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________________ आशीर्वचन एवं शुभकामनाएं चंदनीय विभूति पं० नाथूलाल जी शास्त्री इन्दौर, म०प्र० मैं पण्डित जी को मथुरा संघ के अध्यक्ष मनोनीत होने के समय से १९४६ से हो जानता हूँ। उन दिनों वहाँ जैन ज्योतिष और वेदी प्रतिष्ठान-सम्बन्धी शिक्षण शिविर आयोजित किया गया था। इस शिविर में पण्डित जी का ही मार्गदर्शन था, जो सफल रहा। १९४४ में वीर शासन महोत्सव के अवसर पर विद्वत परिषद की स्थापना में भी आपका अमोघ योगदान था। आपमें सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चरित्र का सुमेल कांचन-मणि संयोग है । उत्तम विचारक एवं समाज-व्यवहार के सूक्ष्मज्ञ होने से उन्होंने समाज, व्यक्ति एवं पञ्चायतों के अनेक विवाद सुलझाये हैं। आपका जैन संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन में महान् योगदान है। वे आगमानुकूल आधुनिक विचार भी प्रस्तुत करते हैं। समाज के संगठन में बाधक वर्तमान संघर्ष को देखकर आप चिन्तित हैं। अनुशासन बिना बहुनायकत्व समाज को कहाँ ले जायगा, यह विचारणीय है। वे हमारी वन्दनीय विभूति हैं । मेरी कामना है कि वे विद्वत्-गण रूपी उपवन को सदैव सुरभित करते रहें । परवार सभा के प्राण दादा नेमीचंद्र जैन मंत्री, परवार सभा, जबलपुर मैं पंडित जी से पिछले पचास वर्षों से भी अधिक समय से परिचित हूँ। जातीय सभाओं के निर्माण के युग में परवार सभा का भी सूत्रपात हुआ। यह जातीय इतिहास, विकास तथा हितों के संरक्षण के साथ ही जैन सामाजिकता के सुदृढ करने का भी काम करती है । इसने पंडितजी के मार्गदर्शन में लगभग अर्धशती का जीवन पाया है। इस संपर्क से मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है-संगठन-शक्ति, संस्था-संचालन कला और समाज को ले चलने की चतुराई। उनके ये गुण हम सबको बल दें, यही हमारी मंगलकामना है। कलाबाज पंडित जी पंडित जमनाप्रसाद शास्त्री कटनी, म०प्र० मैंने पंडित जी के मार्गदर्शन में जैन शिक्षा संस्था, कटनी में अनेक दशकों तक कार्य किया है। फलतः मैं पंडित जी को भीतर और बाहर-दोनों दिशाओं से जानता हूँ। जैन समाज की भीतरी जटिलताओं से पंडित जी परिचित हैं और उनसे मुस्कुराते हुए निपटना उन जैसे कलाबाज का ही काम है । उनके साथ अनेक खट्टे-मीठे अनुभव जुड़े हुए हैं पर मैंने हंस-क्षीर-न्याय का सहारा लेकर उनमें गुणगरिमा ही अधिक पाई है। मैं चाहता हूँ कि उनका मार्गदर्शन हमें सन्मार्ग पर लगाये रखे । मैं उनका आशीर्वाद-अभिलाषी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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