SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BHI -- 6 दो शब्द -डॉ० एम० पी० पटैरिया, संस्कृत विभाग, एस० डी० डिग्री कालेज, मठ-लार, देवरिया (उ० प्र०) र • अभिनन्दन ?...." किसका अभिनन्दन ?..... स्तर के गुण/चरित्र से युक्त देखा गया है। यदि व्यक्ति का, उसके गुणों का, चरित्र का, या"? उक्त चिन्तन को सिद्धान्त मान लें, तो विविध . गुण/चरित्र आदि तो व्यक्ति केन्द्रित/आधा- साधनों/माध्यमों के सहकार से स्वयं को 'गुणरित होते हैं । व्यक्ति के बिना, उनका न तो अस्तित्व वान्' 'चरित्रवान्' विज्ञापित कराने वाले 'दोहरेरहता है, न ही विकास/उत्कर्ष हो पाता है। इस- व्यक्तित्व' युक्त व्यक्ति भी अभिनन्दन की पात्रता लिए, अभिनन्दनीय 'व्यक्ति' है; न कि उसके गुण, पा जायेंगे। चरित्र आदि। • तब, क्या ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य, ● उक्त चिन्तन, को यदि "सिद्धान्त' मान शौर्य-पराक्रम, क्रीड़ा-व्यायाम आदि क्षेत्रों में उत्कृष्ट कौशल अजित करने वाले व्यक्ति को अभिनन्दन लिया जाये, तो 'व्यक्ति' के नाते 'चोर-उचक्के', 'लोफर-लफंगे' भी अभिनन्दन के पात्र बन का पात्र माने? जायेंगे। • यह एक ऐसा चिन्तन है, जिसे सिद्धान्ततः स्वीकार करते समय, व्यक्ति के कौशल में सतत् । • 'व्यक्ति' अभिनन्दनीय है; पर, 'व्यक्ति' के अभ्यास-नैरन्तर्य की सन्तुष्टि अपेक्षित रहती है। नाते नहीं, बल्कि, आदर्श गुणों का, उत्कृष्ट-चरित्र क्योंकि, प्रायः यह पाया गया है कि उक्त प्रकार के का 'आधार' होने के नाते । क्योंकि, अनुकरणीय क्षेत्रों में अजित उत्कृष्टताएँ, यदा-कदा शिथिलता आदर्शों/गुणों से युक्त व्यक्तित्व सदा से ही 'अभि का भी वरण कर लेती हैं। जिससे, व्यक्ति की नन्दनीय' बनता आया है। उपलब्धि का उत्कृष्टता-स्तर, शाश्वत समरसता से • आजकल, व्यक्ति के 'व्यक्तित्व' का, उसके च्युत हो जाता है। 'गुणों' का, 'चरित्र' का सही-सही ज्ञान/अनुमान . तो क्या वे अभिनन्दनीय हैं, जो वैराग्य कर पाना बड़ा दुष्कर है। वस्तुतः, सार्वजनिक/ त्याग, तप साधना, ध्यान-समाधि आदि के क्षेत्र में र सामाजिक-स्तर पर, व्यक्ति के जो गुण/चरित्र, जिस सुस्थापित हो चुके हैं ? स्वरूप-स्तर के परिलक्षित होते हैं, उसका एका- . इस चिन्तन को सिद्धान्ततः स्वीकार कर न्तिक/वैयक्तिक व्यक्तित्व, उनसे विपरीत स्वरूप- लेने पर, वे व्यक्ति भी अभिनन्दन के हकदार मान MC ( १२ ) साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थल. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy