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________________ महासती जो फले-फूलें उसके पश्चात् भीलवाड़ा में मिलने का प्रसंग आया। मैंने अनुभव किया कि साध्वीजी के जीवन में सह-प्रवर्तक श्री अम्बालालजी म. सा० जता है, सरलता व शालीनता है । इन सब गुणों के ___ महासती जी श्री कुमुमवती जी बहत सरल साथ करुणा का भी अद्भुत समन्वय आपके व्यक्तित्व विनीत और चारित्र सम्पन्न साध्वी जी हैं । मेरा में है। उनका जब-जब मिलन हुआ उत्तरोत्तर ये गुण विरागमयता के लिए अपेक्षित निर्मल-छवि से उनमें मैंने वर्धमान देखे । तप संयम के राजमार्ग आप युक्त है । जो भी एक बार उनके सम्पर्क में पर अविराम बढ़ने वाली महासती कुसुमवती जी आता है उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। कर हमारे श्रमण संघ की एक दैदीप्यमान रत्नकणिका महती प्रेरणाओं से युक्त आपकी वाणी में ओजस्व (EO है । इन्होंने अपनी कुछ श्रेष्ठ शिष्याएँ भी तैयार है साथ ही करुणा भी। आपकी कथन-शैली में CO की हैं जिनसे जिनशासन को बड़ी आशा है । महा- पर्याप्त प्रवाहमयता है । और आकर्षणशीलता है। सती जी अपने रत्नत्रय की आराधना में निरन्तर अपने तर्कचातूर्य से आप कोई भी गुत्थी सहज । विकास करती हुई फले-फूलें यही शुभकामना ही सुलझा देती हैं। साधना के प्रति अपार निष्ठा if करता हूँ। व मानव-मात्र के प्रति समर्पणभाव आपके व्यक्तित्व की विशिष्टता है । ऐसा प्रतीत होता है कि वैराग्य की अनुपमेयता के बिम्ब आपके आकार में उकेरे । of एक अभिवंदनीय व्यक्तित्व : गये हैं। महासती श्री कुसुमवतीजी ___महासती श्री कुसुमवतीजी की प्रवचन शैली । एवं जीवन की अपूर्व सहजता ने मेरे मन को अत्य-प्रवर्तक महेन्द्रमुनि 'कमल' धिक प्रभावित किया है । उनकी संगठन निष्ठा के । लिए जितना लिखा/कहा जाय, कम है। साध्वी कुछ चारित्रात्माएँ ऐसी विशिष्ट होती हैं कि श्री चारित्रप्रभाजी, साध्वी श्री दिव्यप्रभाजी, OLI जिनका अभिनंदन करना पर्याप्त नहीं होता, वे तो साध्वी श्री गरिमाजी जैसी आपकी सुयोग्य शिष्याएँ अभिवंदनीय होती है। त्यागमूर्ति महासती श्री हैं। आप श्रमणी-समाज की शान हैं। सहज बोलGL सोहनकुंवरजी म० की प्रथम प्रधान शिष्या विदुषी चाल में भी आपकी वाणी-प्रभावकता सिद्ध व 4 महासती श्री कुसुमवतीजी ऐसी ही श्रेष्ठता से युक्त होती है। हैं। ऐसी श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाली साध्वीजी से समाज आप में अनेक विशेषताएँ हैं पर आप प्रदर्शन व अलंकृत है। __से कोसों दूर हैं । अतः प्रदर्शन से जुड़कर कुछ भी ___अध्यात्म जगत में महती प्ररणा देने में आपका प्रकट करने की तत्परता नहीं रखती। जो स्वतः योगदान महत्वपूर्ण है। श्रावक-श्राविकाओं को ही प्रकट होकर व्यक्त हो जाए केवल वे ही विशेष या शालीन और आत्म-बल से युक्त बनाने में संलग्न ताएं और लोग जान पाते हैं । पाते हैं। है । आपकी कीति अपूर्व है । विराग-जीवन में आप जीवन की बांसुरी को आपके स्नेह भरे स्वर | दिव्यता की प्रतीक हैं। अपने ही अनुरूप अपनी गृजरित करते से सदा ही लगते हैं। यह निश्चयशिष्याओं का व्यक्तित्व निर्माण आपने किया है। पूर्वक कहा जा सकता है कि महासती श्री कुसुमवती । मुझे याद है प्रथम बार महासती श्री कुसुमवती जी ने समाज में नई चेतना जगाई है। संघ की हर । जी म. से अजमेर मुनि सम्मेलन में मिलना हुआ। अपेक्षा में आप खरी-उतरी हैं। संघ की ऐसी ही प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain E rich International vate & Personar Used
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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