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________________ ३०२ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड वैद्यवल्लभ यह ग्रन्थ मूलतः संस्कृत में पद्यबद्ध लिखा गया था। फिर उसका संभवतः लेखक (हस्तिरुचि) ने ही गुजराती में अनुवाद किया था । मूल-ग्रन्थ का रचनाकाल वि० संवत् १७२६ (१६६९ ई०) दिया है : "तेषां शिशुना हस्तिरुचिना सवैद्यवल्लभो ग्रन्थः । रसनयनमुनिंदुवर्षे (६२७१ = १७२६)परोपकाराय विहितोयं ॥" ग्रन्थ के अन्त में किसी-किसी पाण्डुलिपि में निम्न दो पद्य मिलते हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि तपागच्छ के उदयरुचि हितरुचि आदि अनेक शिष्य हुए जो ‘उपाध्याय' पदवी धारण करते थे। हितरुचि के शिष्य हस्तिरुचि हुए । "श्रीमत्तपागणांभोजनायकेन नभोमणि । प्राज्ञोदयरुचिर्नाम बभूव विदुषाग्रणी ॥ ५५ ।। तस्यानेके महशिष्या हितादिश्चयो वस । जगन्मान्यारुपाध्यायपदस्य धारकाऽभवन्" ।। ५६ ॥ ग्रन्थ की अन्तिम पुष्पिका इस प्रकार मिलती है: "इति श्रीमत्तपागच्छे महोपाध्याय श्री हितचिगणितच्छिष्यकविहस्तिरुचिकृत वैद्यवल्लभे शेषयोगनिरूपणा विलासः ॥" "इति श्री कविहस्तिरुचिकृतवैद्यवल्लभो ग्रन्थ सम्पूर्ण ॥ श्री॥" इस ग्रन्थ में आठ "विलास' (अध्याय) हैं : १. सर्वज्वरप्रतीकारनिरूपण (२८ पद्य) २. स्त्रीरोगप्रतीकार (४१ पद्य) ३. कास-क्षय-शोक-फिरंग-वायु-पामा-दद्रु-रक्तपित्त-प्रभृति रोगप्रतीकार (३० पद्य) ४. धातु-प्रमेह-मूलकृच्छ्र-लिंगवर्धन-वीर्यवृद्धि-बहुमूत्र-प्रभृतिरोगप्रतीकार (२९ पद्य) ५. गुद-रोगप्रतीकार (२४ पद्य) ६. विरेचि-कुष्ठविषगुल्ममन्दाग्नि-पांडु-कामलोदररोगप्रभृतिप्रतीकार (२६ पद्य) ७. शिरःकर्णाक्षिभ्रममूसिंधिवात ग्रंथिवात रक्तपित्तस्नायुकादिप्रभृतिप्रतीकार (४२ पद्य) ८. पाक-गुटिकाधिकार-शेष रोगनिरूपण-सन्निपात-हिक्का-जानुकम्पादि-प्रतीकार (४० पद्य)। इसमें रोगानुसार योग का संग्रह है । सब योग अनुभूत, सरल और विशिष्ट हैं। 'प्रोक्तोऽय कवि हस्तिना' (१९१०), 'एतद् हस्तिकवेर्मतम्' (२।१, २), 'कविहस्तिना मतः' (२०१८), 'दत्तं सहस्तिकविना' (६।२४), 'कारितं कविना' (२।३३, ३।१३), 'हस्तिना कथितं' (२०२९) आदि कहने से ज्ञात होता है कि ये योग हस्तिरुचि के अनुभुत और निर्दिष्ट थे। श्वेतप्रदर को इसमें 'स्त्रियों का धातुरोग' (२०१७) कहा गया है तथा रक्त टहा १ यह ग्रन्थ मथरा निवासी पं० राधाचन्द्र शर्मा कृत ब्रजभाषा टोका-सहित वेंकटेश्वर प्रेस बम्बई से सं० १९७८ में प्रकाशित हुआ था। २. दुर्गाशंकर केवलराम शास्त्री ने लिखा है : "यह ग्रंथ सं० १६७० में रचा गया था, ऐसा गोंडल के इतिहास में लिखा है, कर्ता का नाम हस्तिरुचि के स्थान पर हस्तिसूरि दिया है।" ('आयुर्वेदनो इतिहास', पृ० २४४)। ३. भण्डारकर ओरियण्टल रिचसं इन्स्टीट्यूट, पूना के ग्रन्थागार में पाण्डुलिपि क्र. ५९९।१८९९-१९१५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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