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________________ इन चित्रों के कुछ विशेष प्रसंग उल्लेखनीय हैं- महावीर स्वामी की दूसरी माता त्रिशला के चौदह महास्वप्न एवम् गर्भापहरण, महावीर का जन्माभिषेक, वर्षीदान, दीक्षा ग्रहण के समय पंचमुष्टि लोच करते हुए महावीर तथा महावीर का समवसरण। भगवान नेमिनाथ की बारात का दृश्य, ऋषभदेव का राज्याभिषेक तथा पार्श्व तपस्या का चित्रण भी सराहनीय है। इन चित्रों में वृषभ, सिंह, हाथी, सर्प आदि पशुओं का रेखांकन कलाकार के कौशल का प्रशस्त नमूना है। कलश, छत्र, अग्नि, ध्वज आदि का अंकन प्रतीकात्मक पीले, हरे, काले एवम् सफेद रंगों के साथ मुगल शासन काल में नीले, सुनहरी व रूपहरी रंगों का प्रयोग भी जुड़ गया। ताड़पत्रीय चित्रों में जैन कलाकारों की रेखाएं सूक्ष्म और सशक्त हैं। इनका मूल उद्देश्य भावों को अभिव्यक्त करना था, जिसमें वे सफल हुए। __ कल्पसूत्र का आयाम प्राय: 5 से 6 इंच चौड़ा एवम् 10 से 12 इंच लम्बा रहा करता है। उसी में एक ओर तो प्रसंग का विवरण और दूसरी ओर उस विषय पर आधारित चित्र अंकित किए जाते हैं। फलत: इसका वर्ग क्षेत्र 9 से 12 वर्ग इंच तक ही सीमित रहता है। इतने लघु दायरे में अपनी बात कह देने में ये कलाकृतियां अद्वितीय हैं। बाद में इनमें इरानी प्रभाव के कारण बेल-बूटों की पच्चीकारी का प्रचलन भी चल पड़ा। ___ इन चित्रों के अध्ययन से स्पष्ट है कि जैन देवी-देवताओं के परम्परागत अंकन होते हुए भी ये कलात्मक हैं। पृष्ठभूमि सादी, आकृतियां नुकीली एवम् परली आंख युक्त हैं। पात्र के अनुरूप ही उनकी साज-सज्जा, आकार-प्रकार और अलंकरण हैं। एक ओर देवतागण अथवा राजा आभूषणों से सुसज्जित हैं तो दूसरी ओर श्रमण श्वेत अथवा स्वर्णिम वस्त्र धारण किए हुए हैं। कल्पसूत्र की चित्रकला का विषय पुरुष प्रधान हैं। पुरुष दुपट्टा और धोती धाररण किए हुए हैं। स्त्रियां कसी हुई अंगिया तथा धोती पहने नजर आती हैं। वस्त्र बेल-बूटों से आच्छादित हैं। पेड़, पौधे स्थान के अनुसार चित्र की आलंकारिकता को बढ़ाते हैं। यही नहीं इन चित्रों में शैली का विकास भी दिखाई देता है। उदाहरणार्थ उझमफोई- संग्रह - कल्पसूत्र के महावीर-जन्म वाले दृश्य में परदे का थोड़ा सा अंश दिखाई देता है किन्तु इडर वाले चित्रों में इसी का विस्तृत अंकन हुआ है। ___संभवत: सर्वाधिक सुन्दर एवं विपुल चित्रित कल्पसूत्र की प्रति देवशा नो पाड़ो भण्डार, अहमदाबाद की प्रति है। घने वृक्षादि तथा फूलों वाले पौधे, रंगीन चिड़ियां, जीवन्त पशु, विविध रंगों के वस्त्र पहने विभिन्न मुद्राओं में अंकित कन्याएं इस चित्रावली की विशेषताएं हैं। इसमें भरत के नाट्य शास्त्र पर आधारित विभिन्न नृत्य एवं संगीत की मुद्राएं हैं। ___ जैन ग्रन्थों पर लकड़ी की दफ्तियां सुरक्षार्थ बांधी जाती थीं। इन दफ्तियों पर सूक्ष्म बेल-बूटों की चित्रकारी कलाकार के धैर्य और साधना का अद्वितीय उदाहरण है। साधना के रास्ते पर बढ़ते हुए एवम् तीर्थंकर की वाणी का स्मरण करते हुए मुनियों एवम् जैन कलाकारों ने जो अनुभूति की वह उनकी कलाकृति की आधार-शिला बनी, जिसने जन साधारण के आध्यात्मिक पक्ष को अत्यन्त प्रभावित किया, साथ ही साथ राजस्थानी और मुगल शैली के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योग दिया। इस तरह कल्पसूत्र' ने भारतीय ज्ञान भण्डार को समृद्ध किया। मुगल सल्तनत के संकटकालीन समय में भारतीय सभ्यता एवम् संस्कृति को बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वर्णमय और रजतमय होने के कारण ये पोथियां अत्यन्त मूल्यवान हैं। इनका योगदान साहित्यिक, ऐतिहासिक, कलात्मक एवम् आध्यात्मिक सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। आज धर्म-सूत्रों के साथ ये चित्र भी हमारी आध्यात्मिक परम्परा की अभिन्न धरोहर बन गई हैं। संदर्भ 1.के. कासलीवाल, जैन ग्रन्थ भण्डार्स इन राजस्थान, 1964 जयपुर - पृ0 2 2. खण्डालावाला (कार्ल) एवं मोतिचन्द्र इन इलस्ट्रेटेड कल्पसूत्र पेण्टेड पट - 17-14 जौनपुर इन ए0 डी0 1465 ललितकला-12 पृ0 9-15 3. वाचस्पति गैरोला, भारतीय चित्रकला, पृ0 138 हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड/१०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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