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________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ 00:00 "पन्ना दाई" पुत्र की पीड़ा का हर पन्ना परखा देगी, माँ की ममता सीना चीरके चाहे जहाँ बता देगी। पूत-कपूत भले हो जाये, मात कुमात नहीं होतीयदि विश्वास न हो तो 'दिल्ली की इन्द्रानी' समझा देगी। नारी ने कितने कष्ट सहे हैं पूछो किसी महतारी सेमन कहता है नारी को पूजो, वचकर रहो अनारी से। इष्ट की प्राप्ति-तपस्या पूछो पार्वती-कल्यानो से, प्रियतम कैसे मिलते हैं पूछो मीरा प्रेम दिवानी से । जन्म-मरण का कोई भी दर्द हो नारी बतला सकती हैप्रिय-बिछ्डन कैसा होता है, पूछो राधा-रानी से । पति-सामीप्य कठिन है कितना, पूछो जनक दुलारी सेमन कहता है नारी को पूजो, बचकर रहो अनारी से । कारक है तो क्या कर सकती है पूछो काम की कारा से, तारक है तो पूछो किसी भी अहल्या, द्रोपदी, तारा से । धारक है तो कितनी क्षमता है, धरती के धीरज से पूछोउद्धारक है तो क्या है, यह पूछो "गंगा धारा" से। संहारक है तो क्या है ? पूछो भोले भण्डारी सेमन कहता है नारी को पूजो, बचकर रहो अनारी से। 000000000000000000000 संसारी माया-सरमाया को सब माया फैलाते हैं। संन्यासी भी भक्ति भजन से माया मुक्त बनाते हैं। मायावी की माया को माया से समझ न पाते हैंमाया माया की पाकिट काटे, उसको बुरा बताते हैं ? सारी-दुनिया काम चलाती है, जब पाकिटमारी सेमन कहता है नारी को पूजो, बचकर रहो अनारी से। 80000000000000 संग कुसंग रहे तो सारे नर्क स्वयं नर में भर दे, संग अगर संत्सग बने तो सब भव-भय पीडा हर दे। सावधान रहना माया से ओ मेरे मन संन्यासी'पर्स' ने इतना कष्ट दिया, 'स्पर्श' न जाने क्या कर दे। बीमारों की सेवा करिये, दूर रहो बीमारी सेमन कहता है नारी को पूजो, बचकर रहो अनारी से। 0000000 मन कहता है नारी को पूजो.... : निर्भय हाथरसी | २६६ WWW 2. W
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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