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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ) युद्ध में जीत हुई। संजय तथा विपुला का आख्यान यह स्पष्ट करता है कि पुत्र-प्रेम की अपेक्षा राष्ट्र-प्रेम तथा देश की रक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। पन्ना धाय के नाम से कौन अपरिचित है, जिसने हँसते-हँसते देश के नाम पर अपने पुत्र का बलिदान करके राजवंश की रक्षा की। हस्तिनापुर में आयोजित सन्धि सभा में कृष्ण द्वारा प्रस्तावित पाण्डवों के सन्धि प्रस्ताव का प्रत्याख्यान करके दुर्योधन चला गया था। सभी सभागण विशेषतः कृष्ण इससे अत्यन्त क्षुब्ध हो उठे थे। इस पर धृतराष्ट्र ने गान्धारी को सभा में बुलवाया। गान्धारी ने दुर्योधन को युद्ध से विरत करने का भरसक प्रयत्न किया था। गान्धारी ने दुर्योधन से कहा था कि युद्ध करने में कल्याण नहीं है। उससे धर्म और अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती, फिर सुख तो मिल ही कैसे सकता है ? युद्ध में सदा विजय ही हो, यह भी निश्चित नहीं है । अतः युद्ध में मन न लगाओ। न युद्धे तात ! कल्याणं, न धर्मार्थो कुतः सुखम् । न चापि विजयो नित्यं मा मुद्दे चेत आधिथाः।। जिस राष्ट्र के शासक विनयशील और संयमी हों वह राष्ट्र अपनी अस्तित्व रक्षा में सफल होता है। माता गान्धारी ने कहा था कि मनमाना व्यवहार करने वाले अजितेन्द्रिय शासक दीर्घकाल तक राज्य शक्ति का उपभोग नहीं कर सकते । जिस प्रकार उद्दण्ड घोड़े वश में न होने से मूर्ख सारथी को मार्ग में ही मार डालते हैं उसी प्रकार अजितेन्द्रिय शासक का इन्द्रिय वर्ग भी उसके विनाश का कारण बन जाता है। गान्धारी ने दुर्योधन को उचित मार्ग दिखलाया था। किन्तु दुर्भाग्यवश दुर्योधन ने उसका अनुगमन नहीं किया। पुनश्च, दुर्योधन जब युद्ध के लिए तैयार हुआ और युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए आशीर्वाद लेने अपनी माता के पास आया, तब गान्धारी ने आशीर्वाद दिया था "यतो धर्मस्ततो जयः।" पुत्र की रक्षा और धर्म की, राष्ट्र की रक्षा में जब संघर्ष होता है, तब सुसंस्कारी माता धर्म (नीति) का ही पक्ष लेती है । दुराचारी पुत्र की रक्षा एक व्यामोह है । कितना उच्चकोटि का दायित्व है, गान्धारी का? माता कुन्ती ने समय-समय पर पाण्डवों का मार्गदर्शन किया था। उनकी प्रेरणा से पाण्डव अपने पैतृक राज्य का पुनरुद्धार करने में समर्थ हुए थे। छत्रपति शिवाजी के पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा आदि की व्यवस्था जीजाबाई ने इस प्रकार की कि वे आजीवन अन्याय के विरुद्ध लड़ते रहे, और अपने खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त कर सके। संस्कृत में धृति, मेधा, कीर्ति, वाणी, भक्ति, मुक्ति और बुद्धि सभी शब्द स्त्रीलिंगी हैं । बोध शब्द पुल्लिग है, परन्तु यह बुद्धि का परिणाम है। बुद्धि माता है और बोध उसका बालक । दायित्व बोध, आत्म बोध की प्रेरक शक्ति बुद्धि है । आध्यात्मिक उन्नयन मे बुद्धि सहायक है । बुद्धि मातृ शक्ति का ही तो एक रूप है। भारतीय परम्परा में मातृ शक्ति का स्तवन किया गया है । प्रत्येक समाज और राष्ट्र के विकास २६२ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान www.ua RAA
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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