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________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ HARमाससम्म महावीर ने नन्दीवर्धन की बात मान ली। दो वर्ष बाद यह साम्य करने के अभिवचन के परस्पर आदान-प्रदान की तुला पर तुल गया, निश्चय हो गया। समय सर्प की तरह सरका। दो वर्ष अतोत हो गये । और... "महावीर जिन दीक्षा लेकर अरण्य में खो गये, स्वयं को पाने के लिए। अभेद का, स्त्री-पुरुष की समानता का बीज उनकी हृदय वसुधा में विद्यमान था । एक दिन उन्होंने नारी के सम्पूर्ण स्वातंत्र्य को मूर्त रूप करने के लिए १३ भीष्म प्रतिज्ञाओं का महाभिग्रह व्रत धारण कर लिया । ..."आर्या चन्दनबाला पर हो रहे सितम पर वे करुणाभिभूत हुए। उस युग की नारी दासता की प्रतीक चन्दना उन्हें मिली । भगवान महावीर की प्रतिज्ञायें पूरी हुई। चन्दना के हाथों आहार ग्रहण किया। देवों ने रत्न वर्षा की। कौशाम्बी और चम्पा नगरी के सभी बिछुड़े परिजन आए । चन्दना को अपनत्व जताया, परन्तु चन्दना फिर से महलों की ओर नहीं मुड़ी। वह अपने उद्धारकर्ता भ० महावीर के संघ में दीक्षित हो गई। भगवान महावीर का दीक्षा पूर्व का संकल्प मंडित हुआ। उन्होंने आध्यात्मिक दृष्टि से स्त्रीपुरुष के भेद की एक दीवार को भू-लुंठित किया और घोषणा की कि-श्रावक और श्राविकाओं समान रूप से अध्यात्म साधना करने के योग्य पात्र हैं। नारी के प्रति हीन भावना मिट जाए, इस दृष्टि से संघ रचना में साध्वियों को, श्राविकाओं को भी मुक्ति का पथिक कहा । संन्निधि में रहे हए भिक्षुओं से भी कहामात्र भिक्ष ही साध्वाचार के उच्च शिखर का ही यात्री नहीं है, नारी भी उसी यात्रा की सहचारिणी है। अब इन्हें साध्वी, श्रमणी, साधिका, आर्यिका या भिक्षुणी कहा जा सकेगा। महावीर का उपर्युक्त नारी मुक्ति का जयघोष आर्या महासती चन्दनबाला के कुशल नेतत्र में वर्धपान हआ। आगम इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि छत्तीस हजार नारियों ने महावीर के वीतराग धर्म में दीक्षा ग्रहण की । नारी पर हो रहे अत्याचारों से मुक्त होकर नारी ने सुख की सांस ली। भगवान महावीर द्वारा प्रतिष्ठित एवं आदर प्राप्त नारी आज तक महावीर के प्रति समर्पित है । अढाई हजार वर्ष से भी अधिक हो गये। महाकाल के अंधेरे को चीरती हई वह महासती चन पथ पर बढती चली आ रही है। नारी जिस संकल्प को एक बार मन में उगा लेती है --उस पर वह अनिट-अक्षुण्ण रहती है। अतीत नारी की महान साधना, दृढ़ता और कठोर साधना का साक्षी है। भगवान ऋषभदेव से लेकर तीर्थंकर नेमिनाथ तक के उदाहरण हमारे सामने विद्यमान हैं। रथनेमि को राजुल ने संयम का दीपदान थमाया । काल की काली परत चढ़ी तो भगवान महावीर के समय तक आतेआते समय का धुंधलका छाया । ब्राह्मणों, पंडों एवं पुरोहितों ने फिर उसे ग्रसा। समूचे मानव समाज में उसने नारी को लेकर अंधेरा उंडेला । फलतः महावीर ने पुनः उसे पुनअत्मि-जागरण के प्रकाश तले लाकर प्रतिबोधित किया कि नारी तुझमें जिनांकुर विद्यमान है। तूं पुरुष की आद्य शक्ति है । तूं इसका खिलौना नहीं है। पुरुष को तूने घड़ा है, तू उसके द्वारा नहीं घड़ो गयी है। तूं पुरुष की साधना उसकी भक्ति की राह का प्रकाशदान है। तूं पुरुष को अंधेरे से धर्म के प्रकाश में लाने वाली महाशक्ति है । वासना के अंधेरे में कुत्सित मनोवृत्ति के लोगों ने तुझे धकेला है। वासना की ओर मुखातिब होने से धर्म प्रभास्वर नहीं होगा। धर्म की प्रभावना का सम्पूर्ण दायित्व तुझ पर है। तूं क्यों ऐसा मानती है कि मैं अबला हूँ । पुरुष के बीज को तूने ही खींवा है एवं जिन बीज को हमेशा तूंने ही उगाया है। .......... . :::::::::::::::::::: २८८ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान ::::::: www.jainelibrasy..
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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