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________________ २७६ पं० जगमोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड सामान्य आहार घटकों में उपरोक्त विभाग निश्चित रूप से आधुनिक आहार विज्ञान के अनुरूप नहीं प्रतीत होता। इसमें सन्तुलित आहार की धारणा का समावेश नहीं है। इसी कारण अधिकांश साधुओं में पोषक तत्वों का अभाव बना रहता है और उनका शरीर तप व साधना के तेज से दीपित नहीं रहता है । वह प्रभावक एवं अन्तःशक्ति गर्मित भी नहीं लगता । यद्यपि सैद्धान्तिक दृष्टि से यह तथ्य महत्वपूर्ण नहीं है, फिर भी व्यावहारिक दृष्टि से यह तथ्य महत्वपूर्ण नहीं है, फिर भी व्यावहारिक दृष्टि से इसकी महान् भूमिका है। भक्ष्याभक्ष्य विचार जैन शास्त्रीय आहार विज्ञान में विभिन्न खाद्य पदार्थों की एषणीयता पर प्रारम्भ से ही विचार किया गया है । आचारांग, समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलंक, भास्करनन्दि, आशाधर और शास्त्री ने अमक्ष्यता के निम्न आधार बताये हैं। ( सारणी ५)। इनसे स्पष्ट है कि अभक्ष्यता का आधार केवल हिंसात्मकता ही नहीं है, इसके अनेक लौकिक आधार भी हैं। मानव के परपोषी होने के कारण इन सभी आधारों पर विचारणा स्वतन्त्र शोध का विषय है। सारणी ५. अभक्ष्यता के आधार ( शास्त्रीय ) आधार कारण उदाहरण १. सजीवधात, बहुजन्तुयोनिस्थान दो या अधिकेन्द्रिय जीवों की स्थिति से पंचोदंबरफल, चलित रस, आचारबहुधात । बहुबध । हिंसा । मुरब्बादि, मधु, मांस, द्विदल, प्रस-जीव हिंसा। रात्रिभोजन २. स्थावर जीव धात प्रत्येक अनंतकाय वनस्पति जीवों को कंदमूल, बहु वीजक, कोंपल, कच्चे ( अनंतकायिक) हिंसा। फल ३. प्रमाद/मादकता वर्धक आलस्य, उन्मत्तता, चित्त विभ्रम मद्य, गांजा, भांग, चरसादि ४. रोगोत्पादकता/अनिष्टता स्वास्थ्य के लिये अहितकर ५. अनुपसेव्यता लोकविरुद्धता प्याज, लहसुन आदि ६. अल्प फल-बहु विधात, अल्प वनस्पति धात गन्ने की गड़ेरी, तेंदू, कलोदा, फलीभोज्य-बहु-उज्झणीय दार पदार्थ, माली, सूरण ७, अपक्वता/अशस्त्र प्रतिहतता/ सभी वनस्पति प्रारम्भ में सजीव जल अनग्निपक्वता रहते हैं, अप्रासुक हैं इन आधारों पर शास्त्रों में अमक्ष्य पदार्थों की बाइस श्रेणियां बताई गई हैं। यह संख्या तेरहवीं सदी में स्थिर हुई है। इसके पूर्व शास्त्रों में अभक्ष्यों की कोटियां तो बताई गई, पर निश्चित संख्या का संकेत नहीं था। साध्वी मंजूला'• के अनुसार, इनका सर्वप्रथम उल्लेख धर्मसंग्रह नामक ग्रन्थ में मिलता है। सारणी ६ में तीन स्रोतों में प्राप्त बाइस अभक्ष्यों को दिया गया है । इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक सूची में कुछ अन्तर है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस सूची में समय-समय पर नाम जोड़े गये हैं, इसीलिये इसमें अनेक नामों कोटियों में पुनरावृत्ति भी है। उदाहरणार्थ, चलित रस में मद्य, मक्खन, द्विदल, आचार मुरब्बा समाहित होते हैं और बहुवीजक में बैंगन आ जाता है। इन्हें चार कोटियों में वर्गीकृत कर वैज्ञानिक दृष्टि से समीक्षित किया जाना चाहिये। अनेक प्रकार के प्राकृतिक एवं संश्लेषित खाद्य पदार्थों का युग है। उनकी भक्ष्याभक्ष्य विचारणा भी आवश्यक है। इस पर अन्यत्र चर्चा की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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