहल में दासी खिलखिलाकर हँसने लगी। ज्यों-ज्यों बेंत लग मा रहकर भी उनका मन पूर्ण विरक्त रहा और वेश्या रहे थे रोने के स्थान पर वह हंस रही थी। र को भी उन्होंने वैराग्य के रंग में रंग दिया। यही सम्राट ने अन्त में उसे हंसने का कारण पूछा। 5 कारण है मंगलाचरण में भगवान महावीर और उसने कहा-राजन् ! मैं भूल से कुछ समय सो गई गौतम के पश्चात् उनका नाम आदर के साथ स्मरण जिससे इतनी मार सहन करनी पड़ी है। आप तो किया जाता है । एक आचार्य ने तो लिखा है- इस पर रात-दिन सोते हैं तो बताइये आपको इन्द्रिय विजेता स्थूलभद्र मुनि का नाम चौरासी कितनी मार सहन करनी पड़ेगी। नरक में कितनी चौबीसी तक स्मरण किया जाएगा। दारुण वेदना भोगनी पड़ेगी। इतिहास के पृष्ठ इस बात के साक्षी हैं कि जो दासी की बात सुनकर सम्राट को चिन्तन करने राजा-महाराजा और बादशाह इन्द्रियों के गुलाम के लिए बाध्य होना पड़ा कि इन्द्रिय असंयम कितना बने उनका पतन हो गया। और उनके कारण देश खतरनाक है। इन्द्रिय असंयम के कारण ही आत्मा परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ा गया। देश को विविध योनियों में भटकता है और दारुण वेदना परतन्त्र बनाने वाले इन्द्रियों के गुलाम रहे। इसी- का अनुभव करता है। इसलिए इन्द्रिय संयम का लिए महामात्य कौटिल्य ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है महत्व समझें । एक-एक इन्द्रिय के आधीन होकर कि शासक और सामाजिक प्राणी को इन्द्रियविजेता प्राणी अपने प्यारे प्राणों को गँवा बैठता है पर जो होना चाहिए । शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी, पाँचों इन्द्रियों के अधीन होता है उसको कितनी आध्यात्मिक जीवन के लिए अतीन्द्रिय चेतना को वेदना भोगनी पड़ती है ? ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को (शेष पृष्ठ ४६२ पर) सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन ४८८ C साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International FPNate & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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