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________________ साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ हों चाहे बड़ी हों, उनकी सेवा आप अग्लान भाव से करती हैं । सेवा का जब भी अवसर आया तब आप पीछे नहीं हटती । आपके जीवन में अनेकों विशेषताएँ हैं । मेरी लेखनी उन विशेषताओं का वर्णन करने में कहाँ सक्षम हैं ? मैं अपनी अनन्त आस्था सद्गुरुणी के चरणों में समर्पित कर रही हूँ। मैं यह मंगल कामना करती हूँ कि सद् गुरुणीजी की छत्र-छाया सदा हमारे पर बनी रहें । हम आपकी छत्रछाया में निरन्तर आध्यात्मिक उत्कर्ष की साधना करती रहें। और आपका वरदहस्त सदा हमारे पर रहे जिससे हम ज्ञान, दर्शन, चारित्र में प्रगति कर आपके नाम को अधिक से अधिक रोशन करे। जिन शासन की प्रभावना कर सकें । मुझे आपके पारदर्शी व्यक्तित्व में जो गुण पहली बार दिखाई दिये वे ही गुण मैने सदा आपमें पाये हैं । उन्हीं विशेषताओं के कारण आप महान् वनी हैं । गुणों के आगार महासती किरणप्रभा शास्त्री गंगा में अवगाहन करने से, ज्यों तन पावन बन जाता है । सद् गुरुणीजी के दर्शन करने से त्यों मन भावन बन जाता है ॥ जीवन में सद्गुरु या सद्गुरुणी का मिलना बहुत ही कठिन है । सदगुरु या सद्गुरुणी एक विलक्षण आध्यात्मिक शक्ति है । जो मानव को नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा और इन्सान से भगवान बना देती है । सद्गुरुणी जीवन की एक श्रेष्ठ कलाकार हैं जो जीवन सुघड़ प्रतिमा का रूप देकर उसकी गौरव गरिमा में अभिवृद्धि करती हैं । रूपी अनघड़ पत्थर को हमारा परम सौभाग्य है कि हमें परम विदुषी साध्वी रत्न पुष्पवतीजी जैसी सद्गुरुणी प्राप्त हुई हैं। उनका जीवन गुणों का आगार है । जैसे गुलदस्ते में रंग-बिरंगे फूल अपनी मधुर सौरभ से जनमन को ताजगी प्रदान करते हैं, वैसे ही सद्गुरुणीजी के सद्गुणों की सुमन नई दिशा प्रदान करती हैं। हमारे जीवन में अभिनव क्रान्ति पैदा करती है । सद्गुरुणीजी महाराज में कृतित्व शक्ति अपूर्व है । वे जिस कार्य को अपना लक्ष्य बना लेती हैं। उस पर निर्भीक होकर बढ़ती हैं । बाधाएं और आपत्तियां आती हैं । पर पुरुषार्थियों के सामने सभी स्वयमेव निरस्त हो जाती है । और उनका पथ निर्विघ्न और निर्विवाद हो जाता है । एतदर्थ ही तो एक शायर ने लिखा है बहादुर कब किसी का, आसरा, अहसान लेता है । उसी को कर गुजरते हैं, जो दिल में थाम लेते हैं ॥ निरुत्साही व्यक्ति किसी भी कार्य को करने के लिये अवसर की प्रतीक्षा करता है । पर उत्साही और कर्मठ व्यक्ति हर परिस्थिति को अपने आप में ढालकर कार्य साध लेते हैं । अवसर उनके २४ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन www.jainelit
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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