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________________ श्रीधर स्वामी की निर्वाण-भूमि : कुण्डलपुर ३७९ __ संभवतः कुंडलगिरि के नाम के कारण नीचे बसे छोटे से ग्राम का नाम कुंडलपुर पड़ा होगा। इसके पूर्व इस ग्राम को 'मन्दिर टीला' नाम से कहते थे । शिलालेख में इसे इसी नाम से उल्लिखित किया गया है। संभवतःब्र नेमिसागर जी का ध्यान भी चरणों के उस छोटे लेख पर नहीं गया, जैसे कि पचासों बरसों से उनके दर्शन करने वाले हजारों व्यक्तियों का नहीं गया। यह लेख इसके बाद क्षेत्र के अध्यक्ष श्री राजाराम जी बजाज, सिंघई बाबूलाल जी कटनी तथा वहाँ के एक मन्दिर निर्माणकर्ता ऊँचा के सिंघई तथा अन्य कई लोगों ने पढ़ा है। चौक में छतरी प्रारम्भ से ही है, नवीन नहीं है। उससे चौक में स्थान की कमो आ जाती है पर प्राचीन होने से अभी तक सुरक्षित चली आई है । यह भी इस बात का प्रमाण है कि यह श्रीधर केवली का मुक्ति स्थान ही है। छतरी बिना प्रयोजन नहीं बनाई जाती। १५०१ के संवत की एक जीर्ण प्रतिमा में उस स्थान का नाम निषधिका (नसियाँ) भी लिखा है । कटनी के स० सिं० धन्यकुमार जो ने श्रीधर केवली के नवीनचरण भी पधराए हैं । इन प्रमाणों के प्रकाश में यह बिल्कुल स्पष्ट है कि 'कुन्डलगिरि' (दमोह, म० प्र०) ही श्रीधर केवली की निर्वाण भूमि है। अध्यात्म का क्षेत्र वैज्ञानिक क्षेत्र है। इस यात्रापथ के पथिक को वैज्ञानिक होना और बनना ही पड़ता है। ऐसा नहीं होता कि आचार्य वैज्ञानिक बन जाय, सत्य की खोज करे और उसके अनुयायी उस खोजे हुए सत्य का उपभोग करें। प्रत्येक साधक को वैज्ञानिक बनना होता है, परीक्षण करना होता है और सत्य को ढढ़ निकालना होता है -महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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