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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ 0 O e000309 "1 "लक्ष्मी-नारायण" में पहिले "लक्ष्मी" को स्थान मिला, "सीताराम " में " राधेश्याम" में, नारी को ही मान मिला । 'शंकर-पार्वती" में नारी पीछे है योग के कारण ही - फिर भी गंगा | शीश चढ़ी, जब योगी का वरदान मिला । पावनता हो तो नारी ऊँची है बाघम्बर-धारी सेमन कहता है नारी को पूजो, बचकर रहो अनारी से । मृग तृष्णा में मत दौड़ो, माना नारी मृग-नैनी है, तन से मस्त मयूरी है, चाहे मन से पिक बैनी है । पुरुष प्रकृति से विमुख रहा तो कृति आकृति कुछ भी न बनीनहीं है, नारी स्वर्ग नसैनी है । मत पूछो, पूछो संसारी से - बचकर रहो अनारी से | वारि नरक की खान किसी ब्रह्मचारी से मन कहता है नारी को पूजो, यदि मन नहीं अनारी हो तो नारी के साथ जरूर रहो, ताकि पूर्ति पूरक दोनों से मिल करके भरपूर रहो । बहने वाले पार उतर गये, तैरने वाले डूब गयेसुर-सरिता में बहते जाओ, अन्ध कूप से दूर रहो । काम से 'निर्भय' रह सकते हो, बचकर काम-कटारी सेमन कहता है नारी को पूजो, बचकर रहो अनारी से । C फ्र १६२ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान 0000 www.jainelibra
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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