SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 668
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नारन रावती अभिनन्दन ग्रन्थ । भारतीय वाङमय में ध्यान-योग : एक विश्लेषण -डा. साहवी प्रियदर्शना (स्वर्गीया साध्वीरत्न उज्ज्वलकुमारी जो म० की सुशिष्या) भारतीय संस्कृति विश्व की एक महान् संस्कृति है । यह संस्कृति विधाराओं में विभक्त है। एक वैदिक धारा है, दूसरी बौद्ध धारा है और तीसरी जैनधारा है। तीनों धाराओं में ध्यान की परम्परा अविरल रूप से प्रवाहित है। उन धाराओं के शास्त्र, ग्रन्थ एवं साहित्य का अवलोकन और चिन्तन के पश्चा इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ध्यान की विचारधारा अति प्राचीन है । वेद, उपनिषद्, त्रिपिटक, आगम तथा अन्य दर्शनों के वैचारिक सम्प्रदायों में परवर्ती चिन्तकों के दार्शनिक संप्रदायों में भी यह विचारधारा देखने को मिलती है। फिर भी जैन धर्म में वर्णित ध्यान-योग की विचारधारा को विस्तृत, व्यापक एवं स्पष्ट रूप से जन-जन के सामने प्रकाश में लाना अत्यावश्यक है। चूंकि जन मानस में एक ऐसी भ्रान्त धारणा फैली हुई है कि जैन धर्म में ध्यान का कोई विशेष विश्लेषण नहीं है और वर्तमान में ध्यान की परम्परा प्रायः लुप्त सी है इस विचारधारा को स्पष्ट करने और उसे अपने निज स्वरूप में लाने के उद्देश्य से ही "ध्यानयोग' पर एक चिन्तन प्रस्तुत कर रही हूँ। संसार में यत्र-तत्र-सर्वत्र सभी प्राणी नाना प्रकार के आधि (मन की बीमारी), व्याधि (शरीर की बीमारी) और उपाधि (भावना की बीमारी, कषायादि) से संत्रस्त हैं, वे दुःखों से मुक्त होना चाहते हैं, किन्तु मुक्त नहीं हो पा रहे हैं । इसका एकमात्र कारण है श्रद्धा का अभाव । जिन्हें वीतराग प्ररूपित तत्त्वों पर पूर्ण श्रद्धा है वे तो दुःखों से मुक्ति पा लेते हैं पर जिनमें श्रद्धा का अभाव है वे चारों गति में चक्कर लगाते रहते हैं । संसार चक्र से मुक्ति पाने के लिए सही पुरुषार्थ की आवश्यकता है। पुरुषार्थ चार हैंधर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । मोक्ष पुरुषार्थ ही सही पुरुषार्थ है। उसके लिये धर्म साधना जरूरी है। साधन और साध्य, कारण और कार्य का अविनाभाव सम्बन्ध है । जैसा साधन होगा वैसा साध्य प्राप्त होगा। साधन दो प्रकार के हैं-भौतिक और आध्यात्मिक । हमें तो आध्यात्मिक साधन को पाना है जिससे मोक्ष का शाश्वत सुख पाया जा सके। रत्नत्रय (सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र अथवा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र) रूप 'भारतीय-वाङमय में ध्यानयोग : एक विश्लेषण' : डॉ० साध्वी प्रियदर्शना ! ३२६
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy