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________________ डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल द्वारा संपादित प्राकृत में उनका 'उवसग्गहर स्तोत्र वृत्ति' प्रसिद्ध का राजस्थान के शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सची में भी है। बहुत से स्तोत्र-ग्रन्थों की नामाबलि मिल सकती प्राचीन हिन्दी में इन्होंने 'चतुर्विशति जिनहै। 'स्तवन' ग्रन्थों की विस्तृत सूची डा० प्रेमसागर स्तुति', 'स्तम्भन पार्श्वनाथ स्तवन', 'विरहमान जैन रचित 'जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि' में उप- जिन स्तवन' आदि की रचना की है। इनके अतिलब्ध है। रिक्त 'जिनकलशसूरिचतुष्पदी' में सूरिजिनकुशल हिन्दी जैन-स्तोत्र-साहित्य की महिमा का इन्होंने गान किया है। हिन्दी में स्तोत्र-साहित्य का ग्रथन मौलिक रूप ४. श्री पद्मतिलक (१५वीं शती का उत्तरार्द्ध)में नहीं हआ है। अपनी लोकप्रियता एवं काव्य- इनके द्वारा रचित 'गर्भ विचार स्तोत्र' प्रसिद्ध है । । सम्पदा के कारण पंचस्तोत्रों-'भक्तामर', 'कल्याण इस स्तोत्र ग्रन्थ में गर्भवास के दुःखों के वर्णन की 18 मन्दिर', 'विषापहार', 'एकीभाव' और चविंशति पृष्ठभूमि में इससे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना || स्तवन' ने हिन्दो जैन कवियों का ध्यान अपनी भगवान ऋषभनाथ से की गयी है। ओर आकृष्ट किया है और फलस्वरूप इनके ५. विनयप्रभ उपाध्याय (सं० १५१२)-इन्होंने 1 बीसियों पद्यानुवाद प्रस्तुत किये हैं। इन अनुवादों अनेक स्तुतियाँ लिखी हैं जिनमें 'सीमन्धर स्वामि में यद्यपि कवियों ने अपनी मौलिक प्रतिभा का उप स्तवन' प्रसिद्ध है। योग कर इन्हें रस-संवेद्य बनाने की चेष्टा की है, ६. अभयदेव (सं० १६२६)-इनके 'थंभण पार्श्वकिन्तु, इतना होते हुए भो एक भी अनुवाद ऐसा नाथ स्तवन' में स्तंभनपुर में विद्यमान भगवान नहीं हुआ है जो मूल ग्रन्थ की समकक्षता प्राप्त कर पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रार्थना है। सके । इसका परिणाम यह हुआ कि एक ही कृति ७. गणिक्षतिरंग- इनका 'खैराबाद पार्श्व जिन | के अनेक अनुवाद भिन्न-भिन्न कवियों द्वारा प्रस्तुत स्तवन' खैराबाद स्थित भगवान पार्श्वनाथ की किए गए हैं । इन अनूदित स्तोत्रों के अतिरिक्त कुछ प्रतिमा को लक्ष्य कर लिखा गया है। मौलिक स्तोत्र भी हिन्दी के जैन कवियों द्वारा ८. ब्रह्मजिनदास-ये संस्कृत, प्राकृत एवं देश्यप्रणीत हुए हैं। इन स्तोत्रों को तीन वर्गों में विभा भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान थे। संस्कृत में आपने जित किया जा सकता है अनेक पूजाएँ लिखी हैं। हिन्दी में इन्होंने 'कथा (क) विनती (ख) स्तुति (ग) प्रार्थना । इन कोष संग्रह' लिखा जिसमें 'पंचपरमेष्ठी गुण वर्णन' स्तोत्रों की रचना करने वालों में कुछ प्रमुख हैं- संगृहीत है। इसमें पंचपरमेष्ठियों की प्रार्थना की १. विनयप्रभ-इनकी पाँच स्तुतियाँ प्रसिद्ध हैं। गयी है। प्रत्येक स्तुति में २०-३० के लगभग पद्य हैं । 'सीम- ह. ठकरसी-सोलहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध न्धर स्वामि स्तवन' को भी इन्हीं की रचना माना माना कवियों में इनकी गणना की जाती है। अन्य ग्रन्थों गया है। के अतिरिक्त स्तोत्र से सम्बन्धित इनकी दो रचनाएँ २. मेरुनन्दन उपाध्याय (सं. १४१५)-इनके प्राप्त हुई हैं-चिन्तामणि जयमाल और सीमंधर दो स्तवन 'अजित शान्ति स्तवन' और 'सीमन्धर स्तवन । जिन स्तवनम्' प्राप्त हैं। १० पद्मनन्दि-इनके दो स्तोत्र ग्रन्थ प्रकाश ३. उपाध्यय जयसागर (सं. १४०८-६५)-ये में आये हैं-देवतास्तुति तथा परमात्मराजसंस्कृत, प्राकृत और हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान थे। स्तवन । ४०० पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास SE (6,760 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Edison International PNate & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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