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________________ नामक पदाधिकारी की नियुक्ति की थी। हमारे देश के इतिहासविदों ने इसे स्वीकार किया है कि हिन्दू साम्राज्यवादियों ने (900-1200 ई० तक) असंख्य बौद्ध तथा जैन धर्मावलम्बियों की हत्या की थी और बहुत से बौद्ध विहारों को ध्वस्त किया था। मुसलमान सामन्तों ने भी अपने सत्ता के हित में प्रजा को हिन्दू राजाओं के खिलाफ एकबद्ध किया था तैमूर के वंशज और काबुल के शासक बाबर ने अपनी सेना सहित उत्तरी भारत पर आक्रमण किया । नादिरशाह ने 24 घंटे के अंदर डेढ़ लाख लोगों का कत्ल किया था । वे सब हिन्दू ही नहीं थे। उनमें एक लाख मुसलमान थे। नादिरशाह इरानी मुसलमान था । उसने मुगलों का कत्ल किया था। तैमूर लंग ने 4 दिन के अंदर ही 4-5 लाख आदमियों का कत्ले आम किया था । उसमें से 3 लाख पठान मुसलमान थे। जब मुगलों का जमाना आया तो पठान बेचारे हिन्दुओं की ही तरह दवाये जाते थे और कत्ल किये जाते थे। मुगल शासन काल मोटे तौर पर मध्ययुग के अन्त और भारतीय इतिहास के आधुनिक युग के आरम्भ का द्योतक है। 14वीं और 17वीं शताब्दी के बीच भारत में एक नयी भावना फैली थी प्रत्येक क्षेत्र में आर्थिक, प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक इत्यादि नयी हवाओं के झोंके के आ रहे थे। पहली बार सामन्ती संबंधों का स्थान धीरे-धीरे विकासमान पूंजीवादी संबंध ले रहे थे। इसी समय भारत में जातियों (Nationality) के अंकुरों के फूटने और विभिन्न भाषाओं के विकास का प्रारम्भ हुआ। यदि सूफी धर्म का अध्ययन किया जाय तो पता लग जाएगा कि हिन्दू धर्म से मुसलमानों ने बहुत कुछ ग्रहण किया। अतः समस्या व्यवस्था विशेष के उद्भव और विकास के परिस्थितियों को समझने की है इसी तरह औरंगजेब ने हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया था लेकिन मुसलमानों पर उसके द्वारा जकात कर भी लगाया गया था । इब्नबतूता ने तो यहां तक लिखा है कि दक्षिण भारत में जमोरिन नामक हिन्दू शासक यहुदियों से जजिया कर वसूलता था। हिन्दुस्तान के बाहर मुसलमान शासकों ने मुसलमान प्रजा पर ही जजिया कर लगाया था । इसलिए जजिया कर को धर्म से जोड़ना गलत है ऐसे साक्ष्य मिलते हैं कि शत्रुओं के क्षेत्र वाले मंदिरों को ही तोड़ा गया है क्योंकि वे षड्यंत्र के अड्डे बन रहे थे। इस तरह परमार वंश के राजाओं ने भी गुजरात के जैन मन्दिरों को तोड़ा था और औरंगजेब ने कुछ मन्दिर बनवाये भी थे। मुश्किल तो यह है कि मुगल काल के दरबारियों ने जो संस्मरण लिखे हैं वे अधिकतर दरबार से जुड़े हैं। परन्तु उसे पूरे भारत के लिए सार्वजनिक बना दिया गया। मुसलमानों के राज्य में बड़े-बड़े अधिकारी व सिपाही हिन्दू थे और हिन्दू राज्यों में मुसलमान थे इसलिए जो संघर्ष हुए या जो दमन हुए उसके पीछे राजनीतिक कारण थे, धार्मिक नहीं । इस तरह इतिहास के उपनिवेशिक दृष्टि से मुक्ति पाने के लिए साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से मुक्त होकर वैज्ञानिक दृष्टि अपनाने की जरूरत है। राष्ट्रीयता की ऐतिहासिक समझ के तथा सभ्यतावाद का उदय हो रहा है। हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International अभाव में ही आज उम्र जातियता ध्यान देने की बात