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________________ रीवा के कटरा जैन मन्दिर की मूर्तियों पर प्रशस्तियाँ पुष्पेन्द्र कुमार जैन कटरा, रीवा, म०प्र० रीवा नगरी विन्ध्य क्षेत्र का शीर्ष है। १९४८ तक यह बघेल वंशीय राजाओं की राजधानी रही। तदुपरान्त भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति पर, इसे ३६ राज्यों के एकीकरण से बने विन्ध्य प्रदेश की राजधानी बनाया गया। १ नवंबर १९५६ से राज्य पुनर्गठन आयोग की अनुशंसा पर विन्ध्य प्रदेश को मध्य प्रदेश नामक वृहत् राज्य में संविलयित किया गया । तबसे यह मध्य प्रदेश का प्रमुख संमाग है और उत्तर प्रदेश से लगने वाला प्रमुख सीमान्त क्षेत्र है। वर्तमान में इसकी जनसंख्या लगभग एक लाख है। इसके चारों ओर बाणसागर, सिगरौली, टोंस, चुरहट एवं अन्य स्थानों पर बहुमुखी योजनायें विकसित हो रही है जिनसे यह नगरी भविष्य में भारत के औद्यौगिक मानचित्र पर महत्वपूर्ण स्थान पा सकती है । कुछ ही वर्षों में यहाँ से रेल सम्पर्क भी हो जायेगा। ___ राजनीतिक महत्व के साथ रीवा का शैक्षिक एवं साहित्यिक महत्व भी है। तुलनात्मकतः अल्पकाय इस नगरी में विश्वविद्यालय, चिकित्सा एवं इंजीनियरी महाविद्यालय, सनिक एवं केन्द्रीय विद्यालय, शिक्षा एवं कृषि महाविद्यालय, शिक्षक-प्रशिक्षण विद्यालय एवं अन्य सभी प्रकार की शैक्षिक सुविधायें उपलब्ध हैं। व्यापारिक दृष्टि से यह इलाहाबाद, सतना, कटनी, जबलपुर नगरों से प्रभावित है। ऐसा कहा जाता है कि निकट भविष्य में यह अपने क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बन सकेगी। जैन समाज मुख्यतः व्यापार-प्रधान समाज है। व्यापार की अल्पता के कारण इस नगरी में जैनों ने अपना समुचित्त स्थान नहीं प्राप्त कर पाया। वृद्ध जैनों से जानकारी मिलती है कि आज के रीवावासी जनों के कुछ मूल परिवार लगभग एक सौ पचास या दो सौ वर्ष पहले छतरपुर जिले से आये थे। ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय छतरपुर जिले में कोई न कोई ऐसी घटना अवश्य हुई होगी जिससे वहां के जैनों को अन्यत्र जाना पड़ा हो। यह अन्वेषणीय है । जबलपुर के प्रमुख जन परिवार भी छतरपुर-मूल के ही हैं। उनमें से कुछ की संपत्ति आज भी वहाँ है । इन मूल परिवारों के ही अनेक उपपरिवार अब रीवा में हो गये हैं। इनका प्रारम्भिक व्यवसाय वस्त्र-विक्रय एवं लेन-देन रहा है। पर कुछ वर्षों से किराना, सामान्य उपयोगी-वस्तु एवं औषध व्यवसाय में भी स्थानीय जैन लग रहे हैं । कुछ उच्चशिक्षित होकर शासकीय नियोजन में भी उच्च पदों पर कार्य कर रहे हैं । रीवा नगर में जनों के दो मंदिर हैं-एक कटरा में और दूसरा किला मार्ग पर । कटरा का मन्दिर लगभग दो सौ वर्ष पुराना है। किला मार्ग का मन्दिर लगभग ३०-३५ वर्ष पुराना है । कटरे के मन्दिर में दो वेदियां हैं। एक वेदी पर मऊगंज के हिलकी ग्राम से प्राप्त १००८ भगवान शान्तिनाथ की खङ्गासन मूर्ति है। उसके साथ कुछ अन्य मूर्तियां भी है। इस वेदी का निर्माण वीर निर्वाण संवत् २४४१ ( १९१४ ) में किया गया था। इस विशालकाय आकर्षकमूर्ति पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है। ऐसी ही एक मूर्ति सतना के दिगम्बर जैन मन्दिर में है। इन मूर्तियों के प्रति जनों में बड़ा श्रद्धाभाव है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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