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________________ अहिंसा का मार्ग प्रदर्शित करते हुए भगवान नीति में भी वाचिक पाप के रूप में केवल असत्यमहावीर ने कहा है-सर्व प्राणों, सर्वभूतों, सर्व- वाद झूठ बोलने को ही नहीं माना; चुगली, कठोर जीवों और सर्व सत्वों को नहीं मारना चाहिये, न भाषण आदि को भी वाचिक पाप कहा गया है। । पीड़ित करना चाहिए और न उनको मारने की हिंसा स्तेयामन्यथाकामै, बुद्धि से स्पर्श ही करना चाहिए। पैशुन्यं परुषानृते । प्रत्येक जीव स्वतन्त्र होना चाहता है, बन्धन से संभिन्नालापाव्यापामुक्ति चाहता है, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहना चाहता है । दमभिध्या - दृग्विपर्ययम् ॥ अहिंसा उसकी इस इच्छा की पूर्ति का अचूक साधन अर्थात् हिंसा, चोरी तथा अगम्यागमन-यह 5है । सत्यशील व्रत आदि की माता मानी गई है- तीन कथित पाप हैं और पर द्रोह का चिन्तन पर। अहिंसा। जितने भी यम, नियम, व्रत, आराधना, धन की इच्छा और धर्म में दृष्टि का विपर्ययउपासना आदि के विधान धर्म-शास्त्रों में मिलते हैं, यह मानसिक पाप है। सत्य शब्द का शास्त्रीय उन सबके मूल में अहिंसा है। अर्थ 'सद्भ्यो हितं सत्यम्' अर्थात् जो सज्जनों के अहिंसा जहाँ मानव को विश्वमैत्री एवं विश्व- लिए हितकारक है वह सत्य है, इसके लिए 'न बन्धुत्व का पाठ पढ़ाती है वहाँ आत्मा पर आच्छा- सत्यमपि भाषेत पर पीडाकरं वचः' अर्थात जिस है। दित कर्म समूह को भी नष्ट करती चलती है और बात से दूसरों को दुख हो, आत्मा का क्षय हो, मोक्ष द्वार को निकट लाती है। सत्य होने पर भी ऐसी बात न बोलनी चाहिए। . उत्तराध्ययन में अहिंसा की परिभाषा की है। (३) अस्तेय व्रत-किसी की कोई भी वस्तु घर : मन, वचन, काय तथा कृत-कारित और अनुमोदन __ में पड़ी हो या मार्ग में या वन में गिर गई हो तो के से किसी भी परिस्थिति में त्रस, स्थावर जीवों को ___ उसके मालिक की आज्ञा के बिना चोरी के विचार दुखित न करना अहिंसा महाव्रत है। से मन, वचन और काया इन तीन करणों से उसे ___ व्यावहारिक, सामाजिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय उठाना न चाहिए और न किसी के द्वारा उठवाना 9 और आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में अहिंसा का प्रयोग चाहिए और न चोरी के काम में किसी प्रकार एवं उपयोग अव्यवहार्य नहीं है। सहायता न करनी चाहिए-इसका नाम दत्त ___अहिंसा समस्त प्राणियों का विश्राम-स्थल है, व्रत-अस्तेय व्रत है । यह व्रत बुद्धिमान मानव को क्रीड़ा भूमि है और मानवता का शृंगार है। अहिंसा पूर्ण आयु प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को अवश्य र का सामर्थ्य असीम है। __ मानना चाहिए। (२) सत्य व्रत-मन, वचन और काया इन जैन-धर्म में इसे अदत्तादान कहते हैं। अदत्त ] तीनों करणों से असत्य का सेवन न करना ही यानी किसी का न दिया हुआ और आदान यानी सत्य व्रत कहलाता है । सत्य व्रत ग्रहण करने वाले ग्रहण करना-किसी का न दिया हुआ ग्रहण करना, का व्यक्ति को असत्य का त्याग करना चाहिए। शुक्र यही व्रत की दृष्टि से चोरी है। और चोरी का AIRVANA १ दैनिक ब्रिगेडियर १२ नवम्बर ८५ लेख भगवान महावीर की शिक्षा में विश्व कल्याण के सूत्र-ले. महासती श्री उमरावकुवरजी अर्चना । २ मुनि द्वय अभिनन्दन ग्रन्थ १९७३ लेख जैन धर्म का प्राण तत्व अहिंसा पृ० ११८-१२० ले. साध्वी श्री पुष्पलता जी। ४१७ । पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास Cend 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ - Jain Education International el Private Personalise Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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