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________________ सती प्रथा और जैनधर्म -प्रो० सागरमल जैन (निदेशक : पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी) 'सती' शब्द का अर्थ __'सती' की अवधारणा जैनधर्म और हिन्दूधर्म दोनों में ही पाई जाती है। दोनों में सती शब्द का प्रयोग चरित्रवान स्त्री के लिए होता है। श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन परम्परा में तो आज भी साध्वी/श्रमणी को सती या महासती कहा जाता है। यद्यपि प्रारम्भ में हिन्दू परम्परा में 'सती' का तात्पर्य एक चरित्रवान या शीलवान स्त्री ही था, किन्तु आगे चलकर हिन्दू परम्परा में जबसे सती प्रथा का विकास हुआ, तब से यह 'सती' शब्द एक विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। सामान्यतया हिन्दूधर्म में 'सती' शब्द का प्रयोग उस स्त्री के लिए होता है जो अपने पति की चिता में स्वयं को जला देती है। अतः हमें यह स्पष्ट रूप से समझ लेना होगा कि जैनधर्म की 'सती' की अवधारणा हिन्दू परम्परा की सतीप्रथा से पूर्णतः भिन्न है। यद्यपि जैनधर्म में 'सती' एवं 'सतीत्व' को पूर्ण सम्मान प्राप्त है किन्तु उसमें सतीप्रथा का समर्थन नहीं है। जैनधर्म में प्रसिद्ध सोलह सतियों के कथानक उपलब्ध है और जैनधर्मानुयायी तीर्थंकरों के नाम स्मरण के साथ इनका भी प्रातःकाल नाम स्मरण करते हैं ब्राह्मी चन्दनबालिका, भगवती राजीमती द्रौपदी । कौशल्या च मृगावती च सुलसा सीता सुभद्रा शिवा ।। कुन्ती शीलवती नलस्यदयिता चूला प्रभावत्यपि । पद्मावत्यपि सुन्दरी प्रतिदिनं कुर्वन्तु नो मंगलम् ॥ इन सतियों के उल्लेख एवं जीवनवृत्त जैनागमों एवं आगमिक व्याख्या साहित्य तथा प्राचीन जैनकाव्यों एवं पुराणों में मिलते हैं। किन्तु उनके जीवनवृत्तों से ज्ञात होता है कि इनमें से एक भी ऐसी नहीं है, जिसने पति की मृत्यु पर उसके साथ चिता में जलकर उसका अनुगमन किया हो, अपितु ये उन वीरांगनाओं के चरित्र हैं जिन्होंने अपने शील रक्षा हेतु कठोर संघर्ष किया और या तो साध्वी १ देखें-संस्कृत-हिन्दी कोश (आप्टे) पृ० १०६२ २ देखें-हिन्दू धर्म कोश (राजबली पाण्डेय) पृ. ६४६ N३ जैन सिद्धान्त बोलसंग्रह भाग ५ प. १८५ ४ ब्राह्मी आदि इन सोलह सतियों के जीवनवृत्त किन आगमों एवं आगमिक व्याख्याओं में है, इसलिए देखें (अ) जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग ५ पृ० ३७५ (a) Prakrit Proper Names, part I and II सम्बन्धित नाम के प्राकृतरूपों के आधार पर देखिये । षष्ठम खण्ड : विविध राष्ट्रीय सन्दर्भो में जैन-परम्परा की परिलब्धियाँ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ FRE 5. Jain Education International For Pluvate & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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