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________________ दुख के दिन व्यतीत कर रही थी। नजर जब ७-८ ने भी विक्रम संवत् २०३० कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी वर्ष की थी तब मेरा जन्म हुआ। मेरे जन्म से नजर के दिन उनके पास आहती दीक्षा ग्रहण की जो 5 को बहुत खुशी हुई। वे मुझे खिलाती लाड़ लड़ाती आज दिव्यप्रभा जी के नाम से विश्रुत है तथा एम. C - और छोटे भाई को लाड़-प्यार करने का आनन्द ए. पी-एच. डी. की उपाधि से अलंकृत हैं। लेती। मेरी मातुश्री और भुआजी बताया करती इस प्रकार तीनों ने संयम मार्ग स्वीकार कर. थी कि नन्हे हाथ तुझे उठाने में समर्थ नहीं थे फिर हमारे परिवार की गौरव-गरिमा में चार चाँद भी उठाये उठाये घूमती।। लगाये हैं, तीनों ने जिनशासन की प्रभावना की है। ___जब मैं दो ढाई वर्ष का था तब दीदी नजर ने आज हमें गौरव है कि हमारे परिवार में ऐसी 12 एवं भुआजी ने दीक्षा लेने की ठान ली । मेरे पिता तेजस्वी सतियाँ हुईं जिनका विश्व में नाम चमक श्री का अपनी भानजी नजर पर अत्यधिक स्नेह था रहा है। वे उनको अपनी पुत्री से भी अधिक प्यार करते थे मेरे पिताश्री का स्वर्गवास दिव्यप्रभाजी की वे किसी भी स्थिति में उनको दीक्षा दिलाना नहीं दीक्षा के २० दिन पूर्व हआ था और मातुश्री का ||KE चाहते, मेरे पिताश्री ने दीक्षा रुकवाने के कई प्रयास स्वर्गवास दो वर्ष पूर्व हआ। मेरी मातुश्री की पूज्या माल किये पर उनकी वैराग्य भावना बहुत प्रबल थी। कसमवतीजी म० पर असीम श्रद्धा थी। वे उनके माता की आज्ञा प्राप्त हो गई थी और माँ ने ससु लिए तन-मन-धन सब न्यौछावर करने को तैयार राल से आज्ञा ले ली। इस प्रकार रोकने के सारे थीं। इसी श्रद्धातिरेक के कारण उन्होंने अपनी प्रयास विफल हो गये और संवत् १९९३ फाल्गून लाडली बेटी दिव्यप्रभाजी को उनकी सेवा के लिये शुक्ला दशमी को दोनों माता-पुत्री ने दीक्षा ले ली। (अनेक परीषहों को स्वयं सहन करते) सहर्ष सम- ८ CB दीक्षा लेने पर नजर कुमारी महासती कुसुमवतीजी पित किया। II के नाम से विश्रु त हुई तथा मेरी भुआजी कैलाश ___ मैंने अनेक बार पूज्या महासतीश्री के दर्शन किये कुवर के नाम से प्रसिद्ध हुई। हैं, प्रवचन सुने हैं । उनके दर्शन मन आत्मा को भुआ महाराज कैलाशकुवर जी बड़े ही धीर- असीम शान्ति प्रदान करते हैं, उनकी वाणी भवोंवीर गम्भीर थे। विचक्षण बुद्धि के धारक थे । सम- भवों के पाप और ताप का हरण करने वाली है। यज्ञ थे । ज्ञान-ध्यान साधना में अपने जीवन को आपने दीक्षा जयन्ती के ५० बसन्त पार कर लिए हैं. तन्मय बना दिया। बहुत ही सेवाभावी थे। उन्होंने दीक्षा स्वर्ण जयन्ती की इस मंगलवेला में मैं अपनी कार अनेक साध्वियों की सेवा करी। ओर से, अपने परिवार की ओर से अनन्त-अनन्त __ पूज्या कुसुमवती जी महाराज के जीवन के श्रद्धा समर्पित करता हूँ और यही मंगल कामना निर्माण में उनका अपूर्व योगदान रहा है। वे छाया करता हूँ कि आप दीर्घायु हों हमारे कुल एवं जिन की तरह उनके सुख-दुख में साथ रहीं। उनका शासन को दिपाते रहें । अपार वात्सल्य उनकी पुत्री को तो मिला ही, मुझे --- भी कम नहीं मिला। मेरा लालन-पालन उनके ही जल ज्यों-ज्यों स्वच्छ होता है, त्यों त्यों उसमें प्रतिहाथों हुआ। बिम्ब स्पष्टतया दीखने लगता है। मन ज्यों-ज्यों निर्मल पूज्या कुसुमवतीजी महाराज साधना-पथ की होता है त्यों-त्यों उसमें ज्ञान उद्भासित होने लगता है । अमर साधिका बनीं। उनके महान जीवन से प्रभा -आचार्य भद्रबाहु वित होकर हमारी छोटी बहिन स्नेहलता कुमारी ---- 0 शुक्ला ७८ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 4.0 Jain cation International Nrivate & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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