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________________ MEHEYEOS राष्ट्र का अकल्याण भी अवश्यम्भावी है। हाँ एक लिये गौरव का विषय है, इतिहास साक्षी है, यहाँ बात अवश्य है कि स्थिति चाहे विषम क्यों न हो समय-समय पर अनेक वीरांगनाएँ एवं महासतियाँ गई हो अभी वह असाध्य नहीं हुई है। बहनों को हुई हैं जिन्होंने अपने सच्चरित्र से मानव समाज को ? सतर्क हो जाना चाहिये और इस कुमार्ग से लौट मार्गदर्शन प्रदान किया है, जैन धर्म की उन्हीं महा- ॥ जाना चाहिये। तेजी से दौड़कर उस चौराहे पर सती परम्परा में परमादरणीया साध्वीरत्न विदुषी । पहुँच जाना चाहिये जहाँ से वे उस गलत मार्ग पर श्री कुसुमवतीजी का नाम स्मरण करते हुए गौरव चढ़ गई थीं और फिर सोच-समझकर उन्हें सही का अनुभव होता है, जिनका जीवन त्याग, वैराग्य मार्ग पर फिर से तीव्रता के साथ गतिशील हो संयम का प्रतीक रहा है, जिनके जीवन के ५० से जाना चाहिये, इसी में उनका, सारे राष्ट्र का और भी ऊपर बसन्त साधनाकाल में व्यतीत हुए हैं और जाति का कल्याण निहित है। सभ्यता की चका- इस दीक्षा स्वर्ण जयन्ती की पावन पुनीत वेला में चौंध से निकलकर संस्कृति के शीतलताप्रद क्षेत्र में उन्हीं की प्रधान शिष्या साध्वीरत्न श्री दिव्यप्रभा ही उसे विचरण करना चाहिये । इसके लिये आव- जी एम० ए०, पी-एच० डी० ने अपने श्रद्धासुमन श्यक यह है कि नारी यह समझ ले कि उसका स्व- समर्पित करने हेतु समाज के सम्मुख एक योजना रूप और उसकी आदर्श भूमिका क्या है, उसकी प्रस्तुत की और इस निमित्त से सम्पूर्ण समाज को सार्थकता किस क्षेत्र में है और उसके आदर्श क्या भी अभिनन्दन करने का एक अवसर प्राप्त हुआ हैं ? वह स्वयं को पहचानने की क्षमता विकसित है। प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ में श्री दिव्यप्रभाजी ने करे-यह परमावश्यक है। आचार्य विनोबा भावे अपनी प्रखर प्रतिभा का परिचय देते हुए जो संपाकी यह मान्यता युक्तियुक्त और औचित्यपूर्ण प्रतीत दन किया है उसी के फलस्वरूप पाठकों के सम्मुख होती है __ यह ग्रन्थ नवीन शैली व नवीन सामग्री के साथ ___ 'बहनों को तो गहरा अध्ययन करना चाहिये, प्रकाशित हो रहा है । महासती श्री दिव्यप्रभाजी क्योंकि सारा समाज उनके हाथ में है । ऐसी हालत ने राजस्थानी जैन साध्वियों में सर्वप्रथम पी-एच. में उनमें सरस्वती जैसी तेजस्विता आनी चाहिये। डी० प्राप्त कर समाज के गौरव में चार चाँद लगाये इसके लिये साधारण ज्ञान या अध्ययन अपर्याप्त है हैं । ग्रन्थ को अल्प समय में तैयार कर श्री श्रीचन्द । -आत्मज्ञान होना चाहिये । बहनों को अध्यात्म- जी सुराणा ने सहयोग प्रदान किया है। ज्ञातनिष्ठ बनना होगा। अज्ञात रूप में जिनका भी सहयोग रहा है वे सभी आज की इस विषम परिस्थिति में भी नारी साधुवाद के पात्र हैं। समाज के लिये उसका गौरवपूर्ण इतिहास उसके साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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