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________________ ४] ज्ञान प्राप्ति की आगमिक एवं आधुनिक विधियों का तुलनात्मक समीक्षण २२१ चरण क्रमशः होते हैं। अभ्यास या अन्य कारणों से अनेक बार इन चरणों का सूक्ष्य काल भेद प्रतीत नहीं होता और तत्काल अवाय ज्ञान ही होता दीखता है। सामान्य दशाओं में सभी चरण पूर्ण न होने पर ज्ञान निर्णयात्मक एवं यथार्थ नहीं होता। इन चरणों का शास्त्रीय विवेचन अन्यत्र दिया जा रहा है। मतिमान को विषय वस्तु के विविध रूप __ उपरोक्त अवग्रह आदि चरणों के क्रम से पूर्वोक्त अनुयोग द्वारों के माध्यम से पदार्थों के विषय में ज्ञान किया जाता है । यह ज्ञान इन्द्रियगम्य रूपों की विविधता तथा ज्ञान प्राप्ति के निमित्तों ( बुद्धिपटुता या क्षयोपशम ) को तरतमता पर आधारित होता है । इन्द्रिय रूप के आधार पर पदार्थ ( अतएव उनका ज्ञान ) छह प्रकार के हो सकते हैं : (i) एक, एकविध, बहु, बहुविध, निःसृत और अनिसृत बुद्धि को पटुता के आधार पर भी ज्ञान छह कोटियों से हो सकता है : (ii) क्षिप्र, अक्षिप्र, उक्त, अनुक्त, ध्रुव, अध्रुव अवग्रहादिक प्रत्येक चरण से इन बारह रूपों में ज्ञान प्राप्त होता है। इनका निरूपण सारणी ४ में दिया गया है। इनकी परिभाषा व उदाहरणों से प्रतीत होता है कि इन भेदों में पर्याप्त पुनरावृत्ति है । यदि ये भेद न भी होते, सारणी ४ : पदार्थों के ज्ञान के विविध रूप : मतिज्ञान नाम अर्थ उदाहरण १. बहु सामान्य संख्या, परिमाण बाजार में बहुत गेहूँ है (तौल, परिमाण, संख्या में) २. बहुविध गुणात्मक विविधताओं की संख्या, परिमाण शरबती गेहूँ बहुत है ३. एक संख्या, परिमाण एक घोड़ा, गौ आदि ४. एकविध गुणात्मक विविधता की संख्या, परिमाण यहाँ पंजाबी गौ एक है अनिःसृत एक देश के आधार पर सर्वदेशी पदार्थ का जल-निमग्न हाथी की सूंड देखकर ज्ञान, स्मृति आदि से ज्ञान हाथी का ज्ञान ६. निःसृत सर्वदेश के आधार पर पदार्थ का ज्ञान, गाय देखकर गौ-ज्ञान स्वतः ज्ञान ७. क्षिप्र (i) अतिवेगी पदार्थ का ज्ञान प्रवाही जलधारा (ii) शीघ्र ज्ञान ८. अ-क्षिप्र (i) मन्दगतिक पदार्थ का ज्ञान चरागाह से लौटते हुए पशुओं (ii) देरी से होने वाला ज्ञान का ज्ञान (i) स्थिर पदार्थों का ज्ञान पवंत, वृक्ष आदि (ii) एक रूप या यथार्थ ज्ञान अध्रुव (i) अस्थिर पदार्थों का ज्ञान उड़ते-बैठते पक्षी का ज्ञान दूसरों के कहने पर होने वाला ज्ञान 'यह गौ है', सुनकर गाय का ज्ञान (असंदिग्ध) १२. अनुक्त स्वयं ही सोचकर अभिप्राय मात्र ‘अग्नि लाओ' सुनकर खपरे पर (संदिग्ध) से ज्ञान अग्नि जलते हुए कण्डे का लाना * श्वेताम्बर मान्यता में ५-६ व ११-१२ रूपों के कुछ भिन्न नाम व अर्थ है । उक्त For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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