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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ HHHHHHHHHHHHHHHHHETRITERALLLLLIIIIIIIIIIII समान कोई बन्धु नहीं, कोई गति नहीं, और धर्मसंग्रह (आध्यात्मिक उत्थान) में उसके समान कोई सहायक नहीं है। नास्ति भार्यासमो बन्धुर्नास्ति भार्या समागतिः । नास्ति भार्यासमो लोके सहायो धर्मसंग्रहे ॥ पत्नी के समान कोई वैद्य नहीं है । वह सभी दुःखों को दूर करने की औषधि है न च भार्यासमं किंचित् विद्यते भिषजो मतम् । औषधं सवदुःखेषु सत्यमेद् ब्रवीमि ते ॥ गृहिणी के बिना घर सूना होता है। स्त्री घर को स्वर्ग तुल्य बना सकती है । पद्म पुराण में कहा गया है, कि यदि पत्नी अनुकूल है तो स्वर्ग प्राप्ति से क्या लाभ है और यदि वह प्रतिकूल अर्थात् स्वेच्छाचारिणी है तो नरक खोजने की आवश्यकता ही क्या है ? छान्दोग्य उपनिषद् में उस राज्य को उत्तम राज्य कहा गया है जहाँ स्वेच्छाचारिणी स्त्रियाँ नहीं होती। पत्नी-पति के पुरुषार्थ साधन में सहायक होती है । यशोधरा को परिताप इस बात का नहीं था कि सिद्धार्थ ने गृहत्याग क्यों किया। उसे परिताप इस बात का था कि सिद्धार्थ ने अपनी जीवन-संगिनी के कर्तव्य निर्वाह के आगे प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। कविवर मैथिलीशरणगुप्त ने यशोधरा के इस भाव की अभिव्यक्ति इस प्रकार की है सखि ! वे मुझसे कहकर जाते, कहते तो क्या वे मुझको अपनी पथ-बाधा ही पाते ? दधीचि-पत्नी प्राथितेयी को इस बात का दुःख था कि देवताओं ने उसकी अनुपस्थिति में दधीचि मुनि से उनकी अस्थियाँ माँग लीं। कदाचित् देवताओं को यह आशंका थी कि राष्ट्र रक्षा के कार्य में प्रार्थितेयी सहायक सिद्ध न हो किन्तु प्राथितेयी को इस बात का सन्तोष था कि उसके पति ने राष्ट्र रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग किया। पुरुष और प्रकृति, शिव और शक्ति का युगल सृष्टि का चालक है। पुरुष को प्रकृति से और शिव को शक्ति से अलग कर दीजिए तो पुरुष और शिव दोनों का महत्त्व कम हो जायेगा। आद्य शंकराचार्य ने देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र में कहा है कि महादेव जी चिता की भस्म का लेपन करते हैं, वे दिगम्बर, जटाधारी, कंठ में सर्प को धारण करने वाले पशुपति हैं। वे मुण्डमाला धारण करने वाले हैं। ऐसे शिव को जगत के ईश की पदवी इस कारण मिली है कि उन्होंने भवानी (शक्ति) के साथ पाणिग्रहण किया है। नारी का महिमामय रूप 'जननी' है, वह नित्य मंगलमयी, नित्य अन्नपूर्णा है। वह सतत दानमयी है। उसकी करुणा का कोष कभी रिक्त नहीं होता। प्रत्येक गृह समाज और राष्ट्र का भविष्य सुमाताओं पर निर्भर करता है। सौवीरराज पर सिन्धुराज ने आक्रमण कर दिया था । सौवीर देश का शासक संजय अनुत्साही और मृदु प्रकृति होने के कारण सिन्धुराज से पराजित हो उसे आत्म समर्पण करके नितान्त दीन मन हो अपनी राजधानी लौट र उसकी माता विपूला ने उसे पुनः उत्साहित कर युद्ध क्षेत्र में भेजा था, और संजय की HTHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHH ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रोत्थान की धुरी-नारी : डॉ० श्रीमती निर्मला एम० उपाध्याय | २६१
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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