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________________ - इसकी प्रेरणा से रचित कुछ अन्य रचनाएँ प्रसिद्ध आदि; १६वीं शती में रामविजय, क्षमाकल्याण हैं। जैसे मेरुविजय की जिनानन्द स्तति चविश- आदि स्तोत्रकार हए हैं। तिका, यशोविजय उपाध्याय की ऐन्द्रस्तुति चतुर्वि- अगरचन्द नाहटा ने पुण्यशील रचित 'चर्विशतिका, हेमविजय रचित चतुर्विंशतिका आदि । शति जिनेन्द्र स्तवनानि' की भूमिका में अनेक स्तोत्र ६. विषापहार स्तोत्र-इसके रचयिता धनंजय ग्रन्थों की सूचना दी है। (८-6वीं शती) हैं । ऐसी मान्यता है कि इसके पाठ 'Ancient Jain names' नामक एक पुस्तक का से सर्प का विष दूर हो जाता है। सम्पादन Charlottle Krause नामक एक जर्मन १०. वादिराजसूरि के स्तोत्र-'एकीभावस्तोत्र', विद्वान द्वारा हुआ है जो ‘उज्जैन सिन्धिया ऑरि'ज्ञानलोचन स्तोत्र' और 'अध्यात्माष्टक'--ये तीन यन्टल इन्स्टीट्यूट' द्वारा सन् १९५२ ई० में प्रकास्तोत्र प्रसिद्ध हैं। 'एकीभाव स्तोत्र' का अनुवाद शित हो चुका है। इसमें आठ स्तोत्र संग्रहीत है जो हिन्दी के अनेक जैन कवियों ने किया है। भाषा और भाव, दोनों दृष्टियों से उत्तम हैं। अपभ्रंश स्तोत्र ११.आचार्यहेमचन्द्र के स्तोत्र-आचार्यहेमचन्द्र ने कुमारपाल की प्रार्थना पर वीतरागस्तोत्र' की रचना अपभ्रंश भाषा में भी जैन भक्तों ने कुछ स्तोत्रों की । इसके बीस भाग हैं और प्रत्येक भाग में आठ की रचना की है किन्तु इनकी संख्या संस्कृत एवं है या नव स्तोत्र हैं । भाषा बडी कवित्वमयी है। इनके प्राकृत की तुलना में अत्यल्प है। काव्य के प्रसंग रचे दो और स्तोत्र हैं-महावीर स्तोत्र और महा के भीतर लिखे गए कुछ स्तोत्र भाषा और भाव की देव स्तोत्र। दृष्टि से उत्कृष्ट हैं किन्तु स्वतन्त्र रूप में लिखे गए स इनके अतिरिक्त और भी स्तोत्रकार हुए हैं स्तोत्र काव्य गुण की दृष्टि से बहुत महत्व नहीं रखते। जिन्होंने बडी ललित पदावली में अपने आराध्यों ___ स्वयम्भू के 'पउमचरिउ' एवं पुष्पदन्त के महाकी भक्ति में स्तोत्र ग्रन्थों का प्रणयन किया है । १४ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जिनरत्नसूरि, अभय- में की गयी है। . पुराण में जिनदेवता की स्तुति बड़े भावपूर्ण शब्दों तिलक, देवमूर्ति, जिनचन्द्रसूरि एवं उत्तरार्द्ध में जिनकुशल सूरि, जिनप्रभसूरि, तरुणप्रभसूरि, लब्धि धनपाल (११ वीं शती) ने भगवान महावीर निधान, जिनपद्मसूरि, राजेशखराचार्य आदि स्तोत्र • की प्रशंसा में 'सत्पुरीय महावीर उत्साह' स्तोत्र की * कर्ता हुए हैं। रचना काव्यमयी भाषा में की है । १३ वीं शती के || जिनप्रभ सूरि ने कुछ स्तोत्र ग्रन्थों की रचना की () १५ वीं सदी में जिनलब्धसूरि, लोकहिताचार्य, लब्धसूरि, लोकहिताचार्य, है जिनमें प्रसिद्ध है-जिनजन्म महः स्तोत्रम्; जिन 720) | भुवनहिताचार्य, विनयप्रभ, मेरुनन्दन, जिनराज जन्माभिषेक. जिन महिमा. मनिसवत स्तोत्रम | सूरि, जयसागर, कीर्ति रत्नसूरि आदि स्तोत्रकर्ता आदि । इनका काल विक्रम की १३ वीं शताब्दी र है। श्री धर्मघोष सूरि (सं. १३०२-५७ वि.) ने २७ . १६ वीं शती में क्षेमराज, शिवसुन्दर, साधु पद्यों में 'महावीर कलश' की रचना की है । महा- IKE ३, सोम आदि; १७ वीं शती में जिनचन्द्रसूरि, समय- कवि रइधू न आत्म सम्बोधन, दश लक्षण जयमाल | राज, सूरचन्द्र, पद्मराज, समय सुन्दर, उपाध्याय और संबोध पंचाशिका स्तोत्र की रचना अपभ्रंश गुणविजय, सहजकीत्ति, जीव वल्लभ आदि । १८ में की है । गणि महिमासागर ने 'अरहंत चौपई' वीं शती में धर्मवद्धन, ज्ञानतिलक, लक्ष्मीवल्लभ नामक स्तोत्र का प्रणयन किया है। ३६६ पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास 6. साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ des Jhin Education Internationa Por Private & Personal Use Only www.jalhirorary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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