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________________ प्रायः यह कहा जाता है कि महावीर के सिद्धान्त बड़े कठोर और जटिल हैं । उनको समझना और समझकर उनके अनुरूप अपना जीवन चलाना वर्तमान परिस्थितियों में अत्यन्त कठिन है, पर जरा गहराई से चिन्तन करें तो यह स्पष्ट प्रतिभासित होगा कि वास्तव में स्थिति ऐसी नहीं है । यह हमारे समझ की ही कमी है कि हम उनके सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन सन्दर्भों में नहीं देखकर दार्शनिक समस्याओं और मान्यताओं के सन्दर्भ में देखते और उनका मूल्यांकन करते हैं । सत्य को अनुभूति के भगवान् महावीर ने बारह वर्षों से अधिक समय तक कठोर साधना और तपस्या कर जीवन और प्रकृति के स्तर पर समझा था । उन्होंने यह महसूस किया कि सभी प्राणियों में आत्म-चेतना का तत्व व्याप्त है, सबमें अपनी-अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार सुख-दुःख को अनुभव करने की क्षमता है, सबमें अपनी सुषुप्त शक्तियों को जागृत कर चेतना का चरम विकास करने का सामर्थ्य और स्वाधीन भाव हैं। सभी प्राणियों में मानव श्र ेष्ठ है । उसमें संयम और धर्माराधना का विशिष्ट गुण है । राग-द्वेषरूप कर्म बीजों को नष्ट कर वह समता भाव में रमण करने की साधना में प्रवृत्त हो सकता है । उसमें श्रद्धा और साधना में प्रवृत्त होने की अद्भुत शक्ति है । महावीर ने मानव की इस शक्ति को धर्माराधना के केन्द्र में प्रतिष्ठापित किया और विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के प्रति रही हुई दीन भावना को मिटाया। उन्होंने मनुष्य के अन्तर्मानस में रही हुई कर्म शक्ति और पुरुषार्थ साधना को सर्वोपरि माना । पर यह बड़ी विचित्र स्थिति है कि महावीर को हुए ढाई हजार वर्षो से अधिक समय हो गया है, फिर भी हम मानवीय शक्ति और उसकी पुरुषार्थ साधना को अपनी गतिविधियों के केन्द्र में प्रतिष्ठापित नहीं कर पाये हैं | विविध अन्धविश्वासों, भाग्य प्रेरित विधि-विधानों जादू-टोनों, मनोतियों आदि में हमारा विश्वास है । अज्ञात लोक के रहस्यों व भीति प्रसंगों से हम आक्रान्त और भयभीत हैं । लगता है महावीर के मन, वचन और कर्म संस्कार से हमारी चेतना के तार नहीं जुड़े । हम जुड़े हैं उन संस्कारों और प्रसंगों से जिनको आत्मचेतना के साक्षात्कार में बाधक समझकर, महावीर ने ठुकरा दिया था । लगता है हमने अपने जीवन पथ को ही गलत दिशा की ओर मोड़ दिया है । इसलिए निरन्तर चलते रहने पर भी हम अपने गंतव्य को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं । महावीर का जीवन समुद्र की अनन्त गहराई और प्रशान्तता का चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम Jaimeducation Internation साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Private & Personal Use Only सी-२३५ - ए, दयानन्द मार्ग, तिलकनगर, जयपुर-४ -डॉ० नरेन्द्र भानावत भगवान् महावीर के सिद्धान्तों का दैनिक जीवन में उपयोग ३११ www.rary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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