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________________ H A LLULL.............. साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ । iiiiiiHPHHHHHHHHHम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म चिन्तनशीला रूप में पुरुष के समान ही नारी में भी चिन्तन शक्ति रही हुई है। कभी-कभी, कहीं-कहीं नारी का चिन्तन पुरुष-चिन्तन से भी श्रेष्ठ एवं आगे बढ़ने वाला भी मिलता है। सांसारिकता को लेकर चिन्तन तो प्रायः सभी में होता है किन्तु आत्मा और दर्शन की गूढ़ बातों का चिन्तन/प्रखर चिन्तन भी नारी कर सकती है। इसके भी अनेक उदाहरण हम देख सकते हैं शोध करने पर। जैनागम में जयन्ति-श्राविका के द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उल्लेख मिलता है। वह कुशाग्र बुद्धि की धनी एवं साहसिक भी थी। देव-मनुज, अनेक ज्ञान सम्पन्न, लब्धिधारी मुनियों-साध्वियों के बीच समवशरण में विराजमान प्रभु महावीर से उसने सहज भाव से तत्त्व-शोधन की दृष्टि से अनेकों प्रश्न पूछे थे। __ जयन्ति द्वारा पूछे गये प्रश्न बड़े ही दार्शनिक एवं मुमुक्षुओं के लिए हितकारी हैं। दृढ़ संकल्पी और तपाराधना में अनुरक्त पुरुष के समान नारी में भी संकल्प की दृढ़ता बेजोड़ दिखाई देती है। नारी जब किसी कार्य का दृढ़ संकल्प कर लेती है तब वह उसे पूर्ण करके ही रुकती है। 'श्रीमद् अन्तकृद्दशांग-सूत्र' में साध्वि समुदाय के द्वारा संकल्पित विविध प्रकार की तप-आराधना का उल्लेख है । जिन्हें देखकर लगता है कि वे अपने संकल्प को कितनी दृढ़ता से पूर्ण करती हैं। ऐसे-ऐसे दीर्घकाल तक की तप-आराधना को वे स्वीकार करती हैं कि हमें बड़ा आश्चर्य होता है। नारी अपने मन पर कितना अधिक संयम रख सकती है इस बात को हम इन उदाहरणों के माध्यम से जान सकते हैं। मेरु-सी अकंप श्रद्धावन्त नारी समुदाय हमेशा से श्रद्धा/विश्वास प्रधान रहा है। उसके हृदय में श्रद्धा की अखण्ड ज्योति सदा ही प्रज्वलित रहती है। श्रद्धा-अन्धश्रद्धा और सद्धर्मश्रद्धारूप दो प्रकार की होती है । दोनों में ही श्रद्धा-भाव की प्रधानता रहती है। किन्तु अन्धश्रद्धा भटकाने वाली होती है भवों-भवों तक; जबकि सद्धर्म के प्रति जो श्रद्धा होती है वह भव-बन्धन से मुक्त करने वाली होती है । वीतराग-वाणी पर श्रद्धा रखने वाली अनेक नारियाँ हुई हैं जैन धर्म में । फिर भी जैन इतिहास में एक ऐसी घटना बनी है कि जिसे देखकर हमारा मन भी श्रद्धा भाव से भर जाता है। नारी का उदात्त रूप-एक दृष्टि : मुनि प्रकाशचन्द्र 'निर्भय' | २५३ www.
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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