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________________ N नि मैं रुख जोड़ी धर्म सं, गुर्वाज्ञा करणं हि सर्वगुणेभ्योऽतिरिच्यते । अब कित झुकतो तोल ।" -त्रिषष्टिशलाका पुरुष० १/६ ___ अर्थात्-दुःख के बिना सहन किये सुख कहाँ अर्थात् गुरु की आज्ञा मानने का गुण शिष्य में रखा है ? दुःख के बिना सुख वैसे ही सम्भव नहीं सब गुणों से बढ़कर होता है। जैसे मुख के बिना वाणी सम्भव नहीं। मैंने तो गुणों का जनक है ज्ञान, इसी कारण जैनागमों | अपना नाता धर्म से जोड़ दिया है, मैं अधिक तोलने में ज्ञान को प्रथम स्थान दिया गया हैYam वाला नहीं हैं, अर्थात् मैं आत्मकल्याण के मार्ग से "पढम नाणं तओ दया" विचलित होने वाला नहीं हूँ। और ज्ञान की जननी विद्या है। महासती ___ साध्वी के रूप में बिना गुरु की शुश्रूषा के, साध्वी श्री कसुमवतीजी ने गुरुणी महासती श्री बिना गुरु की कृपा से, बिना गुरु के आशीर्वाद से सोहनकवरजी के चरणों में बैठकर प्राकृत, संस्कृत परमपद की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? किसी आदि भाषाओं का अध्ययन किया । जैनागम ग्रन्थों TU आचार्य की यह उक्ति सत्याधारित है और सिद्धान्त ग्रन्थों के अतिरिक्त वैदिक वाङ्मय "बिना हि गुर्वादेशेन सम्पूर्णाः सिद्ध यः कुतः” की भी ज्ञाता हैं। प्रखर प्रतिभाशाली होने के ___ अर्थात्-- कैसे मिल सकती हैं सम्पूर्ण सिद्धियाँ कारण निरन्तर अध्ययन, चिन्तन और मनन द्वारा बिना गुरु के अनुशासन से ? महासती श्री सोहन अपने ज्ञान का विकास किया और कर रही है।। कुंवरजी साध्वी बालिका को अनेक प्रकार की व्यक्तित्व निर्माण-महासती श्री कसुमवतीजी वैराग्य की कहानियां सुनाती थीं, जिससे आध्या- एक ऐसी महान आत्मा है जिन्होंने दीक्षित होने के त्मिक जीवन के उच्च, उच्चतर और उच्चतम पश्चात् पंच महाव्रतों के (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, सोपानों पर चढ़ने के लिए उनके संस्कार सुदृढ ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) पालन के द्वारा कर्मों की बनें, उनका बौद्धिक विकास हो और उनके मन में उत्तरोत्तर निर्जरा करते हुए अपने सहज गुणों को धर्म के प्रति स्थिरता और दृढ़ता आये। समय की पहचान कर, अपने महान व्यक्तित्व का निर्माण प्रगति के साथ-साथ गुरुकृपा से साध्वी का श्रत- किया। ऐसा व्यक्तित्व जिसने बड़े से छोटे तक सब ज्ञान भी प्रगति पथ पर था। विहार में जैसे-जैसे का प्रभावित किया आर स्वय जैसे को प्रभावित किया और स्वयं न तो विश्व के सती मण्डल के चरण आगे बढ़ते जा रहे थे. वैसे- प्रलोभनों से और न किसी व्यक्ति के तर्क, मानवैसे साध्वी कुसुमवती के संस्कार भी धर्म-क्षेत्र में सम्मान से ही प्रभावित हुई। आगे बढ़ते जा रहे थे। इस समय उनकी आयु प्रदचन-शैली--प्रवचन में रोचकता, धारावामात्र तेरह वर्ष की थी। हिक वाणी में ओजस्विता, शैली में माधुर्यता। ___ अध्ययन-नवदीक्षित साध्वी श्री कसूमवती इतना सब कुछ होने पर भी प्रवचन में पाण्डित्य की प्रतिभा से प्रभावित होकर गुरुणी महासती श्री का प्रदर्शन नहीं, शैली में बनावट नहीं। दो दिन सोहनकुंवरजी ने तिथिवार की शुद्धि देखकर विद्या प्रवचन सुनने का सौभाग्य मिला। धर्म का विवेचन का आरम्भ भी करा दिया था। करते हुए कहती हैं___ महासती श्री सोहनकुंवरजी को साध्वी श्री धम्मो मंगल मुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। कसुमवती जैसी शिष्या मिलीं जो सुयोग्य शिष्या देवावि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥ के सभी गुणों से सम्पन्न हैं । सुयोग्य शिष्या के गुणों -दशवै सू. १/१ का निर्देश करते हुए शास्त्रकार कहते हैं-- अर्थात्-संसार का सबसे उत्कृष्ट तत्त्व या प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना - साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ SEOVE Jain Education International For Private & PersonalUse Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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