है कि 'बहुमत की साम्प्रदायिकता हमें फासीवाद की ओर ले जाएगी जिसका नारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगाता रहा है और अल्पमत की साम्प्रदायिकता अलगाववाद की ओर ले जाएगी। जमायते इस्लामी, खालिस्तान, गोरखालैंड, झारखंड इत्यादि का आंदोलन इसी खतरे की घंटी बजा रहे हैं। शोषक शासक वर्ग यथास्थिति कायम रखने के लिए इसे और उकसावा दे रहे हैं और इतिहास का साम्प्रदायिक दृष्टिकोण हमारे संस्कार में पृष्ठभूमि का काम कर रहा है। यही नहीं अरब और इसराइल के झगड़े में अमरीकी साम्राज्यवाद की भूमिका से सभी अवगत हैं। मिशनरियों के द्वारा भारत में क्षेत्रियतावाद को बढ़ावा देना, पेट्रोडॉलर द्वारा भारतीय मुसलमानों में हिन्दू विद्वेष फैलाना, विश्वहिन्दू परिषद द्वारा रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की समस्या को उलझाना तथा मेरठ इत्यादि में शासक वर्ग द्वारा दंगे करवाना, यह हर नागरिक के लिए चिन्ता का विषय है। आज आर्थिक संकट राजनीतिक संकट में बदल रहा है। जनता का असंतोष गलत दिशा में मोड़ने के लिए इतिहास का यह साम्प्रदायिक दृष्टिकोण हिन्दूतत्ववाद और मुस्लिमतत्ववाद को बढ़ावा दे रहा है। जब कभी और जहां भी क्षेत्रीय संस्कृति जड़ जमाती है तो पूंजीवाद उसे क्षेत्रीय हितों में बांटने की कोशिश करता है। जाहिर है कि हर क्षेत्र का अपना विशेष इतिहास और विशेष संस्कृति होती है। हमें आंदोलन करके इन दोनों को संरक्षित करना चाहिए। हमारे देश में अलग-अलग भाषाएं, संस्कृतियां और उनकी क्षेत्रीय परंपरायें हैं, इनको अवश्य संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन इनके परस्पर हितों से जोड़कर एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। हमारे देश में शोषक शासक वर्ग ने सारे देश का असमान विकास किया है, इसी विषमता के कारण असंतोष पैदा हो रहा है और हमारा पिछड़ापन उसे अन्धराष्ट्रवाद और अलगाववाद की ओर ढकेल रहा है। अतएव वास्तविकता के इस अन्तर्वस्तु को समझे बिना इन समस्याओं को सुलझाया नहीं जा सकता। फिलहाल पिछड़े राज्यों को उन्नत राज्यों के समकक्ष लाना तथा केन्द्र और प्रांतों के संबंधों में राज्यों को अधिक अधिकार के लिए संघर्ष में सबको एकजुट करके जनवादी क्रांति दिशा में अग्रसर होकर ही हम इतिहास को सही दिशा में मोड़ सकते हैं। समाजवादी देशों में जहां क्रांति का एक स्तर सम्पन्न हो चुका है वहां समस्याएं नहीं हैं। बिना जनवादी क्रांति के राष्ट्रीय अखंडता सुरक्षित नहीं रखी जा सकती। आज हम एक निर्णायक बिन्दु पर पहुंच चुके हैं जहां हमें अपने इतिहास, अतीत, अपनी अस्मिता और अपनी संस्कृति का पुनर्परीक्षण करना आवश्यक हो गया है। एक बात और नहीं भूलनी चाहिए कि केवल कला, साहित्य, संगीत, सिनेमा की रचना से ही कोई संस्कृति समृद्धि नहीं हो सकती। किसी संस्कृति का समृद्ध होना उसकी प्रगतिशील विषयवस्तु पर निर्भर करता है और इसके लिए वैज्ञानिक विकास की दृष्टि से हमें अपने इतिहास को समझना होगा। For Private & Personal Use Only H-13, एल.आई. जी स्टेट 8/1, रूस्तम जी पारसी रोड, कलकत्ता-2 विद्वत् खण्ड / ५७ www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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