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________________ साध्वारत्न पुष्पवता आमनन्दन ग्रन्थ सामने सदा नत रहता है । गुरुणीजी महाराज की यह विशेषता है, वे अपने प्रण की पक्की हैं, वे जिस कार्य को करने का निर्णय लेती हैं उस कार्य को समापन्न करके ही विराम लेती है । न बीच में वे रुकती हैं, न अटकती हैं और न भटकती हैं । किन्तु कठिनाइयों की कठोर चट्टानों को चीरती हुई आगे बढ़ जाती हैं । एक कवि के शब्दों में कहूँ तो इस प्रकार कह सकती हूँ प्रण के पक्के, कर्मठ मानव, जिस पथ पर बढ़ जाते हैं । एक बार तो रौरव को भी, स्वर्ग बना दिखलाते हैं ॥ अरस्तु के शब्दों में "Life is movement" सक्रियता ही जीवन हैं । सक्रिय व्यक्ति ही साधना के सर्वोच्च शिखर को छू सकता है । किन्तु निष्क्रिय व्यक्ति साधना के पथ पर सफलता के साथ नहीं बढ़ पाता । सक्रियता संजीवनी शक्ति है, ऑक्सीजन है, जो जड़ता की कार्बन हटाकर जीवन को गतिमान बनाता है । महासती पुष्पवतीजी धुन की धनी, तप और त्याग की साकार मूर्ति हैं । राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने लिखा है- " त्याग एक सात्त्विक आनन्द है । त्याग के बिना मानव का विकास नहीं हो सकता । गुरुणीजी महाराज स्वयं तो साधना का सात्त्विक आनन्द अनुभव करती हैं । और जो व्यक्ति उनके सम्पर्क में आते हैं उन्हें भी अध्यात्म आनन्द का अमृत पान कराती हैं । साधना के सुरसरिता में वे स्वयं तो स्नान करती ही हैं और जो संपर्क में आते हैं उन्हें भी उत्प्रेरित करती हैं। किसी ने बहुत ही सुन्दर लिखा है— बातों से कुछ नहीं होता, काम करने वाले बढ़ते हैं । खड़े रहने से कुछ नहीं, आगे चलने वाले शिखर चढ़ते हैं । नाम का यह संक्रामक रोग, बहुतों को परेशान कर बैठा । विरले ही बचे जो अरमानों को सही ढाँचे में मढ़ते हैं । सद्गुरुणीजी विनम्रता की साक्षातुमूर्ति है । अहंकार उनके आस-पास में कहीं पर भी नहीं है | चाहे निर्धन हो, चाहे धनी हो, बाल हो, चाहे वृद्ध हो, चाहे सन्त हो, चाहे गृहस्थ हो । सभी के साथ उनका वही उदारभाव है । हृदय और वाणी के विलक्षण माधुर्य के कारण वे सभी का सम्मान करती हैं । चाहे भले ही कोई उम्र या दीक्षा में भी छोटा हो, वे उनको बहुत ही आदर के साथ पुकारती हैं । धर्म का मूल विनय हैं, वह नियम उनके जीवन में, व्यवहार में मूर्तिमान है । यही कारण है कि आपका अभिनन्दन अभिवन्दन समाज कर रहा है । ......... पुष्प - सूक्ति कलियां [D] अहिंसा जीवन का श्रेष्ठ संगीत है । जब वह संगीत जन-जन के मन में झंकृत होता है, तब मानव-मन आनन्द में झूमने लगता है । [] अहिंसा दया का अक्षय कोष है । दया के अभाव में मानवमानव न रहकर दानव हो जाता है । गुणों के आगार | २५ www.
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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