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________________ ने मिलकर आपको चन्दनबाला श्रमणी संघ की अध्यक्ष नियुक्त किया और श्रमण संघ के उपाचार्य श्रीगणेश लालजी म. समय-समय पर अन्य साध्वियों को प्रेरणा देते हुए कहते कि देखो, विदुषी महासती सोहन है| कुवरजी कितनी पवित्र आत्मा है। उनका जीवन त्याग-वैराग्य का साक्षात् प्रतीक है। तुम्हें उनका । अनुसरण करना चाहिए। विदुषी महासती सोहनकुवरजी जहां ज्ञान-ध्यान में तल्लीन थी वहां उन्होंने उत्कष्ट तप की भी अनेक बार साधनाएँ की। उनके तप की सूची विस्तृत है। आप जब भी तप करतीं तब पारणे में पौरसी करती थीं या पारणे के दिन आयं बिल तप करतीं जिससे पारणे में औद्दशिक और नैमित्तिक दोष न लगें। आभ्यन्तर तप की सफल साधिका बाह्य तप के साथ आन्तरिक तप की साधना भी आपकी निरन्तर चलती रहती थी। सेवा भावना आपमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। आप स्व-सम्प्रदाय की साध्वियों की ही नहीं किन्तु अन्य । सम्प्रदाय की साध्वियों की भी उसी भावना से सेवा करती थी। आपके अन्तर्मानस में स्व और पर का भेद नहीं था। आचार्य श्री गणेशलाल जी महाराज की शिष्या केसरकुवर जी, जो सायकिल एक्सीडेंट में सड़क पर गिर पड़ी थीं, संध्या का समय था, आप अपनी साध्वियों के साथ शौच भूमि के लिए गईं, तब आपने उन्हें दयनीय स्थिति में गिरी हुई देखा । उस समय आपके पास दो चद्दर ओढ़ने को थीं। उनमें से आप एक चादर की झोली बनाकर और सतियों की सहायता से स्थानक तक उठाकर लाईं और उनकी सेवा-सुश्र षा की। इसी प्रकार महासती नाथकुवर जी आदि की भी आपने अत्यधिक सेवा-सुश्रुषा की और अन्तिम समय में उन्हें संथारा करवाकर सहयोग दिया। आचार्य हस्तीमल जी म० की शिष्याएँ महासती अमरकुवर जी, महासती धनकुवर जी, महासती गोगा जी आदि अनेक सतियों की सुश्रूषा की और संथारा आदि करवाने में अपूर्व सहयोग दिया। चन्दनबाला श्रमणीसंघ की प्रथम प्रवर्तिनी सन् १९६३ में अजमेर में श्रमण संघ का शिखर सम्मेलन हुआ। उस अवसर पर वहाँ अनेक महासतियां एकत्र हुईं। उन सभी ने चिन्तन किया कि सन्तों के साथ हमें भी एकत्र होकर कुछ कार्य करना चाहिए। उन सभी ने वहां पर मिलकर अपनी स्थिति पर चिन्तन किया कि भगवान् महावीर के पश्चात् आज दिन तक सन्तों के अधिक सम्मेलन हुए, किन्तु श्रमणियों का कोई भी सम्मेलन आज तक | नहीं हुआ और न श्रमणियों की परम्परा का इतिहास ही सुरक्षित है । भगवान् महावीर के पश्चात् साध्वी परम्परा का व्यवस्थित इतिहास न मिलना हमारे लिये लज्जास्पद है जबकि श्रमणों की तरह श्रमणियों ने भी आध्यात्मिक साधना में अत्यधिक योगदान दिया है। इसका मूल कारण है-एकता व एक समाचारी का अभाव । अतः उन्होंने श्री वर्तमान चन्दनबाला श्रमणी संघ का गठन किया और श्रमणियों के १ ज्ञान-दर्शन-चारित्र के विकास हेतु इक्कीस नियमों का निर्माण किया। उसमें पच्चीस प्रमुख साध्वियों की एक समिति भी बनाई गई। चन्दनबाला श्रमणी संघ की प्रवर्तिनी पद पर सर्वानुमति से आपश्री को नियुक्त किया गया जो आपकी योग्यता का प्रतीक था। ११६ द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन 9 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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