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________________ खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ ४९ आप इतिहास और साहित्य के प्रेमी, सरल स्वभावी और अच्छे विद्वान् थे । आपके समय में इस समुदाय में साधु-साध्वियों की काफी बढ़ोतरी हुई । आपने अपने जीवनकाल में सभी प्रदेशों में विचरण किया, तीर्थ यात्राएँ कीं । प्रतिष्ठा, उद्यापन, संघयात्रा, साहित्य उद्धार आदि अनेक श्लाघनीय कार्य किये। शत्रुञ्जय तीर्थ पर नई खरतरवसही पर प्रयत्न करके आनन्दजी कल्याणजी की पेढी द्वारा वापस पाटिया लगवाया। सुजानगढ़ जिनमन्दिर की, केलु ऋषभदेव पंचायती मन्दिर की, मोहनबाड़ी पार्श्वनाथ स्वामी की, हाथरस दादाबाड़ी की और लोहावट में गुरु मन्दिर की आपने प्रतिष्ठायें करवाई। आपके कार्यकाल में अनेकों उद्यापन महोत्सव हुये । आपके उपदेश से ही जिनदत्तसूरि ब्रह्मचर्याश्रम, पालीताणा, खरतरच्छ ज्ञानमन्दिर जैनशाला, जामनगर, हरिसागर जैन पुस्तकालय, लोहावट और हरिसागर जैन ज्ञान मन्दिर बालुचर आदि अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई। ___ संवत् १९६२ में आप शिष्य परिवार सहित अजीमगंज पधारे । उस समय में श्री संघ ने आपको आचार्य पद प्रदान किया। तभी से आप जिनहरिसागरसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। आपको मूर्ति लेख संग्रह का, ग्रंथों की प्रशस्तियों के संग्रह का और शास्त्रों की प्राचीन प्रतिलिपियों के आधार पर प्रतिलिपियाँ तैयार करवाने का बड़ा उत्साह था। कई प्रतिलिपिकार निरन्तर आपके पास रहकर प्रतिलिपि करते रहते थे और आप स्वयं उनका मिलान करते थे । सैकड़ों प्राचीन प्रतियों की आपने प्रतिलिपियाँ करवाकर अपने लोहावट के ज्ञान भण्डार को समृद्ध किया था। चारों दादा साहब की पूजायें और तपस्वी छगनसागरजी का जीवन चरित्र आदि आपकी कृतियें प्रकाशित हैं। फलौदी पार्श्वनाश तीर्थ में पार्श्वनाथ विद्यालय की स्थापना भी की थी। संवत् २००६ पोष वदि आठम मंगलवार को फलौदी पार्श्वनाय तीर्थ में ही आपका स्वर्गवास हुआ था। (१२) जिनानन्दसागरसूरि श्रीजिनहरिसागरसूरि जी म. के स्वर्गवास के पश्चात् गणनायक के रूप में श्री जिनानन्दसागरसूरिजी हुए । इनका जन्म संवत् १९४६ आषाढ सुदि बारस को सैलाना में हुआ था। इनके मातापिता थे कोठारी तेजकरणजी और केसरदेवी । इनका जन्म नाम यादव सिंह था। प्रवर्तिनी श्री ज्ञान श्रीजी म० से प्रतिबोध पाकर बाईस वर्ष की अवस्था में तत्कालीन गणनायक श्री त्रैलोक्यसागरजी म. नेपाल आप दीक्षित हुए । दीक्षा महोत्सव दोवान बहादुर सेठ श्री केसरसिंहजी बाफना ने किया था। इनका दीक्षा नाम आनन्दसागर था किन्तु वे वीर पुत्र के नाम से ही प्रसिद्धि को प्राप्त हुये। आपका संस्कृत, हिन्दी, और अंग्रेजी पर अच्छा अधिकार था । अपने समय के आप प्रखर वक्ता थे । आपने ही प्रवर्तिनी श्री बल्लभश्रीजी, प्रवर्तिनी श्री प्रमोदश्रीजी एवं प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्रीजी आदि साध्वियों को प्रवचन शैली का अभ्यास कराकर प्रवचनपटु बनाया था। आपने अपने जीवन काल में सुखचरित्र, हिन्दी कल्पसूत्र, द्वादशपर्व, श्रीपाल चरित्र सप्त व्यसन निषेध, आगमसार आदि अनेक ग्रन्थ लिखे थे' आनन्दविनोद' (स्तवनादि) एवं अनेक निबन्ध-विद्या विनय विवेक अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रह आदि की रचना की थी । आगमसार आदि छोटी-मोटी ४६ पुस्तकें प्रकाशित करवाई थीं। सैलाना नरेश आपके सहपाठी थे, अतः उन्हीं के अनुरोध पर सैलाना में आनन्दज्ञान मन्दिर की स्थापना खण्ड ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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