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________________ पं० जगन्मोहनदास शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ तेरह-बीस पन्थ में समझौतावादी, विद्वत्परिषद् के प्राण, दि० जैन संघ के प्राण प्रतिष्ठापक, समुद्रवत् गम्भीर, सौम्यमूर्ति, अनुशासन प्रिय, सादगी की मूर्ति, शान्ति पथ के पथिक, उदार एवं सरल हृदय, तर्क वागीश, संस्कृतप्राकृत आदि भाषाओं के उद्भट विद्वान्, शान्ति निकेतन ( कटनी विद्यालय ) के निकेतन, स्वाध्याय प्रेमी, कुशल प्रवक्ता, आगमज्ञ, विविध पत्र-पत्रिकाओं के मार्गदर्शक, जैन संदेश के भूतपूर्व सम्पादक, अनेक संस्थाओं के सक्रिय कार्यकर्ता, अनेक पुरस्कारों एवं सम्मान पत्रों से सम्मानित, देशप्रेमी, राजनीति निष्णात, छात्रों के हितैषी तथा सर्वधर्म समन्वयवादी श्रावकधर्मप्रदीप (ग्रन्थ के अनुवादक) के प्रदीपक, श्रावकाचार सारोद्धार (ग्रन्थ के अनुवादक) के उद्धारक तथा अध्यात्म अमृत कलश स्वात्मबोधिनी की प्रश्नोत्तरी टीका के रचयिता है। (४) सप्त संख्या से सम्बन्ध-सातवें तीर्थङ्कर सुपार्श्व नाथ की जन्म भूमि स्याद्वाद महाविद्यालय काशी में अध्ययन करने के कारण आप में सप्त संस्था का प्रवेश कर गया। फल स्वरूप आप सात प्रतिमाधारी, सप्त व्यसन त्यागी, सात बन्धुओं और पुत्रों से पुत्रवन्त, सात नयों के ज्ञाता, सप्तभङ्गी के व्याख्याता, सात स्थानों से विशेष सम्बन्धित (शहडोल, कटनी, मथुरा, सागर, मोरेना, काशी और कुण्डलपुर), सप्तम वर्ष में मातृ वियोगी, सात कर्मों (आयु कर्म छोड़कर) का प्रतिक्षण प्रकृति बन्ध और प्रदेश बन्ध करते हुए भी स्थिति और अनुभागबन्ध से विरक्त हो गए। (५) परिवार मंडल-जो धन्य कुमार जैसे अनुज सहयोगी से सतत परिवेष्टित हो, वह स्वयं क्यों न धन्य हो ? जो नाम और गुणों से इन्दु और शशि नामक चन्द्रवदना कन्याओं का जनक हो, वह स्वयं आह्लादकता सुन्दरता, शीतलता आदि चन्द्र गुणों से क्यों न परिपूर्ण हो ? प्रमोद और विनोद से युक्त अमरचन्द, देवचन्द, देवकुमार जैसे सुरगणों का जो जनक हो, वह सिद्धार्थ का जनक क्यों न हो ? क्षमा, समता, ममता की मीना से जड़ित तथा शशि प्रतिबिम्बित गुणमाला से जिसके पुत्र समलकृत हो, वह स्वयं क्यों न गुणों-रत्नों की निधि हो ? (६) कटनी और कुंडलपुर निवास में हेतु-जैसे किसान फसल के तैयार होने पर कटनी करता है, वैसे ही ज्ञानार्जन के बाद रत्नत्रय रूपी फसल की कटनी करने के लिए कटनी में ही रमने वाले, अथवा ज्ञानावरणादि कर्मों की कटनी फटनी करके ज्ञानस्वभावी आत्मा की रक्षा करने हेतु कटनी को कार्यक्षेत्र चुनने वाले, अथवा दूसरों के अज्ञानान्धकार को काटने हेतु कटनी को निवास स्थान बनाने वाले, अथवा रत्नत्रय की करनी और कर्मों की कटनी में निश्चय-व्यवहार नय के द्वारा समन्वय करने की इच्छा से कटनी को ही कार्य क्षेत्र चुनने वाले गुरुवर्य ने कटनी को ही रणभूमि बनाया। जैसे कुण्डल से कान अलङ्कृत होता है, उसी प्रकार महावीर रूपी कुण्डल से अलङ्कृत सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर का आश्रय ही सच्चे अलङ्कार का साधन है, ऐसा जानकर पीछे कुण्डलपुर में हो लवलीन हो गए। ऐसे स्वनाम धन्य वीतरागी, आपाततः विरोधाभासी परम पूज्य गुरुवयं को मेरा शत शत वन्दन जिनके पदार्पण से न केवल उनका जन्म स्थल शहडोल ग्राम धन्य है, अपितु समस्त भूमण्डल धन्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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