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________________ मोहनलाल भंसाली विद्यालय के बढ़ते चरण श्री जैन विद्यालय की स्थापना सन् 1934 में कलकत्ता के व्यावसायिक स्थल बड़ाबाजार में एक किराये के कमरे में हुई थी । विद्यालय की स्थापना का मूल उद्देश्य रहा है छात्रों में नैतिक शिक्षा का पूर्णरूप से प्रचार-प्रसार एवं छात्रों का जीवन अनुशासित होकर प्रगति करे। श्री जैन विद्यालय की स्थापना के समय भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। देश का वातावरण स्वतंत्रता के लिए आन्दोलित था। अन्त में विभिन्न बलिदानों के बाद देश सन् 1947 में स्वतंत्र हुआ। स्थानकवासी समाज के प्रमुख नेताओं ने काफी विचार-विमर्श के बाद विद्यालय की स्थापना बहुत ही छोटे रूप से की थी । दिन प्रतिदिन छात्रों की बढ़ती हुई संख्या को देखकर विद्यालय के लिए भवन की आवश्यकता महसूस होने लगी । अतः मोहनलाल गली (सुतापट्टी) में स्कूल के लिए मकान खरीद लिया गया। चूंकि बड़ाबाजार कलकत्ता महानगरी का प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है यहां के हिन्दी भाषी व्यवसायियों के छात्र द्रुतगति से प्रवेश लेते रहे हैं। अतः छात्रों की बढ़ती हुई संख्या एवं विद्यालय की सतत् वर्तमान प्रगति को देखते हुए इस भवन में भी विद्यालय की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने में कमी महसूस होने लगी । स्थानकवासी समाज के प्रमुख कार्यकर्ताओं स्वर्गीय फुसराजजी बच्छावत, स्वर्गीय मगनमलजी कोठारी, स्वर्गीय बदनमलजी बांठिया आदि के अथक प्रयासों से 18-डी, सुकियस लेन, कलकत्ता में स्कूल भवन हेतु सन् 1952 में जगह क्रय की गई। भवन निर्माण के लिए कलकत्ता के सभी स्थानकवासी महानुभावों से अर्थ संग्रह के लिए सहयोग करने का आग्रह किया गया। सभी के सहयोग से अर्थ संग्रह कर भवन निर्माण के कार्य का शुभारम्भ हुआ । हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International सन् 1958 में भवन निर्माण का कार्य पूर्ण करके विद्यालय नये भवन में स्थानान्तरित किया गया। छात्रों की संख्या अबाधगति से बढ़ती रही एवं पठन-पाठन कक्षा 1 से कक्षा 12 तक चलने लगा । विद्यालय को माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक की परीक्षाओं के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अनुमोदन मिल गया। गत दो दशक से माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक परीक्षाओं का परिणाम शत-प्रतिशत रहा है। यह अपने आप में एक खास उपलब्धि है। इसका पूर्ण श्रेय यहां के कर्मठ शिक्षक वृन्द को है। स्कूल की प्रबन्ध समिति का भी पूर्ण योगदान रहा है। सन् 1984 में विद्यालय की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर विश्वमित्र दैनिक पत्रिका के सम्पादक श्री कृष्णचन्द्र अग्रवाल ने समाज के नेतृवृन्द के समक्ष चुनौती भरे शब्दों में कहा कि, "जो स्वर्ण जयन्ती आप मना रहे हैं यह सिर्फ पूर्वजों की ही देन है। आप सब समाज के जागरूक कार्यकर्त्ता हैं। आप लोगों ने 50 सालों में क्या नयी उपलब्धि की है, अब कोई नया कार्यक्रम लेकर एक और विद्यालय की स्थापना करें। " समाज के गणमान्य कार्यकर्त्ताओं ने उपर्युक्त चुनौती को स्वीकार किया एवं श्री सरदारमलजी कांकरिया, श्री रिखबदासजी भंसाली, श्री रिद्धकरणजी बोथरा आदि कार्यकर्ताओं ने अथक प्रयास कर सन् 1991 के मई महीने में 25/1, बन बिहारी बोस रोड, हवड़ा में विद्यालय भवन हेतु जगह क्रय की । सन् 1992 में भवन निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ एवं विद्यालय प्रारम्भ किया गया । इस विद्यालय में छात्राओं हेतु कक्षा 1 से कक्षा 10 तक का शिक्षण प्रात: काल में शुरू किया गया एवं दिन में छात्रों का शिक्षण प्रारम्भ किया गया। वर्तमान में छात्र-छात्राओं की संख्या करीब 2400 के लगभग है। यहां भी सुयोग्य एवं कर्मठ शिक्षकों द्वारा शिक्षा दी जाती है। वर्तमान युग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कम्प्यूटर शिक्षा का प्रारम्भ श्री माणकचन्दजी रामपुरिया के सहयोग से श्री जैन विद्यालय, हवड़ा में आरम्भ किया गया। श्री जैन विद्यालय, कलकत्ता के भवन में स्थानाभाव से यह कम्प्यूटर शिक्षा दिनांक 10 जुलाई, 194 को "श्रीमती विमला मित्री कम्प्यूटर सेन्टर" के रूप में 20 कम्प्यूटरों से सुसज्जित वातानुकूलित हाल में शुरू की गयी है। विद्या के क्षेत्र में शिक्षकों का योगदान सदैव महत्वपूर्ण रहा है। हीरक जयन्ती वर्ष के पावन प्रसंग पर विद्यालय के माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक परीक्षाफल ने एक कीर्तिमान स्थापित किया। पिछले सारे रेकार्ड तोड़कर इस वर्ष हिन्दी स्कूलों में इस विद्यालय ने प्रथम स्थान अर्जित किया है। हीरक जयन्ती के उपलक्ष में मैं समग्र जैन विद्यालय परिवार को हार्दिक बधाई देते हुए कामना करता हूं कि विद्यालय भविष्य में दिन-प्रतिदिन प्रगति के पथ पर चलता रहे। अध्यक्ष, श्री जैन विद्यालय, कलकत्ता For Private & Personal Use Only विद्यालय खण्ड / ८ www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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