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________________ ऐरावत-छबि ४२५ दम दम दमकत दसन दिपंती दंदन वंती दंदन धार । झमझम झमकति झिझिक झकंतो झंकनवंती झंकन कार ॥ नग नमन करती मती चरती पनि भारती जिन भंडार ॥ कोटि सत्ताईस० ५॥ चमचम चमकती चरन चलंती चन्दनवन्ती चंचल नार । छम छम छम कंती छटि छेहै रती छिनकि निहार ।। नमि नमि उचरंती नमन करती नैन धरती नस परिहार ॥ कोटि सत्ताईस०६॥ प्रथम इन्द्र दन्ति केऊर तन प्रसन्न मन परम उदार। आठ महादेवी करि मंडित एक लाख वलीवि कलार ।। मुकुट आदिभूवन भूषित तन सुरनर सिर सोहै सिरदार ॥ कोटि सत्ताईस० ७॥ कंद इंदु उज्जिल उतंग तन नाम दंत नाम गज साल । घंटा घनघन नत धनन घन घनन ननन बाजै घंटार ।। किनिनि निनिनि किकिनि रटंति छद्र घंट कारि टंकार । कामदेब छबि करग इन्द्रमुख रचै अप्छरा नचै अपार ॥८॥ कोटि सत्ताईस दल दल ऊपर रचै अप्छरा नचै अपार ।। १००८ पं० रूपचन्द्र जी और कवि नवल शाह ने भी २७ करोड़ अप्सराओं वाले ( मुख - दत और सरोवर x कमलिनी , कमल पंखुड़िया और १२५ x २५ x 62 और अप्सरा + २७ करोड़ अप्परा ) ऐरावत का सुन्दर पदावलियों में वर्णन किया है उसकी भी छटा देख लीजिए :- कवि नवल शाह (सं० १६५) के शब्दों में :"जोजन लाख ऐरावत भयौ सौ मुख तास दशों दिशि ठयौ । मुख मुख प्रति वसु दन्त धरेह दन्त दन्त इक इक सरलेह । सर सर माँहि कमिलिनी जान सवासौ है परमान । कमिलिनी प्रति प्रति कमल बखान ते पचीस पचीसहिं जान । कमल कमल प्रलि दल सौभंत अष्टोत्तर शत है विकसंत । दल प्रति एक अप्सरा जान सब सत्ताईस कोटि प्रमान । ता गज पै आरुढ़ जु इन्द्र अरु सब संग इन्द्राणि वन्द । इसी तरह पं० रूपचन्द जी आगरा (सं० १६८४) की पदावली निरखिए :धनराज तब गजराज मायामयी निरमय आनियो । जोजन लाख गयंद बदन सौ निरमये । वदन वदन वसु दंत, दंत सर संठये । सर सर सौपन बीस कमिलिनी छाजहीं। कमिलिनि कमिलिनी कमल पचीस विराजहि । रार्जाइ कमिलिनी कमल अठोत्तर सौ मनोहर दल बने । दल दलहिं अपछर नटहिं नत्ररज हाव भाव सुहावने । मणि कनक किकिणि वर विचित्र सु अमर मण्डप सोहये । धन घंट धुजा पताका देखि त्रिभुवन मन मोहये । इस तरह हमने साहित्यिक दृष्टि से ऐरावत (हाथी) की विवेचना का रसपान किया अब सांस्कृतिक दृष्टि से भी हाथी के महत्व का अंकन करें। भारतीय जनजीवन में हाथो का बड़ा भारी महत्व रहा है । इसीलिए सिंधुघाटो एवं हड़प्पा के पुरावशेषों के उत्खनन में प्राप्त सीलों पर अंकित हाथी के चिह्न हमें भारत में पांच हजार वर्ष की प्राचीनता तक हाथी के अस्तित्व का बाध कराते हैं। भारतीय चिन्तन परम्परा में हाथी एक सामान्य पशु या घरेलू प्राणी नहीं है अपितु मानवीय गुणों की सम्भावना से युक्त एक श्रेष्ठतम प्रतीक समझा जाता है। भारतीयों ने हाथी में शक्ति, सभ्यता, बुद्धि, प्रतिभा, भक्ति, स्नेह, साहस, धैर्य, वैभव, नेतृत्व, त्याग, अपनत्व, श्रद्धा, विश्वास आदि अनेक मानवीय गुणों के दर्शन किए हैं। इसीलिए प्राचीन भारत की सेना की सर्वश्रेष्ठ शक्ति आंकी गई थी और सेना के सभी कार्यों में हाथी का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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