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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ || रानी ने पहले तो अपने गर्भ को गुप्त रखा, किन्तु अन्त में वह मातृत्व की वेदना से अभिभूत हो | गई। यथासमय रानी ने पुत्र प्रसव किया और वह अपने नवजात पुत्र को अपने नाम की अंगूठी देकर एक सुन्दर कम्बल में लपेटकर नीरव निशीथ में श्मशान में छोड़ आई । श्मशान-पालक ने उस पुत्र का पालनपोषण किया और शरीर में खाज हो जाने के कारण उस बालक का नाम 'कर्कण्डू' रखा। बड़ा होने पर सौभाग्यवश कर्कण्डू ने कंचनपुर का राज्य प्राप्त किया। एक बार कर्कण्ड और चम्पा के राजा दधिवाहन (अर्थात्, पिता-पुत्र) में किसी बात से मनोमालिन्य हो गया, फलतः दोनों आपस में जझ पड़े । आर्यिका पद्मावती को जब यह समाचार मिला कि पिता-पुत्र में अ-जानकारी के कारण युद्ध हो रहा है, तब वह यूद्ध-स्थल पर पहुँची और दोनों का परस्पर परिचय करा दिया। दधिवाहन ने अनावश्यक रक्तपात रुक जाने के कारण साध्वी पद्मावती को धन्यवाद दिया और स्वयं पत्नी का अनुकरण कर जैन श्रमण हो गया। रानी रोहिणी इसी चम्पानगरी में राजा मघवा और रानी श्रीमती से श्रीपाल, गुणपाल, अवनिपाल, वसुपाल, श्रीधर, गुणधर, यशोधर और रणसिंह-ये आठ पुत्र और रोहिणी नाम की एक सुन्दर कन्या हुई। रोहिणी ; पिछले जन्मों के सम्बन्ध में कहा गया है कि यह अत्यन्त दुर्गन्ध वाली अशुभ कन्या थी तथा पाप के प्रभाव से इसे अनेक कष्ट उठाने पड़े थे। इसने 'रोहिणी व्रत' किया था, उसी के प्रभाव से इसे सुन्दर रूप, सुगंध और सम्भ्रान्त कुल प्राप्त हुआ। यह रोहिणी राजा अशोक की रानी बनी । कुछ दिनों के बाद राजा अशोक ने संसार से विरक्त हो स्वामी वासुपूज्य के समवशरण (आम सभा) में जिन-दीक्षा ग्राहण की और रोहिणी ने कमलश्री आर्यिका से व्रत लिया। अन्त में तपस्या करती हुई रोहिणी सोलहवें स्वर्ग में देवता में हो गई। कन्या नागश्री प्राचीन काल में चम्पापुरी में चन्द्रवाहन नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम था लक्षमति । राजा के पुरोहित का नाम नागशर्मा था। नागशर्मा स्वभावतः मिथ्यादृष्टि था, इसलिए उसकी कन्या नागश्री उससे उदास रहती थी। एक बार नागश्री ने आचार्य सूर्यमित्र से पंचाणवत ग्रहण कर लिये । परन्तु, पिता नागशर्मा ने उसी आचार्य को वह व्रत लौटा देने की आज्ञा दी। जब नागशर्मा अपनी पुत्री नागश्री को साथ लेकर मुनि सूर्यमित्र के पास जा रहा था, तब मार्ग झूठ, चोरी, व्यभिचार और अनुचित संचय करने वालों को दण्ड पाते देखकर कन्या ने पिता से अनुरोध किया कि पिताजी, जब पाप करने वालों को दण्ड मिलता है, तब मुझे फिर क्यों इस व्रत को छोडने का आदेश देते हैं ? नागशर्मा नागश्री के इस प्रश्न से अतिशय प्रभावित हुआ और उसने पुत्री को व्रत रखने का आदेश तो दिया ही, स्वयं भी व्रती हो गया। | इस प्रकार, आध्यात्मिक और आधिभौतिक उत्कर्ष से समृद्ध चम्पानगरी प्राचीन जैन नारी-रत्नों की गौरव-रेखाओं से आवेष्टित उस काल की धर्म प्रभावना से प्रबुद्ध नगरों के स्वर्णिम इतिहास की परिचायिका है। यहाँ बिहार के उन जैन नारी-रत्नों के भी पुण्य नाम स्मरणीय हैं। जिन्होंने तीर्थंकरों को जन्म देकर अपना मातृत्व सफल किया। प्रथम तो चम्पापुरी के ही बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य हैं, जिनकी माता प्राचीन जैन कथाओं में बिहार की जैन नारियाँ : डॉ० श्रीरंजन रिदेव | २६५
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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