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________________ खण्ड ३८८ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ विरला पुरातत्व संग्रहालय, भोपाल में भी शहडोल जिले के अंतरा (सिंहपुर ) नामक ग्राम से लाल बलुये पत्थर से निर्मित अंबिका की मूर्ति संग्रहोत की गयी है । इसकी ऊँचाई १०५ सेमी ० है । यह मूर्ति जैन तीर्थंकर नेमीनाथ की उपासिका शासन देवी है । अंबिका ललितासन में द्वि-पंक्तिबद्ध कमल के ऊपर विराजमान हैं । इसके बांये हाथ में प्रियंकर (कनिष्ठपुत्र) उसकी गोदी में बैठा है । ज्येष्ठ पुत्र शुभंकर पाद पीठ पर खड़ा हुआ है। शुभंकर के बांये हाथ में आम्र फल है और दायां हाथ ऊँचा उठा है । अंबिका का दाया हाथ खंडित है । मस्तक पर मुकुट, कान में कुण्डल, गले में कपूरहार, हाथ में कड़ा, मेखला एवं ऊँगलो में अँगूठी आदि आभूषण से यह मूर्ति अलंकृत है । प्रतिमा वस्त्रयुक्त है जिसकी लहरें पैरों में कलात्मक रूप से दर्शायी गयी है । अंग का ऊपरी भाग निर्वस्त्र है । कंधों पर उत्तरीय दर्शाया गया है । आम्रफलों के गुच्छे और आभामंडल दोनों ओर अंकित हैं । प्रतिमा के दोनों ओर हार लिये परिचारिका प्रदर्शित है । अम्बिका का वाहन सिंह पादपीठ के बायीं ओर दर्शाया गया है । प्रतिमा के ऊपर मध्य में तीर्थंकर नेमीनाथ ध्यानस्थ बैठे हैं जिनके दोनों ओर उड़ते विद्याधर युगल दर्शाये गये है | देवी की मूर्ति यद्यपि खंडित है किन्तु उसकी वृत्ताकार मुखाकृति, पुष्ट वक्ष और क्षीण कटिभाग, आभामय मुखमंडल एव सौम्य मुद्रा आदि से इस प्रतिमा के कलात्मक सौन्दर्य में वृद्धि हुयी है । यह प्रतिमा ९-१० सदी की कलचुरी जैनकला का श्रेष्ठ नमूना है । (६) पार्श्वनाथ जैनमंदिर, शहडोल में जैन ! पुरातत्व यह मंदिर शहडोल नगर के मध्य में स्थित है । मंदिर में अलंकृत तीन तोरण द्वार के अवशेषों सहित कुल बोस कलचुरी कालीन जैन पुरावशेष है । इनमें भगवान् आदिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर की मनोज्ञ मूर्तियाँ है जो पद्मासन ध्यानस्थ मुद्रा में हैं | एक छोटी मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में है । ये मूर्तियाँ ९-१० सदी की हैं जो सोहागपुर के प्राचीन जैन मंदिरों के भग्नावशेषों से संग्रहीत की गयी है । इनमें १२२ सेमी ० ऊँचो भगवान् महावीर की अखंडित मूर्ति अतिशय 'युक्त कही जाती है जो मूलनायक के रूप में पूजनीय है । भगवान पार्श्वनाथ की सप्तफणों से युक्त १२२ सेमी० की कलात्मक मूर्ति भी उल्लेखनीय है जो व्यानरत मुद्रा में है । इनके केश घुंघराले तथा उष्णीबद्ध है । हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न है । यह इन्द्र, शासन देवी-देवता, लांछन एवं छत्र आदि से युक्त है । ये मूर्तियां दर्शक को सहज हो मोह लेती हैं । यहाँ भगवान् आदिनाथ की १०८ तीर्थकरोंयुक्त मूर्ति उल्लेखनीय है । । यहाँ पद्मासन मुद्रा में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ( ऋषभदेव ) ध्यानस्थ हैं । ऋषभ चिह्न के ऊपर शासन देवी चन्द्रेश्वरी अंकित हैं । शासन देवी के ऊपर पुष्प पत्रों से अलकृत पादपोठ आसन है और उसके दायें-बायें व्यक्ति उन्मुक्त मुद्रा में प्रदर्शित हैं केश घुंघराले एवं उष्णीबद्ध हैं । हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न एवं कण्ठ में त्रिवलय है | आदिनाथ नासाग्रदृष्टि किए हैं। पृष्ठभाग पद्म मण्डल चक्र की आभा से शोभित है। पद्म मण्डल चक्र के ऊपर छत्र है जिसके दोनों ओर घटों को धारण किए हुए गजरत्नों द्वारा घटाभिषेक किया जा रहा है । घटों एवं गजों के नीचे चामरधारिणी गन्धर्व कन्यायें उत्कोणं हैं । मूर्ति के दोनों ओर सौधर्म एवं ईशानेन्द्र हैं । भगवान् आदिनाथ की बायीं ओर १८ एवं दायों ओर १९ तोर्थंकर पद्मासन मुद्रा में ६-६ पंक्तियों में दर्शाये गये हैं । प्रत्येक पंक्ति में ३-३ तीर्थंकर हैं । गज के बायों ओर ६ एवं दायों ओर ७ तोर्थंकर पद्मासन मुद्रा में है । मस्तक के ऊपर १५ तीर्थंकर कार्योत्सगं मुद्रा में प्रदर्शित हैं । इनके ऊपर तीन पंक्तियों में ३० तीर्थंकर पद्मासन मुद्रा में दर्शाये गये हैं । इनके दोनों ओर ३-३ पंक्तियों में दो-दो तोर्थंकर पद्मासन मुद्रा में सुशोभित है । इस प्रकार मूल नायक सहित कुल १०८ तीर्थंकर पद्मासन एवं कार्योत्सर्ग मुद्रा में प्रदर्शित है। यह मूर्ति ९-१० सदी की, लाल बलुए पत्थर पर निर्मित है। यह बघवा ग्राम के आसपास के प्राप्त हुई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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