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________________ दीक्षा पचमड़ा (बाड़मेर) में हुई थी और दोनों भाइयों ने शिवगंज में दीक्षा ग्रहण की थी। दीक्षा के समय आपकी आयु नौ साल थी और आपके भ्राताओं की क्रमशः १३ और १४ साल की आयु थी। दोनों k भ्राता बड़े ही मेधावी थे । कुछ ही वर्षों में उन्होंने आगम साहित्य का गहन अध्ययन कर लिया। किन्तु । दोनों ही युवावस्था में क्रमशः मदार (मेवाड़) और जयपुर में संथारा कर स्वर्गस्थ हुए । आपका दीक्षा नाम महासती सोहनकुंवर जी रखा गया। मधुरभाषिणी सोहनकुवरजी म० आपने दीक्षा ग्रहण करते ही आगम साहित्य का गहन अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। इसके साथ । ही थोकड़े साहित्य का भी अध्ययन प्रारम्भ कर दिया । आपने शताधिक रास, चौपाइयाँ तथा भजन भी कण्ठस्थ किये। आपकी प्रवचन शैली अत्यन्त मधुर थी। जिस समय आप प्रवचन करती थी उसमें विविध आगम रहस्यों के साथ रूपक, दोहे, कवित्त, श्लोक और उर्दू शायरी का भी यत्र-तत्र उपयोग CIL करती थी। विषयानुरूप आपकी भाषा में ओज और कभी शांत रस प्रवाहित होता था और जनता आपके प्रवचनों को सुनकर मन्त्रमुग्ध हो जाती थी। अध्ययन के साथ ही तप के प्रति आपकी स्वाभाविक रुचि थी। माता के संस्कारों के साथ तप की परम्परा आपको विरासत में मिली थी। आपने अपने जीवन की पवित्रता हेतु अनेक नियम ग्रहण किए थे, उनमें से कुछ नियम इस प्रकार हैं (१) पंच पर्व दिनों में आयम्बिल, उपवास, एकासन, नीवि आदि में से कोई न कोई तप अवश्य करना। (२) बारह महीने में छह महीने तक चार विगय ग्रहण नहीं करना । केवल एक विगय का ही उपयोग करना। (३) छः महीने तक अचित्त हरी सब्जी आदि का उपयोग नहीं करना । (५) चाय का परित्याग । (५) तीन शिष्याओं के पश्चात् शिष्या बनाने का त्याग किया। इनके पहले तीस-पैंतीस साध्वियों को दीक्षा दी किन्तु अपनी शिष्या नहीं बनाई। (६) प्लास्टिक, सेलुलाइड आदि के पात्र, पट्टी आदि कोई वस्तु अपनी नेश्राय में न रखने का निर्णय । (७) जो उनके पास पात्र थे, उनके अतिरिक्त नए पात्र ग्रहण करने का भी उन्होंने त्याग कर दिया। (८) एक दिन में पाँच द्रव्य से अधिक द्रव्य ग्रहण न करना । (६) प्रतिदिन कम से कम पच्चीस गाथाओं का स्वाध्याय करना । (१०) बारह महीने में एक बार पूर्ण बत्तीस आगमों का स्वाध्याय करना । इस प्रकार उन्होंने अपने जीवन को अनेक नियमों और उपनियमों से आबद्ध बनाया। उनके जीवन में वैराग्य भावना अठखेलियां करती थी। यही कारण है कि अजमेर में सन् १९६३ में श्रमणी संघ द्वितीय खण्ड : जीवन दर्शन C . साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International Tom Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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