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________________ गद्यपद्यात्मक सामग्री संकलित हैं, जिससे मुनिवर्य के प्रति लोक-मानस में परिव्याप्त श्रद्धा एवं समादर का परिचय प्राप्त होता है। द्वितीय खण्ड में श्वे. स्था. जैन संघ तथा पंजाब श्रमण संघ की परंपरा, श्री सुमन मुनि जी म.सा. के प्रगुरुवर्य तथा गुरुवर्य का जीवन-परिचय उपस्थापित किया गया है, जिनकी कीर्तिवल्नरी न केवल पंजाव तक ही सीमित है, वरन् भारत-व्यापिनी है। तृतीय खण्ड में चरित नायक के शैशव, पारिवारिक जीवन, तद्गत विषम घटनाएँ, धार्मिक प्रश्रद, दिशाबोध, प्रव्रज्या, विद्याध्ययन, विहरण, धर्म-संघ में महत्त्वपूर्ण पदोपलब्धि आदि का विवेचन किया गया है, वह इनके देव-दुर्लभ, उत्क्रान्तिमय व्यक्तित्व का जीता-जागता लेखा-जोखा है। साथ ही साथ इनके जीवन के विविध प्रसंगों की चित्रात्मक झांकियाँ भी अंकित हैं। . चतुर्थ खण्ड में मुनिवर्य के साहित्यिक कृतित्व और वाग्मिता का जो प्रवचनमयी पीयूष धारा के रूप में संप्रवाहित होती रही है, वर्णन है। साथ ही साथ इनके साहित्य पर समीक्षात्मक दृष्टि से चिन्तन तथा इनकी सूक्तियों का आकलन किया गया है। पंचम खंड में देश के ख्यातनामा विद्वानों एवं विचारकों के विश्लेषणात्मक तथा शोधपूर्ण निबन्ध है, जिनके कारण यह ग्रन्थ एक सार्वजनीन महत्वपूर्ण अध्येय सामग्री में संपुटित होकर और अधिक महिमा-मंडित हुआ है। निर्मल, कोमल एवं मृदुल हृदय के सजीव प्रतीक, संयतचर्या और सेवा के अनन्य संवाहक, गुरुसमर्पित चेता सम्मानास्पद श्री सुमन्त भद्र मुनि जी म. का प्रस्तुत ग्रन्थ की संरचना में जो प्रेरणात्मक संवल रहा, वह ग्रन्थ की स्पृहणीय निष्पत्ति में निश्चय ही बड़ा सहायक सिद्ध हुआ है जो सर्वथा स्तुत्य है । भारतीय संस्कृति एवं जीवन-दर्शन के अनन्य अनुरागी, प्रवुद्ध चिन्तक, लेखक तथा शिक्षासेवी प्रस्तुत ग्रन्थ के व्यवस्थापक श्रीयुत दुलीचंद जैन, साहित्यरत्न, साहित्यालंकार तथा जैन धर्म एवं साहित्य के समर्थ विद्वान्, सुप्रसिद्ध लेखक और इस ग्रन्थ के संपादक श्रीयुत डॉ. भद्रेशकुमार जैन एम.ए.,पी.एच.डी. ने जिस लगन, निष्ठा तथा तन्मयता के साथ इस ग्रन्थ का अविश्रान्तरूपेण जो कार्य किया, उसी का यह सुपरिणाम है कि ग्रन्थ इतने सुन्दर तथा आकर्षक रूप में प्रकाशित हो सका। ये दोनों विद्वान् शत्-शत् साधु वाद के पात्र हैं। इनके अतिरिक्त अन्य सभी सहयोगी बन्धुवृन्द, जिन्होंने इस पावन सारस्वत कृत्य में मेधा, श्रम और वित्तादि द्वारा सहयोग किया, सुतरां प्रशंसास्पद हैं। सारांशतः यह कहा जा सकता है कि यह ग्रंथ एक महापुरुष का गरिमान्वित जीवन-वृत्त होने के साथ-साथ आध्यात्मिक साधना, भक्ति, सद्गुणसम्मान, सत्कर्त्तव्यनिष्ठा और पुरुषार्थ जैसे विषयों से सम्बद्ध वह महत्त्वपूर्ण सामग्री लिए हुए हैं, जो संयम, सेवा और त्याग-पथ के पथिकों के लिए निःसंदेह उद्बोधक सिद्ध होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। कैवल्य धाम, - डॉ. छगनलाल शास्त्री, एम.ए. (त्रय) पी.एच.डी. सरदारशहर (राज.) ____ काव्यतीर्थ, विद्यामहोदधि, प्राच्यविद्याचार्य दिनाङ्क १-१०-६६ पूर्व प्राध्यापक-वैशाली शोध संस्थान एवं मद्रास विश्वविद्यालय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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