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________________ १६८ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [ खण्ड क्या है और उसे प्रभावित करने के लिये हम क्या कर सकते हैं। इस शोध के कुछ अचरजकारी परिणाम प्राप्त हुए हैं । Grade ने बताया है कि क्रिया योग के अभ्यास से मस्तिष्क का एकीकरण होता है और वह ऐसी अव्यवस्थित अवस्था में नहीं रहता है, जैसा अनेक लोग प्रायः अनुभव करते हैं। बहुतेरों का अनुभव है कि क्रियायोग करने से उनकी अन्तः ऊर्जा का विकास होता है और उनमें रचनात्मक वृत्ति विकसित होती है । उनमें विश्व के ज्ञान के प्रति रुचि होने लगती है । वे अन्तर्मन का ज्ञान कर सकते हैं । इस सम्बन्ध में अभी अच्छा सूचनात्मक साहित्य प्रकाशित हुआ है । यह सब तभी संभव है जब मस्तिष्क के दोनों भाग एकीकृत होकर काम करें। योग-निद्रा से शिक्षा ' योग की शब्दावली में मस्तिष्क के गोलार्धी के एकीकरण की प्रक्रिया को सुषुम्ना नाड़ी का जागरण करते हैं । यह प्राण प्रवाह का मार्ग है जो मेरुदंड तक जाता है मस्तिष्क का बौद्धिक एवं बहिर्मुखी वायां गोलार्धं पिगलानाड़ी के अनुरूप है ( जो शरीर के दाहिने पार्श्व में रहती है ) । इसका दांया गोलार्धं इडा नाडी के अनुरूप है जो मस्तिष्क एवं निराकार ऊर्जा का अन्तर्दृश्य है। आज के शोधकर्ता प्राचीन योगशास्त्र में वर्णित अनेक तथ्यों की व्याख्या अपने अनुसंधानों से प्राप्त कर रहे हैं। वर्तमान शिक्षा पद्धति में सुधार लाने के लिये ध्यान, विज्ञान और शिक्षण को समन्वित किया जा रहा है । बलगेरिया के गोर्गी लुशानोव ने ऐसी पद्धति विकसित की है जो ज्ञान एवं सूचनाओं को अवचेतन मस्तिष्क और मन में प्रविष्ट कराती है और शिक्षण के समय में कमी करती है। यह शिक्षण प्रक्रिया में तीव्रता एवं शीघ्रता लाती है । यह विधि योगशास्त्रीय योग-निद्रा-विधि के समान है । इसमें शिक्षा के बौद्धिक पक्ष को पथान्तरित कर दिया जाता है और इसे काल-दुष्ट सिद्ध किया जाता है। शिक्षण की यह सूक्ष्म विधि अत्यन्त लोकप्रिय रही है। आयोवा राज्य विश्वविद्यालय के डॉ० डॉन शुस्टर ने बताया है कि योगनिद्रा या सम्मोहन के समान विधियों से कमजोर विद्यार्थियों ने आठ माह के पाठ्यक्रम को चार माह में ही पूरा कर लिया । अमरीका में इस विधि का समीक्षण कैलिफोर्निया राज्य विश्वविद्यालय में मई १९७८ में आयोजित सम्मेलन में किया गया था। इसमें बच्चों में कल्पनाशक्ति, स्वप्न, मनोकायिक एवं मनोवैज्ञानिक विकास के लिये लाक्षणिक विचार-धारणाओं, बायोफीडबैक तथा ध्यान की उपयोगिता पर कर्मशालायें आयोजित की गई थीं। इस पद्धति में जो सकारात्मक अन्तर-अनुभूति होती है, उसे परा व्यक्तिगत मनोविज्ञान का नाम दिया गया है । प्रतिभाः तर्क की सहायक - इस सम्मेलन से यह प्रतीत होता है कि भविष्य में ध्यान द्वारा प्राप्त होने वाली आध्यात्मिक या रहस्यात्मक अनुभव प्रभावी, प्रज्ञात्मक एवं मनोवाही शिक्षा के लिये पूरक मान लिये जायेंगे । स्कूलों में ध्यान और उच्च स्तर को प्राप्त करने की शिक्षा केवल शरीर व मन के शिथिलीकरण और व्यक्तित्व के विकास के लिये ही नहीं, अपि तु मस्तिष्क के दक्षिण गोलार्ध को अनावृत करने तथा प्रज्ञा और अनुभव के नये क्षितिजों को खोलने के लिये भी दी जावेगी । इससे हमारी शिक्षा समृद्ध होगी। इसमें योग, शिक्षकों और विद्यार्थियों दोनों के लिये उच्चतर जागरूकता प्राप्त करने में सरणी का काम करेगा। अपनी प्रतिभात्मक क्षमताओं के विकास से हम अपने परिवेश के विविध तत्वों को समन्वित कर सकते हैं । इससे हमारी दृष्टि की समग्रता बढ़ने लगती है। हमारे परिवेश एवं अन्तर्वेश के संबंधों एवं संबंधी कारकों को हम ऐसे रूप में जानने लगते हैं जो हमें विश्व को एक अनंत विकास चक्र के रूप में समझने में सहायक होता है। प्रतिमात्मक विकास हमें बौद्धिक दृष्टि की समृद्धि में भी सहायक होता है । मानस प्रत्यक्षीकरण से हमें अपने पाठ्य विषय अच्छी तरह समझ में आने लगते हैं । अमरीका के यूजन, ओरेगांव के एक स्कूल में खेल और कलाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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