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________________ D संचालाल बाफना रमाकांत जैन लखनऊ (भू. पू. अध्यक्ष अ. भा. श्वे. स्था. जैन कांफ्रेस) यह ज्ञात कर प्रसन्नता हुई कि विदुषी साध्वी पूज्य महासती श्री कुसूमवती जी महाराज के श्री कुसुमवतीजी को उनकी संयम यात्रा के गौरवदीक्षा स्वर्णजयन्ती महोत्सव के शुभ अवसर पर पूर्ण ५० वर्ष पूर्ण करने के उपलक्ष में 'कुसुम अभिअभिनन्दन ग्रन्ध का प्रकाशन हो रहा है, यह जानकर नन्दन ग्रन्थ' अपित करने की योजना उनकी प्रसन्नता हुई। शिष्याओं और प्रशिष्याओं द्वारा बनाई गई है। ___गुणीजनों का अभिनंदन वंदन करना मानव इसके लिए वे साधुवाद की पात्र हैं। मात्र का कर्तव्य है। सद्गुणों के जीवन्त रूप जब हमारे सामने होते हैं तो हमें उनके गुणों से ७ सितम्बर, १९२५ को उदयपुर (राजस्थान) प्रेरणा मिलती है, और गुणों के प्रति आकर्षण एवं . में श्री गणेशलालजी कोठारी के घर में जन्मी कन्या नजरकवर को साढे ग्यारह वर्ष की वय में दीक्षा उत्साह भी बढ़ता है। हम सद्गुणों की उपासना दिलायी गई। आराधना करके अपने जीवन को भी गुणी बना । सकते हैं इसलिए गुणीजनों का आदर्श हमारे सामने यह परम सन्तोष का विषय है कि कुसुमवती रहना चाहिए। नाम से दीक्षित उस बालिका ने संयम-साधना के पूज्य महासती जी का जीवन अनेक विशेष- दृष्कर पथ को प्रशस्त कर उसका पूर्ण सदुपयोग ताओं से युक्त है। वे जितनी सरल और मधुर किया और अध्यात्मयोगिनी' सन्मान की स्वभाव की हैं, उतनी ही गम्भीर और ज्ञान गरिमा अधिकारिणी बनी। से मंडित भी हैं। मैं उनके आरोग्यमय दीर्घ जीवन की शुभ कामना करते हुए हार्दिक अभिनन्दन .. मधुर वाणी में चि मधुर वाणी में चिंतन की गहराई को उतारने करता हूँ। में पटु और ओजस्वी प्रवचनों द्वारा सुप्त जनजीवन को जागृत कर सत्य, सेवा, शील और सदाचार के शांती लाल दूगड पथ पर बढ़ने की प्रेरणा देने वाणी विदूषी साध्वी (अ. भा. श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेंस , कुसुमवतीजी को उनके सर्वथा योग्य 'प्रवचन भूषण' युवा अध्यक्ष) की उपाधि देकर स्थानकवासी संघ ब्यावर द्वारा पूज्य कुसुमवती जी म. अपनी ५०वीं संयम सम्मानित किया गया। यात्रा पूर्ण कर चुकी है यह हमारे समस्त जैन समाज की गौरवपूर्ण बात है। इस दुनिया में सभी ___ सरलता, सहनशीलता और करुणा की त्रिवेणी का अभिनन्दन किया नहीं जाता, जिसने अपने अपने जीवन में प्रवाहित करने वाली अध्यात्म-है जीवन में संपूर्ण संयम यात्रा कोरी सफेद चादर जैसी योगिनी विदूषी साध्वी श्री कुसुमवती जी स्थानकनिभाई हो. ऐसे ही महानभावों का अभिनंदन किया वासी समाज में तो अभिनन्दनीय हैं ही, अपनी जाता है । जिसमें पूज्य कुसूमवती जी महासती जी सयम-साधना को सफल बनाने के कारण सम्पूर्ण । एक हैं। जिन्होंने हमेशा भगवान महावीर शासन जैन समाज के लिये भी श्रद्धास्पद हैं। उनका को खूब चमकाया है। जनजीवन को जागृत करके साधना पथ आगे भी ऐसा ही प्रशस्त बना रहे इसी सत्य, शील, सेवा, सदाचार के पथ पर बढ़ने की सद्भावना के साथ । हमेशा प्रेरणा दी है। मैं युवाशाखाओं की तरफ से उनका अभिनन्दन करता हूँ। प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना C o साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Edue don International FOS Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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