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________________ लेश्या द्वारा व्यक्तित्व रूपान्तरण मुमुक्षु शांता जैन जैन विश्व भारती, लाडन, ( राजस्थान ) मनुष्य जीवन का विश्लेषण हम जहां से भी शुरू करें, आगम सूक्त की अनुप्रेक्षा के साथ पहला प्रश्न उभरेगा"अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे" मनुष्य अनेक चित्त वाला है।' वह बदलता हुआ इन्द्रधनुषी व्यक्तित्व है.। विविध स्वभावों से घिरे मनुष्य को किस बिन्दु पर विश्लेषित किया जाए कि वह अच्छा है या दुरा ? देश, काल व परिस्थिति के साथ बदलता हुआ मनुष्य कभी ईर्ष्यालु, छिद्रान्वेषी, स्वार्थी, हिंसक, प्रवंचक, मिथ्यादृष्टि के रूप में सामने आता है, तो कभी विनम्र, गुणग्राही, निःस्वार्थी, अहिंसक, उदार, जितेन्द्रिय और तपस्वी के रूप में । आखिर इस वैविध्य का तत्व कहां है ? ऐसा कौन-सा प्रेरक बिन्दु है जो न चाहते हुए भी व्यक्ति द्वारा बुरे कार्य करवा देता है ? ऐसा कौन-सा आधार है जिसके बल पर एक संन्यासी बिना भौतिक सम्पदा के आनन्द के अक्षय स्रोत तक पहुँच जाता है और दूसरा भौतिक सम्पदा से घिरा होकर भी प्रतिक्षण अशान्त, बेचैन, कुण्ठित और दुःखाक्रान्त होकर जीता है ? ऐसे प्रश्नों का समाधान हम व्यवहार के स्तर पर नहीं पा सकते। जैन दर्शन ने चित्त के बदलते भूगोल को सम्यक जानने के लिये और मनुष्य के बाह्य और आन्तरिक चेतना के स्तर पर घटित होने वाले व्यवहार को समझने के लिये लेश्या का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। लेश्या का निरूपणः परिभाषा जैनों का लेश्या-निरूपण आजीवक, पूरण कश्यप, बुद्ध और महाभारत के व्यास के अचेलकत्व, जन्म, कर्म एवं अभिजातियों के विभिन्न दृष्टिकोणों पर आधारित विवरण से भिन्न हैं। जैनों की लेश्या का सम्बन्ध एक-एक व्यक्ति से है, समूह या जाति से नहीं। जैनों ने वर्ण के साथ अन्तभाव या आत्म-भाव का भी समन्वय किया है। इस सिद्धांत की हठयोग के छः चक्रों से समकक्षता है। वैचारिक धारणाओं और अमूर्त तत्त्वों को दृष्टिगोचर उपमानों के माध्यम से व्यक्त करने की परम्परा पर्याप्त प्राचीन है। वर्ण अथवा रंग की दृश्यता एवं प्रभाव ने भारतीय चिन्तकों को सदा मोहित किया है। इसीलिये उन्होंने ___ सारणी १. वर्णों द्वारा विभिन्न तत्वों का निरूपण गति (कृष्ण) धर्म (बुद्ध) कर्म प्रकृति प्रकृति अन्तर्भाव प्राणिवर्ण अभिजाति (पंतजलि) (श्वेता०) (जैन) (महाभारत) (पूरण कश्यप) कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण पीत पृथ्वी कृष्ण कृष्ण शुक्ल शुक्ल शुक्ल श्वेत, बैंगनी नील धूम्र जल कापोत शुक्ल-कृष्ण लोहित लाल तेजस तेजस नील नील नील वायु पद्य रक्त लोहित अशुक्ल-अकृष्ण कृष्ण नीलम शुक्ल शुक्ल शुक्ल आकाश हरित हरित धुम्र पूर्णशुक्ल कृष्ण शुक्ल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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