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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ HiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiH जैन शा स न में नारी का महत्व -श्री रतन मुनि जी (श्रमण संघीय सलाहकार) HHHHHHHHHHIमममममम्म म्मम्ममा AMRAPHIR तीर्थंकर महावीर का दर्शन अभेद का दर्शन है । उसमें पुरुष एवं स्त्री दोनों में जिनत्व के दर्शन किये जा सकते हैं । स्त्री और पुरुष तो शरीर हैं, आत्मा भिन्न है। आत्म-दर्शन में शरीर बाधक नहीं है। महावीर का दर्शन आत्म-परक है। भगवान महावीर, आत्म-साधन के बारह वर्षों में मात्र-कल्याण के मार्ग पर ही केन्द्रित रहे । समृद्धि में से जन्मे हुए उनके वैराग्य के मूल में स्त्री-पुरुष का अभेद मूल था। भेद में महावीर के वैराग्य का अंकुरण नहीं था। जब अभेद का बिरवा फूटा तभी उन्होंने अपने पितृतुल्य भाई नन्दीवर्धन से कहा कि _मैं परिव्राजक होना चाहता हैं। समाज में व्याप्त दास प्रथा एवं स्त्री भेद की दीवारों को तोड़ना, उन्मुलन करना चाहता हूँ । नारी भोग्या नहीं है, वह 'जिन' बीज को उगाने वाली वसुंधरा है। ब्राह्मणों, पुरोहितों एवं पण्डितों ने नारी को दासी बना लेने का संस्कार देकर समाज में विषमता पैदा की है। इस दीवार को तोडे विना समाज एवं धर्म का उत्थान संभव नहीं है। मैं प्रव्रज्या की आपसे अनुज्ञा चाहता हूँ, ताकि पहले मैं अपना निजत्व पा सकू, पूर्णत्व का शिखारोहण कर सकू । फिर आध्यात्मिक क्षेत्र में पुरुष के समकक्ष मातृ शक्ति को खड़ाकर यह बताया जा सके कि नारी पुरुष से किसी भी दृष्टि से हीन नहीं है। तीर्थंकर ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी के त्याग-वैराग्य के अतीत को पुनः जीवित किया जा सके तब कहीं पुरुष की कुत्सित मानसिकता को नारी शक्ति का सत्य समझ में आयेगा और वह व्यक्ति, समाज एवं धर्म के क्षेत्र में उसकी अग्रता को स्वीकार कर सकेगा। नन्दीवर्धन का भ्रातृत्व पलकों की कोर में निथर आया । उन्होंने अपने ढंग से वर्धमान को मातपित वियोग की स्थूल पीड़ा का उदाहरण देकर रोका और कहा--वियोग की दुःसह पीड़ा पर समय का वितान तन जाने दो, फिर अपने पूर्णत्व की बात सोच लेना। .... ................ जैन शासन में नारी का महत्व : श्री रतनमुनि जी | २८७ ...... www.II
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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