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________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ HHHHHHHHHHHHHHE ALL .. ULAR + शीलधर्म की रक्षा के लिए अंग देश की चंपा नगरी के महाराजा दधिवाहन की धर्मपत्नी राजरानी धारिणी (चन्दनबाला की माता) ने अपनी जिह्वा खींचकर प्राणों का उत्सर्ग कर शीलधर्म की रक्षा की। शीलधर्म की रक्षा के हेतु अनेकानेक नारियों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है। परन्तु इन सबसे भिन्न एक ऐसी घटना भी इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में अंकित है कि जिससे हमारा मस्तक गौरव से एकदम ऊँचा उठ जाता है । वह घटना है राजमति की। २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) की होने वाली पत्नी राजमति । नेमिनाथ अपने विवाह के अवसर पर होने वाली पशुवध की घटना से सिहर कर, करुणाभाव से भर तोरण द्वार से लौट गये । सोलह शृंगार से सुसज्जित, पति-मुख देखने को बैचेन मन वाली राजमति ने जब यह देखा कि उसके होने वाले पति नेमिनाथ तोरण द्वार से लौट गये तब उसके हृदय को गहरा धक्का लगा और वह मूच्छित हो गयी। होश में आने पर जब उसे ज्ञात हुआ कि नेमिनाथ संयमी बनने वाले हैं तो वह भी पति-पथ की अनुगामिनी बनने को आतुर हो उठी। ऐसे में उसके माता-पिता/महाराजा उग्रसेन तथा महारानी धारिणी एवं पूरे परिवार ने उसे बहुत समझाया कि दूसरा वर ढूंढकर विवाह कर देंगे। परन्तु वह अपने संकल्प पर अडिग रही। प्राप्त सम्पूर्ण राज्य वैभव और परिवार की मोह-ममता छोड़कर वह भी संयमी बन गयी। प्राग् ऐतिहासिक काल की यह पति-पथानुगामी अद्भुत/विस्मयकारी घटना हमें झिंझोड़कर रख देती है कि क्या नारी इतनी उत्कृष्ट त्याग की दिव्य मूर्ति भी हो सकती है ? पर है यह घटना सत्य ! और इस घटना पर हम सभी को निश्चित रूप से गौरव की अनुभूति होती है। कुशल शासिका के रूप में Annaiii - 1mIMIMARANAM ..........i ...... t . .. . HIHIRHI .. . . A NCHHI .. नारी हृदय को सद्यः विकसित पुष्प पंखुड़ियों की उपमा दी जाती है ; क्योंकि वह तन-मन दोनों से ही सुकुमार है। किन्तु कर्त्तव्य के नाते समय आने पर वह उस सुकुमारता को त्यागकर कठोरता भी धारण कर लेती है। फिर भी है तो वह सुकुमार ही। संसार में तो अनेक नारियों ने शासन-पद पर बैठकर शासन किया है। वहाँ उनमें कठोरता के साथ कभी-कभी क्रूरता भी प्रवेश कर जाती है कर गयी है। परन्तु धर्म-शासिका के रूप में उसका रूप कुछ और ही दृष्टिगत होता है। वहाँ कभी कठोरता धारण करनी भी पड़े तो वह कठोर भी हो जाती है किन्तु वहाँ क्रूरता कभी पास तक नहीं फटकती है। .... २५० | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान .................. Asthmain " मा www.jainelibre
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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