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________________ ४२० पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [ खण्ड चारों दिशाओं में दिखाई देता था । इस कारण जनसाधारण उन्हें 'कमलासन पर विराजमान चतुर्मुखी आदि ब्रह्मा' भी कहते थे । भगवान् ने आचारांग आदि १२ अंगों का तथा प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग का उपदेश दिया । उनके उपदेश का क्रमाचार विवेचन करनेवाला प्रथम गणधर उनका ही दीक्षित साधुपुत्र 'वृषभसेन' हुआ। वृषभसेन के बाद ८३ गणधर और भी हुए । इस प्रकार भगवान् ऋषभ लम्बे समय तक मोक्षमार्ग का प्रचार करते हुए आत्मसाधना के लिए कैलास पर्वत पर विराजमान हुए । वहाँ उन्होंने सम्यग्दर्शन, सम्यग्याज्ञान तथा सम्यक् चारित्र रूप त्रिशुल के द्वारा अवशिष्ट कमशत्रुओं का क्षय किया । उस समय उनका नाम कैलासपति प्रसिद्ध हुआ । पर्वतनिवासिनी जनता (पार्वती) उनको अपना प्रभु मानती थी, अतः वे पार्वतीपति भी कहे जाने लगे । भरत की दिग्विजय भगवान् ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र भरत ने राज्यसिंहासन पर बैठर न्याय-नीतिपूर्वक बहुत दिनों तक शासन किया । कुछ समय पश्चात् वे अपनी विशाल सेना और 'चक्र' नामक दिव्यास्त्र लेकर दिग्विजय के लिए निकले । समस्त देशों तथा समस्त राजाओं को जीतकर वे प्रथम चक्रवर्ती सम्राट् बने । उन्हों के नाम पर समस्त देशों का सामूहिक नाम 'भरतक्षेत्र' तथा इस देश का नाम 'भारत' प्रसिद्ध हुआ । जैनशास्त्रों के इस कथन की पुष्टि अन्य जैनेतर पुराण तथा शास्त्र भी करते हैं । वेदों में भगवान् आदिनाथ का नाम ऋषभ, वृषभ तथा हिरण्यगर्भ के रूप में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता हैं। शिवपुराण आदि में ऋषभ का चरित्र वर्णित है | भागवत ( प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय ) में ऋषभ को विष्णु के २२ अवतारों में आठवां अवतार माना गया है । यहाँ उनके माता-पिता का नाम मरुदेवी और नाभिराय ही है । बाबा आदम और रसूल इस्लाम धर्म के अनुसार मनुष्यों को सन्मार्ग पर चलाने के लिए बाबा आदम ने धर्म का उपदेश दिया । क्षुल्लक पार्श्वकीर्ति ( वर्तमान नाम एलाचार्य मुनि श्री विद्यानन्दजी ) ने विश्वधर्म की रूपरेखा ( पृ० ३८ ) में लिखा है कि 'आदम' आदिनाथ का अपभ्रंश रूप है । इस्लाम जिस आदि पुरुष को 'आदम' शब्द से कहता है, वह बाबा आदम भगवान् ऋषभनाथ ही हैं जिनका अपर नाम आदिनाथ है। एलाचार्य ने कहा है कि इस्लामी ग्रन्थों में बताया गया है कि नबी का बेटा रसूल था जिसको खुदा ने ईश्वरीय उपदेश जनता तक पहुँचाने के लिए पैदा किया। इसका भी अभिप्राय वही है कि नबी ( नाभि ) का पुत्र ( बेटा ) रसूल ( ऋषभ ) हुआ जो मनुष्यों का पहला धर्मोपदेशक था । भरत और भारत हमारे देश का नाम भारत, अत्यन्त प्राचीन नाम है । देश का यह नाम भगवान् आदिनाथ के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम पर प्रचलित हुआ है । इस बात का समर्थन मार्कण्डेयपुराण ( अध्याय १२ ), तथा नारदपुराण ( अ० ४८ ) आदि कहते हैं । विष्णुपुराण ( अंश २ अध्याय १ ) में कहा गया है कि सौ पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र भरत ऋषभ से पैदा हुआ। उस भरत से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। भगवान् ऋषभ के जीवन में, जैन संस्कृति के अतिरिक्त भारतीय संस्कृति के भी अनेक मिथकीय तत्त्व प्रचुरता के साथ हमें दिखाई पड़ते हैं—जैसे, हिरण्यगर्भ की कल्पना, ब्रह्मा, प्रजापति और त्रिशूलधारी, जटाओं में गंगा को धारण करने वाले, पार्वतीपति शिव के स्वरूप, भरत का नाट्यशास्त्र और भरत नाम की कल्पना, ब्राह्मीलिपि और अंक विद्या का प्रादुर्भाव आदि । इस प्रकार जैन तीर्थंकर भगवान् ऋषभ का जीवन, जैन मिथक के आदि स्रोत के रूप में तो प्रतिष्ठित है ही, भारतीय मिथकों के स्रोत के रूप में भी प्रतिष्ठित किया जा सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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