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________________ EHATI DOHAMA मामी की लगन के परिमाणस्वरूप मामी चौथबाई ने भी पढ़ना-लिखना सीख लिया। अल्पवय में - कुमारी नजर ने शिक्षिका का कार्य कर दिया। नैराग्य : परिपक्वता की ओर-नजरकमारी की स्कूली शिक्षा तो चल ही रही थी । अध्ययन में कहीं कोई बाधा नहीं थी। इस शिक्षा के साथ ही वैराग्य रंग भी चढ़ रहा था। रात्रि भोजन का त्याग तो पहले था ही, अब रात्रि में पानी पीने का भी त्याग कर लिया। सात-आठ वर्ष की आयु में प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल, समकित के सतरह बोल, पुच्छिसुणं,नमिपव्वजा आदि ज्ञान कण्ठस्थ कर लिया। तपोमूर्ति श्री सोहनकुवरजी महाराज के त्यागमय जीवन और वैराग्यमय उपदेशों से नजर कुमारी के हृदय में वैराग्य की भावना प्रबल होती जा रही थी। नानाजी का स्वर्गवास- समय अपनी गति से चल रहा था। चलना उसकी नियति है । किसी के रोकने से भी वह रुकता नहीं है। इधर नानाजी श्री हीरालालजी का स्वास्थ्य अस्वस्थ रहने लगा था और दिन प्रतिदिन गिरता ही जा रहा था। पूत्री सोहनबाई के विधवा होने का उन्हें जबर्दस्त धक्का लगा था और अन्दर ही अन्दर उन्हें चिन्ता का घुन लग गया था। अब वे निरन्तर अस्वस्थ रहने लगे और स्थिति यहाँ तक आ पहुँची कि इस अस्वस्थता में उन्होंने एक दिन अचानक परिवार के सभी सदस्यों को रोता-बिलखता छोड़कर सदा-सदा के लिए अपनो आँखें मूद ली। पिता की मृत्यु से पुत्र कन्हैयालालजी और पुत्री सोहनबाई को अत्यधिक दुःख हुआ। सोहनबाई पर तो मानो पहाड़ ही टूटकर गिर पड़ा हो । नजर भी अब कुछ सयानी हो गई थी और सब कुछ समझने लगी थी। अपने नाना की मृत्यु के बाद वह विचार करने लगी-'यह मृत्यु क्या है ? व्यक्ति मरता क्यों है ? मृत्यु इस प्रकार प्रियजनों को क्यों उठा कर ले जातो है ? क्या मुझे भी इसी प्रकार मृत्यु उठाकर ले जायेगी ? क्या इससे बचने का कोई उपाय नहीं है ? इसी प्रकार के अनेकानेक प्रश्न उसके मानस-पटल पर मंडराने लगे। उसने निश्चय किया कि अपने प्रश्नों के उत्तर गुरुणीजी श्री सोहनकुवरजी महाराज से पूछना चाहिए । सद्गुरुवर्या से ही समाधान / मिलाने की सम्भावना है। नजरकुमारी सद्गुरुवर्या श्री सोहनकुंवरजी महाराज के पास गईं । अन्य दिनों की अपेक्षा आज गुरुवर्या ने नजर को कुछ गम्भीर और विशिष्ट मुद्रा में देखा । उन्होंने सहज ही पूछ लिया-"नजर ! आज कौन-सी विशेष बात है, जो इतनी गम्भीर हो ।” "बात विशेष है अथवा नहीं। यह तो मैं नहीं जानती । किंतु आज मैं आपश्री से कुछ पूछना चाहती हूँ। मेरे मानस पटल पर उथल-पुथल मची हुई। आपश्री से समाधान की अपेक्षा है।" नजर ने कहा। महासती श्री सोहनकुंवरजी महाराज साहब ने जब नन्ही बालिका के मुख से यह कथन सुना तो वे उसे पहले तो कुछ क्षण तक एकटक देखती रही फिर कहा-"अच्छा ! पूछो तो क्या पूछना है तुम्हें ।" "महाराज सा० मौत क्यों आती है ? बिना किसी भूमिका के नजर कुमारी ने पूछा। महासती श्रीसोहनकुंवरजी महाराज नजर के इस प्रश्न से एकाएक चौंक उठी। उन्हें इस प्रकार के प्रश्न की अपेक्षा नहीं थी। उन्होंने शान्त भाव से कहा-"मृत्यु ! हर उस प्राणी की होगी जिसने जन्म लिया है । जिस प्रकार दिन के बाद रात आती है, उसी प्रकार जन्म के बाद मृत्यु का आना स्वाभाविक है।" क्या मृत्यु से बचने का कोई उपाय है ?" नजर ने दूसरा प्रश्न किया। १२८ द्वितीय खण्ड : जीवन दर्शन - साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For private. Dersonalitee Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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