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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ) HHHHHHHHREE HRAILERHHHHHHH माता मरुदेवी का एक मात्र उदाहरण/प्रसंग ही हमारे अशुभ दृष्टिकोण (नारी नरक का द्वार है) को खण्डित कर देता है। पुरुष के पुरुषत्व का अहं, उसकी श्रेष्ठता तथा उसका थोथा गौरव यहाँ आकर चुप हो जाता है । मौन हो जाता है। । प्राचीनकाल से या यह कह दें कि नारी प्रारम्भ से ही अपने अस्तित्व का बोध कराती आयी है हमें, तो कोई अत्युक्ति या अतिशयोक्ति पूर्ण बात नहीं होगी। नारी सृष्टि का सुंदरतम उपहार माना गया है। नारी को सृष्टि का आधार कहा गया है। 'असारे खलु संसारे, सारं सारंगलोचना ।' -योग वासिष्ठ असार संसार में नारी को सार रूप माना गया है। मनुस्मृति में कहा गया है'स्त्रियः श्रियश्च गेहेषु; न विशेषोस्ति कश्चन ।' --मनुस्मृति ९/१६ 'सृजन-आदि से विश्व नारी की गोद में क्रीड़ा करता आया है । उसकी मुस्कान में महानिर्माण के स्वप्न है और भ्र -भंग में प्रलय की विनाशकारी घटाएँ ! -नजिन नारी जीवन की महिमा शब्दातीत है । क्योंकि नारी के बिना संसार अबूरा है । मानव-संसार रूपी रथ के पुरुष और स्त्री दोनों ही दो चक्र हैं जिनके बल पर यह मानवसंसार रूपी रथ गतिमान है। दो चक्र विना रथ-चालन असम्भव है । नारी रूपी एक चक्र के अभाव में संसार-रथ नहीं चल सकता है। पुरुष के अहं का वह किला-कि मैं स्वयं समर्थ हूँ–यहाँ आकार धराशायी हो जाता है । नारी के प्रति असम्मान की भावना जो पुरुष-मन में व्याप्त है वह इस संदर्भ में टूट जाती है । नारी के अप्रतिम एवं गरिमामय व्यक्तित्व को किसी कवि ने शब्दों में बांधकर इस प्रकार रूपायित किया है 'नारी-नारी मत करो, नारी नर की खान । नारी ही के गर्भ से, प्रकटे वीर भगवान ॥' आओ, अब देखें हम नारी के बहु आयामी व्यक्तित्व को विविध संदर्भो में ! विभिन्न रूपों में !! जिसके बाद हम किसी निष्कर्ष पर पहुँच पायेंगे । हमारे प्राचीन इतिहास में नारी जीवन के विविध पक्षों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। फिर भी इस प्रस्तुत लेख के माध्यम से नारी के विभिन्न रूपों का एक संकेत मात्र किया जा रहा है जिसके कारण हमारा सोच/विचार शुभ दिशा में मुड़े। आदर्श माता के रूप में नारी नारी के हृदय को सागर की उपमा दी जा सकती है । क्योंकि उसके हृदय सागर में पुत्र के प्रति जो वात्सल्य भाव है वह अथाह/अपरिमित/असीम/अनंत है । उसके हृदय-सागर में वात्सल्य-जल सदा-सदा से लहराता हुआ भरा है जो कि कभी समाप्त होने वाला नहीं है। नारी का उदात्त रूप-एक दृष्टि : मुनि प्रकाशचन्द्र 'निर्भय' | २४७ RELA . ...
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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