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________________ - जैन शास्त्रों में मन्त्रवाद २०७ इनके कम-से-कम २१,००० जप करना चाहिये। यह मंत्र सिद्धचक्र विधान तथा गृहप्रवेशादि लौकिक क्रियाओं में भी जपा जाता है। ७. वशीकरण मंत्र-लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र में "ओम् ह्रां""स्वाहा' के बदले निम्न अंश जोड़कर पढ़ना : 'अमुक मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ( ११,००० जप ) ८. महामृत्युंजय मंत्र-लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र में 'ओम् ह्रां "स्वाहा' के बदले 'मम सर्व ग्रहारिष्टान निवारय निवारय अपमृत्यु घातय घातय सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा' पढ़ना । ( ३१,००० से १,२५,००० जप) मंत्रों की साधना आध्यात्मिक या लौकिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रयोग को मन्त्र साधना कहते हैं। इस प्रयोग में मन्त्र को विशिष्ट वातावरण व विधि के अनुरूप बार बार जपा जाता है। यह प्रक्रिया किसी सोते हुए व्यक्ति को वार वार जगाने के समान मानना चाहिये । मन्त्र का यह जप वाचिक, उपांशु एवं मानसिक-किसो भो रूप में किया जा सकता है। वाचिक जप में मन्त्र मुखोच्चारित होता है । उपांशु जप में मन्त्र को शब्दोच्चारण क्रिया भीतर ही होती है, वह मुख में से बहिगत नहीं होता। मानसिक जप में बाहरो ओर भीतरी शब्दोच्चारण नहीं होता, केवल हृदय में मन्त्रों का चिन्तन, विचार होता रहता है। सोमदेव के अनुसार मानसिक जाप सर्वोत्तम होता है । यह वाचिक जाप से सहस्त्र गुण फल वाला होता है । ____ जप शब्द, ध्वनि या मन्त्र को बार-बार पुनरावृत्ति को कहते हैं । इह हेतु सुनिश्चित आवृत्तियों के लिये कमल जाप, हस्तांगुलि जाप एवं माला जाप विधियां प्रचलित हैं। बारंबारता शक्ति की प्रतोक एवं जनक है। आयुर्वेदज्ञ अपने औषधों को बहुसंख्यक पाकों द्वारा ही अधिकाधिक गुणवान बनाते हैं। इससे वे वाह्य शरीर को सक्षम एवं समर्थ बनाने में सहायक होते हैं। मन्त्र साधना भी मन्त्रों का विशिष्ट संख्यक पाक है जो विशिष्ट शक्ति को, विद्युत् चुंबकीय शक्ति के रूप में, अन्तर में उत्पन्न करता है। इस प्रक्रिया में मन्त्र के वर्णों एवं ध्वनियों का शोधन एवं पाक हो कर अन्तरंग शुद्ध होता है। इसलिये जप वस्तुतः अन्तःकरण के लिये अन्तरंग की साधना है। इस साधना में भौतिक या घर्षण शक्ति का नहीं, अपितु विद्युत-चुंबकीय शक्ति का उपयोग होता है। कुछ लोगों के अनुसार, मानसिक जप में ध्वनि आभासी होती है । पर मन्त्र साधक जानता है कि यह वास्तविक होती है। यह उसकी भावना, इच्छा एवं संकल्पशक्ति की तीव्रता पर निर्भर करती है। वस्तुतः भावना पर मन्त्र ध्वनियों का आरुढ करना ही जप है। इस प्रक्रिया में उत्पन्न शक्तिशाली विद्युत चुंबकीय तरंगों का ग्राही साधक भी हो सकता है और साधकेतर अन्य व्यक्ति भी हो सकता है। दोनों पर ही वांछित प्रभाव वड़ता है। इसका कारण यह है कि जप के कारण वार-वार एक-से लय से निकलते शब्द लहरपर-लहर उत्पन्न करते हुए दूरवर्ती माध्यम पर भी अपना इच्छित प्रभाव डालते हैं । ये विद्युत् धारा के समान ऊर्जा उत्पन्न करते हुए होनी को अनहोनी में परिणत कर देते हैं। मन्त्रावृत्ति की शक्ति सभी अवरोधों को पार कर साध्य सिद्धि में सहायक होती है। मंत्र साधना को विधि : साधक की योग्यता ___ मंत्रों की साधना का मूल लक्ष्य तो आध्यात्मिक शक्ति का विकास और कर्मक्षय है, पर सांसारिक प्राणी इससे अनेक प्रकार के लौकिक लक्ष्य भी प्राप्त करना चाहता है । सात्विक साधक के लिये अनेक लौकिक लक्ष्य, निष्काम साधना से स्वयमेव प्राप्त होते हैं । प्रारंभिक साधक इन्हें ही सिद्धि समझ लेता है। वस्तुतः ये चरम सिद्धि के मार्ग के आकर्षण हैं। इनकी उपेक्षा कर आगे साधना करनी चाहिये । मंत्र साधना के लिये साधक पर जाति, लिंग या वर्ण का कोई बंधन नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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