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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ राजगृही निवासी सुलसा ! उसकी प्रभु महावीर पर इतनी अटूट श्रद्धा थी कि वीतराग-वाणी के सिवाय अन्य किसी की उपासना के लिए वह तैयार नहीं थी। अनेक ऋद्धि का धारी अम्बड संन्यासी अनेक प्रकार के रूप बनाकर सुलसा की श्रद्धा की परीक्षा करता है, परन्तु वह बीतराग-वाणी के प्रति अटूट श्रद्धा भाब से एक इंच भी नहीं डिगी । अम्बड ने महावीर का भी रूप बनाकर आकर्षित करना चाहा किन्तु फिर भी वह असफल हुआ। और घटना यहाँ ऐसी घट गई कि अम्बड स्वयं सुलसा की दृढ़ श्रद्धा के सामने झुक गया। उपसंहार ___ इस प्रकार हम देखें कि नारी जाति जिसे हम दीन-हीन, अवला और असहाय मानते/समझते हैं वह कितनी उच्चकोटि की साधिका भी हो सकती है। वस्तुतः हमने आज तक उसे हीनता की दृष्टि से ही देखा किन्तु अब हम उसे सम्मान की दृष्टि से भी देखें। नारी ने सांसारिक जीवन एवं आध्यात्मिक जीवन दोनों में ही बहुत कुछ सुनहरे आदर्श स्थापित किये हैं। आज पूनः समय आया है कि नारी-समाज अपने शुभ संस्कारों के माध्यम से मानव-समाज में श्रेष्ठ पीढ़ी का निर्माण करे। उसके बिना नारी समाज अपनी ही नारी जाति के द्वारा जो कीर्तिमान बनाये गये हैं उसकी रक्षा नहीं कर सकती। जब तक नारी जाति अपनी शक्ति से परिचित नहीं होती, उसे जागृत नहीं करती तब तक कुछ भी नहीं हो सकता । अतः अपनी शक्ति जागृत कर नारी नारी-समुदाय का उदात्त रूप बनाये रखे। RA : पुष्प-सूक्ति-सौरभ0 वात्सल्य का प्रभाव केवल मनुष्यों एवं समझदार जानवरों पर ही नहीं, पेड़ पौधों और वनस्पति जगत पर भी अचूक रूप से पड़ता है। परमात्मा की शक्ति जितनी विराट व व्यापक है, उतनी ही व्यापक व विराट मानवीय शक्ति है। मानव-जीवन को महत्ता के पद पर प्रतिष्ठित करने वाले गुणों में सेवा एक महत्वपूर्ण गुण है। जिसने स्वयं अपने आपको चिरकाल तक आदर्श परिस्थितियों में रखकर ज्ञान, अनुभव, तप के आधार पर विशिष्ट बना लिया हो, वही वैसा उपदेश देने का अधिकारी है। -------------पुष्प-सूक्ति-सौरभ २५४| छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान HEEVAamil Unar www.jaine ::
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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