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________________ लेश्या द्वारा व्यक्तित्व रूपान्तरण १६३ आज के मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति के अन्तर मन को, अवचेतन मन को और मस्तिष्क को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला तत्व है--रंग। रंग स्वभाव को बतलाने का सही मार्गदर्शक है। मनोविज्ञान ने र आधार पर व्यक्तित्व का विश्लेषण किया है। मुख्यतः व्यक्तित्व के दो प्रकार हैं: १. बहिर्मुखी, २. अन्तर्मुखी । रंग विशेषज्ञ एन्थोनी एल्डर का कहना है कि बहिर्मुखी जीवन लालिमा प्रधान होता है । अन्तर्मुखी जीवन में नीलाकाश जैसी उदात्त मनः स्थिति होती है। पीले रंग को कर्मठता, तत्परता और उत्तरदायित्व निर्बाह की माव चेतना का प्रतीक माना है। हरे रंग को बुद्धिमता और स्थिरता का प्रतिनिधि माना है। एल्डर कहते हैं कि स्वभावगत विशेषताओं को घटाने-बढ़ाने के लिये उन रंगों का उपयोग करना चाहिये, जिनमें अभीष्ट विशेषताओं का समावेश है। ___ एस० जी० जे० ओसले के अनुसार-रंग के सात पहलू बताए गए हैं रंग-१. शक्ति देता है, २. चेतनाशील होता है, ३. चिकित्सा करता है, ४. प्रकाशित करता है, ५. आपूर्ति करता है, ६. प्रेरणा देता है तथा ७. पूर्णता प्रदान करता है ।१९ हेल्थ रिसर्च पब्लिकेशन, कैलिफोर्निया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में यह सिद्ध किया है कि बहिर्मुखी लोग गर्म रंग पसन्द करते हैं । अन्तर्मुखी लोग ठण्डे रंग पसन्द करते हैं क्योंकि उनको बाहरी उत्तेजकों की आवश्यकता नहीं होती हैं। भावना प्रधान व्यक्ति रंग के प्रति मुक्त रूप से प्रतिक्रिया करते हैं। भावनाहीन व्यक्ति को प्रायः रंग से आघात पहँचता है। ये कठोर व्यक्तित्व वाले होते हैं और रंग के श्रेष्ठ व सूक्ष्म प्रकम्पनों से अप्रभावित रहते हैं। कौन-सा रंग हमारे व्यक्तित्व पर कैसा प्रभाव डालता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि रंग किस प्रकार का है ? भावों को समझने के लिये भगवान् महावीर ने लेश्या को शुभ-अशुभ, रुक्ष-स्निग्ध, ठण्डो-गर्म, प्रशस्तअप्रशस्त बतलाया है। आज के रंग विज्ञान में भी लेश्या का संवादी सत्र उपलब्ध होता है। रंग के दो प्रकार बतलाए हैं-चमकदार-धुंधले, अन्धकारमय-प्रकाशमय, गर्म-ठण्डे । लेश्या की प्रकृति व्यक्तित्व की व्याख्या करती है । कृष्ण, नील व कापोत वर्ण यदि प्रशस्त है, चमकदार है, तो वे शुभ माने जाएंगे और पीला, लाल और सफेद रंग यदि अप्रशस्त, धुंधले होंगे तो वे अशुभ माने जाएंगे । शुभता और अशुमता रंगों की चमक पर निर्भर है : नमस्कार मन्त्र के जप के साथ जिन रंगों की कल्पना की जाती है, उनसे भी यही तथ्य सामने आता है। जैसे-णमो अरिहन्ताणं श्वेत रंग, णमोसिद्धाणं-लाल, णमो आयरियाण-पीला, णमो उवज्झायाणं-हरा, णमो लोए सव्व साहणं-काला। लेश्या के सन्दर्भ में कृष्ण लेश्या को सर्वाधिक निकृष्ट माना गया है पर मुनि धर्म के साथ जुड़ा कृष्ण वर्ण प्रशस्त रंग का वाचक है। वैदिक साधना पद्धति में ब्रह्मा की उपासना लाल रंग से की जाती है क्योंकि लाल रंग निर्माता का रंग है। विष्ण की उपासना काले रंग से की जाती है क्योंकि काला रंग संरक्षण का माना गया है। महेश की श्वेत रंग से क्योंकि श्वेत रंग संहार करने वाला है। इसीलिये ध्यान करते समय रंग-श्वास में चमकदार रंगों का श्वास लेने और उनसे अपने आपको भावित करने को बात कही जाती है। लेश्या शुद्धि या लेश्या ध्यान जैन आगमों में लेश्या शुद्धि के लिये कई साधन बतलाए हैं। उनमें ध्यान विशेष उल्लेखनीय है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में भाव परिवर्तन के लिये, चेतना के जागरण के लिये रंगों का ध्यान महत्त्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि रंग का हमारे पूरे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति आधुनिक ध्यान पद्धतियों में एक है। उसमें युवाचार्य महाप्रज्ञ ने लेश्याध्यान को एक महत्वपूर्ण अंग माना है। इस ध्यान में साधक चैतन्य केन्द्रों पर चित्त को एकाग्र कर वहां निश्चित रंगों का ध्यान करता है। ध्यान की पृष्ठभूमि में वह कायोत्सर्ग, अन्तर्यात्रा, दीर्घश्वास, शरीर-प्रेक्षा, चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा आदि को भी अच्छी तरह से साध लेता है। चैतन्य केन्द्र हमारी चेतना और शक्ति की अभिव्यक्ति के स्रोत है। ये जब तक नहीं जागते, तब तक कृष्ण, नील, कपोत-तीन अप्रशस्त लेश्याएं काम करती रहती है। व्यक्तित्व बदलाव के लिये हमें इन लेश्याओं का शुद्धिकरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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