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________________ ५२ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड स्मृति ग्रंथ के सम्पादन और प्रकाशन का श्रेय भी आपको ही है। अनेक स्मारिकाओं का सफल सम्पादन भी आप कर चुके हैं। वर्तमान में आप बराबर लेखनकार्य करते रहते हैं। आप श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र खजुराहो में अनेक वर्षों से मंत्री हैं । आप दिगम्बर, जैन महासमिति जैन परिषद्, महाबीर ट्रस्ट आदि संख्याओं से सम्बद्ध है। आप मध्य प्रदेश शासन के शिक्षा-विभाग में कार्यरत है। श्री पं० अमर चन्द्र जी प्रतिष्ठाचार्य पं० अमर चन्द्र जी बकस्वाहा जिला छतरपुर के निवासी थे। ये जैन सिद्धांत के विद्वान होने के साथ ही प्रतिष्ठापाठ में दक्ष थे। इन्होंने अनेको पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें, गजरथ महोत्सव, मन्दिर-वेदी प्रतिष्ठा जैसे महत्वपूर्ण कार्य किये । पण्डित जी मंत्र विद्या में दक्ष थे और इन्होंने कई मंत्र सिद्ध किये थे। विशाल प्रतिष्ठा समारोहों में ओले-पानी की अक्सर जो बाधा आया करती थी, वह उनकी मंत्र शक्ति से प्रभावहीन हो जाती थी। मंत्रशक्ति के सम्बन्ध में इनके विषय में कई आश्चर्यजनक घटनायें प्रसिद्ध हैं। ५० कमलापत जी कुटौरा प्रतिष्ठाचार्यों की परम्परा के कुटौरा निवासी पं० कमलापत जी का भी नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। इन्होंने अनेक विशाल प्रतिष्ठाओं एवं गजरथों को कराया। ये प्रतिष्ठा विधि के विशेषज्ञ थे और सभी क्रियायें शुद्ध दिगम्बर आम्नाय से सम्पन्न कराते थे। श्री पं० दुलीचन्द्र जी प्रतिष्ठाचार्य (१८९४-१९७९) __ पं० दुली चन्द्र जी का जन्म सन् १८९४ में ग्राम बाजना में हुआ था। पिता श्री गिरधारी लाल जी थे । प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर ग्राम बाजना में ही राज्य समय में सरकारी सेवा करना प्रारम्भ की। प्रतिष्ठा कार्यों में आपकी रुचि थी। फलत श्री पं० अमर चन्द्र जी बकस्वाहा से प्रतिष्ठा विधियों का ज्ञान प्राप्त कर स्वतंत्र रूप से प्रतिष्ठा कार्य कराने लगे। आपने अनेकों महत्वपूर्ण पंचकल्याणक, गजरथ महोत्सव प्रभावना के साथ सम्पन्न कराये । मन्दिर-वेदी प्रतिष्ठा, सिद्ध चक्र विधान के जैसे धार्मिक कार्य तो आप प्रायः कराते ही रहते थे। सामाजिक कार्यों में आपकी रुचि थी। इससे सामाजिक उत्थान के कार्य किये । द्रोणप्रान्तीय सेवा परिषद्, द्रोणगिरि के आप बहुत समय तक अध्यक्ष रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में भी आप प्रभावशाली थे। धनुषयज्ञ जैसे विशाल समारोहों में आप अध्यक्ष रहे हैं। ग्राम पंचायत बाजना के तो आप लगभग ३५ वर्ष तक सरपंच रहे हैं। आप प्रभावशाली वक्ता थे। आपने श्री दिगम्बर जैन सिद्ध-क्षेत्र द्रोणगिरि के विकास और उन्नति के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आपकी सामाजिक सेवाओं से प्रभावित होकर १९७० में द्रोणप्रान्तीय नवयुवक सेवा संघ, द्रोणगिरि ने तथा १९७७ में गजरथ महोत्सव समिति. द्रोणगिरि ने आपका अभिनन्दन किया था। आपका स्वर्गवास २३ अक्टूबर १९७९ को हआ। डा. नरेन्द्र विद्यार्थी पावन भूमि द्रोणगिरि के अंचल धनगुवां में जन्मे और श्री गुरुदत्त दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय में पढ़े डा० नरेन्द्र कुमार जी को साधारण समाज विद्यार्थी नाम से जानती है। आप छतरपुर जिले के विद्वानों की परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। आपने शास्त्री, साहित्याचार्य, काव्यतीर्थ, एम० ए० की उच्च शिक्षा प्राप्त कर शोध प्रबन्ध लिखा और पी० एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। सार्वजनिक जीवन में आपका प्रवेश छात्र जीवन से ही है। स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेकर जेल यातनायें भी सहन की। १९५५-५६ में विन्ध्य-प्रदेश विधान-सभा के सदस्य रहकर आपने अपने क्षेत्र का बहुत विकास किया है। सड़कों का निर्माण, कुयें-तालाबों की मरम्मत, पाठशाला भवनों का निर्माण तथा प्राथमिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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