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________________ ५४ पं० जमन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ वैद्य दामोदर चन्द्र जी धौरा (१९१६ ) ग्राम धौरा जिला छतरपुर में सन् १९१६, पूस शुक्ल ५वीं को श्री दामोदर जी का जन्म हुआ । द्रोणगिरि विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर अपना ग्रहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए स्वाभाविक काव्य प्रतिभा होने के कारण कविता रचने लगे । धीरे-धीरे जैसे ही काव्य में निखार आता गया, महत्वपूर्ण रचनायें बनने लगी । अपने गुरु पं० गोरे लाल जी शास्त्री से अपनी रचनाओं का संशोधन कराकर आगे बढ़े और अब तो दामोदर जी चन्द्र उपनाम से विख्यात प्रसिद्ध कवियों की श्रेणी में हैं । इनके द्वारा रचित हीरों का खजाना, नीतिरत्नाकर, जैन गारी संग्रह, महत्वपूर्ण रचनायें हैं । पूज्य वर्णी जी द्वारा लिखित मेरी जीवनगाथा का पद्यानुवाद सन्तवर्णी जी नाम से कर आपने एक महाकाव्य की रचना भी की है जो लोकप्रिय बन गया है। आप समाज सुधारक, कुशल वक्ता, कर्मठ कार्यकर्त्ता हैं । आप वैद्य में भी निस्वात्त हैं । श्रीमती विदुषी डॉ० रमा जैन जैन समाज में विद्वान् ही नहीं, विदुषी भी महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। डॉ० रमा जैन उनमें प्रथम हैं । श्रीमती रमा जैन डॉ० नरेन्द्र विद्यार्थी की धर्मपत्नी हैं । आपने एम० ए० काव्यतीर्थ, न्यायचन्द्रिका, शास्त्री की शिक्षा प्राप्त कर परिनिष्ठित बुन्देली का व्याकरणिक अध्ययन विषय पर शोध-प्रबंध लिख कर पी० एच डी० की उपाधि प्राप्त की है। आप की लेखन कार्य में बहुत रुचि है । इससे आपने अच्छे साहित्य का सृजन भी किया है । आपके द्वारा लिखित भगवान् महावीर लोकप्रिय पुस्तक है। इसके अलावा आपने वर्णी जी की मेरी जीवन गाथा का जीवन यात्रा के रूप में सम्पादन किया है। 'आप समाज में नारियों की उन्नति किस प्रकार हो सकती है ' पर बराबर सोचती रहती हैं । नारी के उत्थान के संदर्भ में आपने दिये हैं । आप सरल, निरभिमानी, सुयोग्य वक्ता और आधुनिक आडम्बरों से बहुत दूर हैं। महाराजा महाविद्यालय, छतरपुर में हिन्दी - विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं । निश्चित ही आप जैसी सुयोग्य महिला पर समाज को गर्व है । महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं । उत्सवों में भाषण वर्तमान में आप पं० कमल कुमार जी न्याय तीर्थ स्वाहा जिला छतरपुर के निवासी श्री पं० कमल कुमार जी न्यायतीर्थ वर्तमान में कलकत्ता में रहकर धार्मिक शिक्षण एवं शास्त्र प्रवचन करते हैं । साहित्य और व्याकरण में आप निष्णात विद्वान् हैं । पूर्व में आप श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, सागर में व्याकरण अध्यापक रहे हैं। संस्कृत का ज्ञान आपका उच्चकोटि का है । डॉ० लालचंद्र जैन आप किशनगढ़ जिला छतरपुर में १९४४ में जन्में तथा किशनगढ़, छतरपुर, सादूमल, काशी एवं मुज्जफरपुर में प्रशिक्षित होकर वर्तमान में प्राकृत एवं जैन विद्या संस्थान वैशाली ( बिहार ) के कार्यकारी निदेशक हैं । आप जैन दर्शन एवं भारतीय दर्शन के ख्याति प्राप्त विद्वान् हैं । आपने अबतक लगभग पचास शोधपत्र प्रकाशित किये हैं । जैन दर्शन में आत्म विचार नामक आपका शोधग्रन्थ लोकप्रिय है । आप अनेक संस्थाओं से विभिन्न रूपों में संबंधित हैं । आपके अनेक ग्रन्थ प्रकाशनाधीन है । आपने अनेक छात्रों को शोध का निर्देशन किया है । इसके साथ ही पं० विजय कुमार जी साहित्याचार्य, एम० ए० ( प्राकृत, संस्कृत ), पं० धरणेन्द्र कुमार जी शास्त्री, डा० महेन्द्र कुमार जी एम० ए० साहित्याचार्य, पी एच डी०, श्री रतन चन्द्र जैन एम० ए० आचार्य, पं० अमर चन्द्र जी शास्त्री, श्री महेन्द्र कुमार जी मानव, श्री सुरेन्द्र कुमार जी आदि जैन समाज के ऐसे विद्वान् हैं जो निरन्तर जैन धर्म, संस्कृति की सेवा कर रहे हैं। इनके विषय में आगे प्रकाश डाला जावेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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